बेबी नाज़ या कुमारी नाज़ या ‘सलमा बेग’ ये सब एक ही अभिनेत्री का नाम है. यह नाम 1950 के दशक का हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री का बहुत चर्चित नाम था. सलमा ने महज़ 8 साल की उम्र में फिल्म ‘रेशम’ में अभिनेत्री सुरैया के बचपन का किरदार अदा किया था.
सलमा के पिता लेखक थे, और फ़िल्मों में लिखने के लिए स्ट्रगल कर रहे थे. पिता के दोस्त प्रोड्यूसर लेखराज ने पहली बार सलमा को फ़िल्म में काम करने का मौक़ा दिया. हालांकि पहले सलमा के पिता नहीं चाहते थे कि वह फ़िल्मों में काम करें लेकिन आर्थिक तंगी की वजह से वह सलमा के काम करने के लिए मान गए थे और इस तरह से हिंदी सिनेमा को एक बेहतरीन बाल कलाकार मिली.
बेबी नाज़ ने फ़िल्मों में एक बाल कलाकार के रूप में अपना करियर शुरू किया. एक बाल कलाकार के रूप में उनकी सबसे यादगार भूमिका आर.के. फिल्म्स की फ़िल्म बूट पॉलिश (1954) और बिमल रॉय की देवदास में थी. उन्होंने द न्यू यॉर्क टाइम्स से अपनी बेहतरीन नेचुरल एक्टिंग और 1955 में कान फ़िल्म समारोह से एक विशेष विशिष्टता (सह-अभिनेता रतन कुमार के साथ) के लिए प्रशंसा अर्जित की, जहां फ़िल्म को दिखाया गया था.
1958 में, स्विस साहित्यिक उपन्यास / आइकन हेदी पर आधारित दो फूल नाम की एक हिंदी फिल्म रिलीज़ हुई थी. हेदी की भूमिका – जिसे फ़िल्म में पूर्णिमा कहा जाता है – बेबी नाज़ द्वारा निभाई गई थी जो उस वक़्त मास्टर रोमी के साथ सबसे प्रसिद्ध बाल सितारों में से एक थी.
बेबी नाज़ जब बड़ी हुईं तो एक चरित्र अभिनेत्री के रूप में बहू बेगम, कटी पतंग और सच्चा झूठा (जहां उन्होंने राजेश खन्ना की शारीरिक रूप से विकलांग बहन की भूमिका निभाई) जैसी फ़िल्मों में अच्छी भूमिकाएँ करती हुई नज़र आयीं.
उनकी ज़िन्दगी एक बहुत ही मशहूर क़िस्सा है कि जब फ़िल्म के सेट पर ही उनकी मांग भर दी गयी थी. वाक़्या साल 1963 में रिलीज हुई फ़िल्म देखा प्यार तुम्हारा की शूटिंग के दौरान का है. डायरेक्टर के. परवेज के निर्देशन बनी इस फ़िल्म के हीरो थे पृथ्वीराज कपूर के भांजे सुबीराज. सुबीराज को फ़िल्मों में अधिक्तर पुलिस ऑफिसर से लेकर बिजनेसमैन की भुमिका में देखा जाता था. वहीं फ़िल्म की हीरोइन थीं सलमा बेग, उस वक्त तक सलमा को बेबी नाज़ के नाम से जाना जाता था.
फ़िल्म की शूटिंग प्रतापगढ़ के एक क़िले में चल रही थी. सुबीराज और बेबी नाज़ साथ में काम करने की वजह से काफ़ी घुल-मिलने लगे थे. धीरे-धीरे यह मुलाक़ात प्यार में कब बदल गई उन्हें पता ही नहीं चला. सुबीराज को यह बात अच्छी तरह से पता थी कि मुंबई जाते ही वह नाज़ से दूर कर दिए जाएंगे. उनकी शादी के बीच दो अड़चन थीं पहली नाज़ का धर्म अलग था और दूसरी नाज की इनकम से ही उनका परिवार चलता था.
सुबीराज नाज़ के प्यार में काफ़ी मुब्तिला थे और उनसे दूर नहीं होना चाहते थे. एक दिन हुआ यूँ कि सुबीराज ने शूटिंग के दौरान ही बेबी नाज़ की मांग में सिंदूर भरकर उनसे शादी कर ली थी. उस वक़्त उनकी इस तरह से शादी की ख़बर ने हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में तहलका मचा दिया था. सुबीराज अभिनेता राज कपूर के चचेरे भाई थे। से शादी की और काम करना जारी रखा. इन दोनों ने देखा प्यार तुम्हारा के अलावा मेरा घर मेरे बच्चे फ़िल्म में साथ काम किया था.
बाद में नाज़ ने एक डबिंग कलाकार के रूप में दूसरे करियर की दूसरी पारी शुरू की. अदाकारा श्रीदेवी की शुरुवाती फिल्मों में नाज़ ने अपनी आवाज़ दी थी. 19 अक्टूबर 1955 में फ़िल्मी परदे की ये बेमिसाल अदाकारा इस दुनिया-ए-फ़ानी से रुख़्सत हो गयीं.
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