कुमार की पैदाइश 23 सितम्बर, 1903 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश, में हुई थी. वह शिया सैयदों के लखनऊ के एक ऊँचे इज़्ज़तदार खानदान से ताल्लुक़ रखते थे. उनका असली नाम सैयद अली हसन जैदी था, लेकिन रिश्तेदार और करीबी दोस्त उन्हें प्यार से मीर मुज्जन कहा करते थे.
उन्होंने अपने करियर की शुरुवात न्यू थियेटर्स, कलकत्ता से की. 1932 में उनकी पहली दो फ़िल्में “सुबह का तारा” और “जिंदा लाश” रिलीज़ हुईं थीं. इन फ़िल्मों में उन्होंने सेकंड लीड भूमिका निभाई थी, जबकि इन दोनों फ़िल्मों में मुख्य भूमिका कुंदन लाल सहगल और अभिनेत्री रतन बाई की थी. उनकी तीसरी फ़िल्म, पूरन भगत में, जिसमें के एल सहगल ने भी अभिनय किया, उन्हें कुमार के नाम से जाना जाने लगा.
एक बेहद आकर्षक व्यक्तित्व के धनी , कुमार ने जल्द ही ख़ुद को एक बेहतरीन चरित्र अभिनेता के रूप में स्थापित कर लिया. उनकी फ़िल्में यहूदी की लड़की (1933), शहर का जादू (1934), अल-हिलाल (1935), वतन (1938), सोहाग (1940), नेक परवीन (1946), महल (1949), और मुग़ल-ए-आज़म (1960), जैसी फिल्मों में अच्छी भूमिकाएं निभाईं.
कुमार ने यहूदी की लड़की (1933) में एक्टिंग की जोकि प्रेमांकुर ऑटोरथी के द्वारा निर्देशित और न्यू थिएटर द्वारा प्रोडूस की गयी कॉस्टूयम ड्रामा फिल्म थी. इस फिल्म में कुमार के अलावा के. एल. सहगल, रत्तन बाई, पहाड़ी सान्याल, गुल हामिद और नवाब थे. यह फिल्म आग़ा हशर कश्मीरी के नाटक पर यहूदी की लड़की पर आधारित थी और फिल्म की स्टोरी यहूदी प्रिंस और रोमन प्रीस्ट की दुश्मनी पर आधारित थी.
याद-ए-रफ्तगां, कुमार की हीरो के रूप में पहली फिल्म थी जोकि लखनऊ में बनाई गयी थी.
आज़ादी से पहले उनकी मशहूर फ़िल्मों में अल-हिलाल (1935), दिल्लगी (1942) शामिल हैं. अल हिलाल, 1935 की उर्दू/हिंदी कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्म थी, जोकि ओटोमन के बेटे के साथ, रोमन-अरब संघर्ष के रूप में काल्पनिक रूप से चित्रित किया गया. बालवंत भट्ट के निर्देशन में बानी फ़िल्म दिल्लगी में उन्होंने आगा, सुशील कुमार, सुशीला और हंसा वाडेकर के साथ अभिनय किया.
उन्होंने मेहबूब खान की फ़िल्म वतन (1938), और बलवंत भट्ट द्वारा निर्देशित फिल्म सोहाग (1940) में भी अभिनय किया.
मशहूर और मारूफ़ फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म (1960) में, उन्होंने मूर्तिकार संगतराश की भूमिका निभाई, जो सलीम और अनारकली को मिलाने में मदद करते हैं और फ़िल्म के प्रसिद्ध गीत ‘ऐ मोहब्बत ज़िंदाबाद’ इन पर ही फ़िल्माया गया था. उनकी कुछ चरित्र भूमिकाएं जैसे फ़िल्म चाँद (1959) में विमला के पिता की भूमिका, दिल अपना और प्रीत पराई (1960) में डॉ. मल्होत्रा और इंस्पेक्टर कुंदन की भूमिका और फ़िल्म आधी रात के बाद (1965) में इंस्पेक्टर कुंदन की भूमिका रंजीत स्टूडियो के साथ काम करते हुए, उन्होंने पहले ही नदी किनारे (1939) और ठोकर (1939) जैसी कुछ फिल्में की थीं, और फिर अचानक एक दिन उनकी स्टूडियो के साथ सेवाओं को समाप्त कर दिया गया.
लगभग उसी समय, उनके करीबी दोस्त चंद्रमोहन, जिस प्रोडक्शन हाउस, मिनर्वा मूविटोन, के साथ वह काम कर रहे थे, उससे नाराज़ होकर कंपनी बदलना चाहते थे. क्योंकि प्रोडक्शन हाउस ने फ़िल्म पुकार (1939) की सफलता के बाद, पैसे बढ़ाने की बात की थी लेकिन फ़िल्म की सफलता के बाद भी चंद्रमोहन की सैलरी नहीं बधाई गयी थी.
चंद्रमोहन के साथ मिलकर कुमार ने अपना प्रोडक्शन हाउस खोलने का फैसला किया, और 16 मार्च, 1942 को सिल्वर फ़िल्म्स के नाम से अपनी प्रोडक्शन हाउस का आगाज़ किया. इसमें कुमार की पत्नी, प्रसिद्ध अभिनेत्री प्रामिला जिनका असली नाम ईस्टर विक्टोरिया अब्राहम था – ये भारत की पहली मिस इंडिया भी थीं -इन्होने प्रमुख भूमिका निभायी. इस प्रोडक्शन हाउस ने पहली फ़िल्म झंकर (1942) बनाई. इस फ़िल्म का निर्देशन एस. खलील ने किया था और मुख्य भूमिका में चंद्रामोहन, कुमार और प्रामिला द्वारा निभायी गयी थी.
अगले दो दशकों में कुमार, चंद्रमोहन और प्रामिला ने एक साथ- भलाई (1943), बड़े नवाब साहब (1944), नसीब (1945), देवर (1946) और बहाना (1960) जैसी फ़िल्मों का उत्पादन किया. इसके अलावा नेहले पे दहला (1946), धूम-धाम (1949) और दिलबर (1951) जैसी फ़िल्में शमा प्रोडक्शंस के बैनर के तहत बनायीं गयीं, और फ़िल्म आपबीती (1948) कुमार स्टूडियो के बैनर के तले बनी.
कुमार ने आपबीती, बहाना और धूम जैसी फ़िल्में प्रोड्यूस करने के साथ-साथ डायरेक्ट भीं कीं. धुन में राज कपूर और नरगिस ने मुख्य भूमिका निभायी थी जबकि फ़िल्म बहाना में सज्जन और मीना कुमारी ने लीड भूमिका निभायी थी.
प्रसिद्द अभिनेत्री प्रमिला से शादी करने से पहले ही कुमार शादीशुदा थे. उनकी पहली बीवी और बच्चे लखनऊ में ही रहते थे. प्रमिला और कुमार ने अपनी 22 साल की शादीशुदा ज़िन्दगी बहुत शान से जी. इस शादी से उन्हें अकबर, हैदर, नक़ी और असगर नाम के चार बच्चे हुए.
बॉम्बे में एक बेहतरीन करियर के बाद, कुमार 1963 में पाकिस्तान चले गए और कई प्रतिष्ठित पाकिस्तानी फिल्म और संगीत हस्तियों के साथ काम करना जारी रखा. कुमार के बेटे एसए हाफिज द्वारा निर्देशित फ़िल्म तौबा (1964) ने पाकिस्तान में उनके सबसे महत्वपूर्ण प्रदर्शन के लिए याद किया जाता है. कमल और ज़ेबा ने तौबा में मुख्य भूमिका निभाई थी, यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर एक बड़ी सफलता बन गई और इसे पाकिस्तानी फ़िल्म इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक फ़िल्मों में से एक के रूप में देखा जाता है.
कुमार ने कई पाकिस्तानी फ़िल्मों में काम किया, जिनमें हेड कॉन्स्टेबल (1964), आजाद, शबनम, नायला, सायका, सजदा (उनकी अपनी फ़िल्म), हम दोनो, नदी के पार, इक मुसाफिर इक हसीना, बालम आदि शामिल हैं. 4 जून 1982 में कुमार इस दुनिया-ए-फ़ानी से रुख़सत हो गए. जब उन्होंने इंडिया को छोड़ कर पाकिस्तान को चुना तो उनकी दूसरी पत्नी प्रमिला ने इंडिया को चुना और यहीं रहना मुक़र्रर किया.
प्रमिला से उनकी बेटी नक़ी जहाँ अपने दौर की मशहूर मॉडल और 1967 में मिस इंडिया चुनी गयीं. नक़ी जहाँ ने आख़िरी ख़त (1966), समाज को बदल डालो (1970) और एक खिलाडी और बावन पत्ते (1972) में काम किया. कुमार के बेटे हैदर ने भी एक्टिंग की ही राह चुनी और नुक्कड़ और फौजी जैसे सीरियल में काम किया. हैदर ने आशुतोष गोवारिकर की फ़िल्म जोधा – अकबर की स्टोरी और स्क्रीन प्ले लिखा था. तो दोस्तों ये थी एक मशहूर हस्ती कुमार की ज़िन्दगी की दास्तान, आपको यह दास्ताँ कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताइयेगा.