ज़िल्लो बाई कहिये या ज़िल्लो दोनों एक ही अदाकारा का नाम है. वह भारतीय सिनेमा के शुरुवाती दौर की अभिनेत्री थीं, जिन्होंने मदर इंडिया और मुग़ल-ए- आज़म जैसी फ़िल्मों में काम करके काफ़ी शोहरत बटोरी, इन दोनों फ़िल्मों में इनका काम भी काफ़ी शानदार था. फ़िल्म मदर इंडिया में इन्होने अभिनेत्री नरगिस की सास का रोल निभाया था तो वहीँ फिल्म मुग़ल-ए- आज़म में इन्होने अदाकारा मधुबाला की माँ का क़िरदार बड़ी ही संजीदगी के साथ निभाया था, जो सिनेमा प्रेमियों के दिलों पर अमित छाप छोड़ गया. उन्होंने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुवात कब की, किस फ़िल्म से की, इसकी कोई जानकारी नहीं मिलती है लेकिन हाँ उनकी शुरुवाती फ़िल्में 1920 के दौरान की मूक फ़िल्में हैं.
सिनेमा के शुरुवाती दौर में उन्होंने बतौर मुख्य अभिनेत्री कई फ़िल्मों में काम किया. ये वो दौर था जब हिंदी सिनेमा में जुईश कलाकार ज़्यादा काम किया करते थे, लेकिन 60 के दशक तक आते आते इन कलाकारों की तादाद कम होती चली गयी, ज़िल्लो भी उसी दौर की ही कलाकार थीं, इनकी पैदाइश की सही तारीख़ तो नहीं पता चलती लेकिन सन1905 के आस-पास इनकी पैदाइश मुंबई में कहीं हुई, इनका असल नाम ज़ुलैख़ा इब्राहीम था, लेकिन सुनहरे परदे पर इन्हे ज़िल्लो के नाम से जाना गया. वक़्त के साथ इन्होने कैरेक्टर रोल निभाए और इन्होने माँ के क़िरदार जब निभाए तो इन्हे प्यार से ज़िल्लो माँ के नाम से पुकारा जाने लगा. उनकी कुछ फ़िल्मों में उनके इसी नाम का उपयोग किया गया. ज़िल्लो की अगर फ़िल्मी सफ़र को देखा जाये तो इन्होने भारत की पहली बोलती फ़िल्म आलम-आरा (1931) में भी काम किया था.
अपने ज़माने में वो बहुत ही हसीन और सबसे ज़्यादा मेहनताना लेने वाली अभिनेत्री थीं, साइलेंट फ़िल्मों की अगर बात की जाये तो ज़िल्लो ने अपने करियर की शुरुवात किस फ़िल्म से ये साफ़ पता नहीं चलता है. लेकिन 1924 में इनकी फ़िल्में शाहजहाँ, वीर दुर्गादास, रज़िया बेगम, और चन्द्रगुप्त और चाणक्य फ़िल्में रिलीज़ हुई थीं इनमें से इनकी पहली फ़िल्म कौन सी थीं ये पता लगाना खासा मुश्किल है. 1925 में रिलीज़ हुई फ़िल्म छत्रपति संभाजी महाराज से इन्होने सफलता का स्वाद चखा क्योंकि ये फिल्म ज़बरदस्त हिट हुई थीं.
उसके बाद 1927 में इनकी दो फ़िल्में रिलीज़ हुईं नारी की नगण इस फ़िल्म का निर्देशन के पी भावे ने किया था और ये फ़िल्म 19 मार्च 1927 में रिलीज़ हुई थी. उसके अलावा इसी साल इनकी एक और फिल्म ट्रस्ट योर वाइफ रिलीज़ हुई थीं.
आपको बताते चलें कि उस दौरान फिल्में बनाने में काफी वक़्त लगता था इसलिए इनकी फ़िल्मों में काफ़ी गैप था. 1928 में इनकी रिलीज़ हुई फ़िल्मों की बात करूँ तो इस साल श्री जगत गुरु, सरोवरनि सुंदरी, सम्राट अशोक, शशिकला, राजरंग , कातिल कथिआन, पुराण भगत, सरोवर की सुंदरी , पिता के परमेश्वर , माधुरी , पांडव पटरानी जगद्गुरु श्रीमद शंकराचार्य जैसी फ़िल्में रिलीज़ हुईं थीं.
1929 में रिलीज़ हुई फ़िल्म क्वीन रानी में इन्होने ज़िल्लो का ही क़िरदार निभाया था, उसके अलावा गुलशन-ए -अरब, हवाई सवार, मौर्या पतन, पंजाब मेल, तलवार का धनी, मेवाड़ नू मोती, दगाखोल दिलबर, इंदिरा, वसल की रात, हिंदुस्तान हमारा है -इस फ़िल्म में भी इनके क़िरदार का नाम ज़िल्लो ही था. 1930 में इनकी फ़िल्म प्रिंस विजय कुमार रिलीज़ हुई. ये सारी फ़िल्में अपने दौर में काफ़ी मशहूर हुईं थीं. उसके बाद दौर आया बोलती फ़िल्मों का – पहली बोलती फ़िल्म आलम- आरा में भी इन्होने बहुत ख़ास किरदार निभाया था.
आलम आरा के अलावा ज़िल्लो और भी बड़ी बड़ी फ़िल्मों में दिखती रहीं – हमारी बेटियां, दौलत का नशा, नूर जहाँ, भारती माता, सुलोचना, गुल सनोबर, पुजारिनी, नया ज़माना, दो घडी की मौज, अनारकली, बम्बई कि बिल्ली, किसान कन्या, सिकंदर, ज़ीनत, हमारा संसार, जुगनू और मगरूर इन हिंदी फ़िल्मों में वो काम करती रहीं.
फ़िल्मकार महबूब ख़ान से इनका ख़ास रिश्ता रहा उनकी लगभग सारी फ़िल्मों में वो नज़र आयीं – महबूब खान की ही फ़िल्म तक़दीर में उन्होंने जज की पत्नी का एक बढ़िया और दमदार किरदार निभाया था, ये फ़िल्म नरगिस की बतौर हेरोइन पहली फ़िल्म थी. उन्होंने महबूब खान की फ़िल्म मदर इंडिया के अलावा सन ऑफ़ इंडिया में भी काम किया था. उनकी ज़िन्दगी की सबसे इम्पोर्टेन्ट फ़िल्म रहीं मदर इंडिया और मुग़ल-ए- आज़म ये दोनों ऐसी फ़िल्में रही जिसकी वजह से ज़िल्लो अमर हो गयी, इन फ़िल्मों की वजह से ज़िल्लो का नाम आज भी लिया जाता है.
इनकी फ़िल्मों के बाद उनका फ़िल्मों से एकदम नाता टूट गया. सुनने में आया कि वो शादी करके नागपाड़ा में कहीं बस गयी, काफ़ी रिसर्च के बाद भी उनके बारे में कोई ख़ास जानकारी नहीं मिलती है जैसे उनके पति का नाम क्या था और उनके परिवार में और कौन – कौन थे. सन 2004 में वो दुनिया-ए-फ़ानी से बड़ी ही ख़ामोशी के साथ रुख़सत हो गयीं. मुग़ल- ए आज़म में उनका क़िरदार बड़ा ही अहम साबित हुआ उनके क़िरदार की वजह से ही अनारकली की जान बची थीं. दोस्तों आपको हमारी ये कहानी कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताइयेगा या आपके पास ज़िल्लो की कोई भी जानकारी हो साझा करिये कमेंट बॉक्स में, हमें आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा.