Home / Blog / Actors / गोपीकृष्ण : नृत्यसाम्राट की जीवनगाथा है बड़ी दिलचस्प, 1955 से शुरू किया था फ़िल्मी करियर.

गोपीकृष्ण : नृत्यसाम्राट की जीवनगाथा है बड़ी दिलचस्प, 1955 से शुरू किया था फ़िल्मी करियर.

गोपीकृष्ण एक ऐसा नाम जो सिर्फ नृत्य से शुरू होता है और नृत्य पर ख़त्म होता है. उन्हें नृत्य सम्राट की उपाधि दी गयीं है. 1975 में भारत सरकार ने उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, पद्म श्री से सम्मानित किया था.

Source: Social Media

गोपीकृष्ण की पैदाइश 22 अगस्त 1935 में उनके नाना श्रीसुखदेव मिश्र के घर हुई थी. उनकी माँ का नाम तारा था और वो कत्थक की नृत्यांगना थीं. कत्थक जगत की प्रसिद्ध नर्तकियाँ, सीतारादेवी ( बुआ ) और अलकनंदा चौबे उनके मामा हैं, जब घर में ही कत्थक के इतने दिग्गज हों तो उसका असर उन पर पड़ना ही था.

गोपीकृष्ण का बचपन मुंबई में बीता और शुरुवाती एजुकेशन के बाद वो कलकत्ता आ गए. वो शुरू से ही कत्थक सीखना चाहते थे और अपने बचपन में ही उन्होंने डांस करना शुरू कर दिया था, डांस के प्रति उनकी लगन देखकर उनके वालिद साहब ने उन्हें कत्थक सीखने के लिए प्रोत्साहित किया.

सबसे पहले उन्होंने अपने नाना से कलकत्ता में ही महज़ 11 साल की छोटी सी उम्र में प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया था. वह सुखदेव महाराज से ख़ासे मुतासिर थे. उन्होंने अपने नाना से कथक सीखने के दौरान बहुत कठिन अभ्यास किया क्योंकि उनके नाना स्वभाव से कठोर अनुशासन के थे. उन्होंने शुरुवाती प्रशिक्षण के बाद शंभू महाराज से भी प्रशिक्षण प्राप्त किया. गोपीकृष्ण ने अपने मामा अलकनंदा चौबे से भी कुछ वर्ष कथक का प्रशिक्षण लिया. कथक के अलावा उन्होंने गोविंदराज पिल्लई के तहत भरतनाट्यम में भी प्रशिक्षण लिया.

फ़िल्म उद्योग में उनका योगदान-

शास्त्रीय नृत्य में पारंगत होने के बाद वो अपने पेशेवर करियर की शुरुआत करने के लिए मुंबई लौट आए और कई फ़िल्मों में नृत्य निर्देशक के रूप में काम किया. उन्होंने कई प्रसिद्ध भारतीय फ़िल्मों में अपने शास्त्रीय नृत्य का प्रदर्शन किया है. नृत्य निर्देशन के साथ साथ उन्होंने फ़िल्मों में अभिनय भी किया. 1955 में वह अपनी पहली फ़िल्म ‘झनक झनक पायल बाजे’ में नज़र आये. इस फ़िल्म में उन्होंने एक प्रतिभाशाली युवा नर्तक गिरधर की भूमिका निभाई, जिसका अपने साथी के प्रति प्यार उसके नृत्य करियर को ख़तरे में डाल देता है.

फ़िल्म में मुख्य रूप से ‘नैन सो नैन नहीं मिलाओ’ जैसे गीतों के कारण सफल रही और इसने शास्त्रीय नृत्य में लोगों की रुचि को पुनर्जीवित करने में मदद की.

Source: Social Media

इस फ़िल्म के बाद से उन्हें भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में काफ़ी प्रसिद्धि और पहचान मिली. महबूबा, दास्तान, उमराव जान, मुगल ए आज़म, आम्रपाली और द परफेक्ट मर्डर जैसी ज़्यादातर फिल्मों में उन्होंने कोरियोग्राफ किया.

अपने करियर के 32 सालों में उन्हें बहुत से पुरस्कारों और सम्मान से नवाज़ा गया. 15 वर्ष की उम्र में, उन्हें वर्ष 1966 में अखिल बंगाल संगीत सम्मेलन में नटराज (जिसका अर्थ नर्तकों का राजा था) द्वारा सम्मानित किया गया. प्रयाग संघर्ष समिति इलाहाबाद में नृत्‍य सम्राट की उपाधि से उन्हें सम्मानित किया गया. साल 1967 में हैदराबाद के स्थानीय कला संघ के माध्यम से कलापापर्ण द्वारा सम्मानित किया गया था और भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री जैसे बड़े सम्मान से भी सम्मानित किया.

उन्होंने विदेशों में भी अपनी कला का प्रदर्शन किया जैसे पूर्वी अफ्रीका और कुछ अन्य पश्चिमी देशों में. एक बार उन्होंने तबला, चंदा और पखावज नामक तीन ताल वाद्य यंत्रों पर शानदार प्रस्तुति दी.

1975 में भारत सरकार ने उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, पद्म श्री से सम्मानित किया. उन्होंने 9 घंटे और 20 मिनट तक लगातार सबसे लंबे समय तक कथक नृत्य करने का विश्व रिकॉर्ड बनाया था. उन्होंने बी.आर. चोपड़ा की फ़िल्म हमराज़ में ‘ना मूंह छुपके जियो’ और असित सेन की फ़िल्म अन्नदाता के लिए ‘चंपावती तू आजा’ में मास्टर डांसर के रूप में भी काम किया था. दोनों बार उन्होंने अपनी कई फ़िल्मों की डांस पार्टनर मधुमती के साथ परफॉर्म किया.

Source: Social Media

उन्होंने 1985 में ऋषि कपूर और राजेश खन्ना अभिनीत फ़िल्म ज़माना में लट्टूराम, गुरुजी की चरित्र भूमिका निभाई थी. वह प्रसिद्ध टीवी श्रृंखला महाभारत में एक छोटी भूमिका में भी दिखाई दिए थे.

उन्होंने मधुबाला, वैजतीमाला, मुमताज, संध्या, ज़ेब बख़्तियार, मनीषा कोइराला, रवीना टंडन, बेबी नाज़, माला सिन्हा, अनीता राज, पद्मा खन्ना, ट्विंकल खन्ना, आशा पारेख, दिमाक कपाड़िया सोमी अली, शिल्पा शिरोडकर जैसी कई भारतीय नायिकाओं को कथक प्रशिक्षण प्रदान किया है.

गोपीकृष्ण परंपराओं पर आंख मूंदकर विश्वास नहीं करते थे, और उन्होंने कथक में कुछ नए तत्वों का परिचय दिया और एक नृत्य निर्देशक बन गए. 18 फरवरी 1994 को कला की दुनिया का ये बेताज बादशाह इस दुनिया-ए- फ़ानी से दिल का दौरा पड़ने की वजह से रुख़्सत हो गया.

Tagged:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!