Home / Blog / आज देव आनंद अगर ज़िंदा होते तो 100 साल के होते

आज देव आनंद अगर ज़िंदा होते तो 100 साल के होते

दिन ढल जाये हाय, रात ना जाय

तू तो न आए तेरी, याद सताये,  दिन ढल जाये… 

इस गीत के बोल कितने सरल और साधारण हैं लेकिन फिर भी गहरे असर करते हैं. आपको तो पता ही है कि यह गीत किस फ़िल्म का है. 1965 में रिलीज़ हुई फ़िल्म “गाइड” एक रोमांटिक ड्रामा फ़िल्म थी. इस फ़िल्म का निर्माण देव आनंद ने किया था और फ़िल्म का निर्देशन उनके भाई विजय आनंद ने किया था. 

देव आनंद
PC: Internet

यह फ़िल्म आर. के. नारायण की 1958 के नावेल ‘दा गाइड’ पर आधारित थी. इसे दो भाषाओँ में बनाया गया था. इंग्लिश का वर्ज़न पर्ल एस. बक द्वारा लिखा गया था और टैड डेनियलव्स्की द्वारा निर्देशित और निर्मित किया गया था. फ़िल्म की जब कास्टिंग हो रही थी तो कई  एक्ट्रेसेस से बात की गयी लेकिन देव आनंद यह चाहते थे कि वहीदा रहमान को नायिका के रूप में लिया जाए, लेकिन फ़िल्म के निर्देशक किसी और एक्ट्रेस को इस फ़िल्म में कास्ट करना चाहते थे. लेकिन देव साहब की ज़िद के आगे सभी को झुकना पड़ा और देव आनंद की ज़िद सही साबित हुई. फ़िल्म देख कर लगेगा कि रोज़ी का क़िरदार सिर्फ़ वहीदा रहमान के लिए ही बना था.

पहले डायरेक्टर राज खोसला हिंदी वर्ज़न का निर्देशन करने वाले थे, जिसमें रोज़ी के क़िरदार के लिए वहीदा रहमान पहली पसंद थीं. लेकिन वहीदा राज खोसला के साथ किसी भी क़ीमत पर काम नहीं करना चाहती थीं. उसके लिए वह फ़िल्म छोड़ने को तैयार थीं. फ़िल्म सोलहवां साल (1958) के सेट पर राज खोसला और वहीदा के बीच कुछ ग़लतफ़हमी हो गयी थीं और तब वहीदा ने क़सम खाई थीं कि चाहे कुछ भी हो जाये वह राज खोसला के साथ कभी काम नहीं करेंगी.  हांलांकि राज के निर्देशन में वहीदा ने अपने सिने-करियर की पहली फ़िल्म CID में काम किया था. राज खोसला के साथ वहीदा रहमान की दोनों फिल्में हिट हो गयी थीं. खैर वह ग़लतफ़हमी क्या हुई थीं उस बारे में फिर कभी बात की जाएगी अभी बात सिर्फ़ फ़िल्म गाइड की.

देव आनंद
PC: Internet

जब वहीदा रहमान ने रोज़ी की भूमिका को करने से मना कर दिया तो सायरा बानों से बात की गयी लेकिन उन्होंने मना कर दिया. तब वैजन्तीमाला के नाम पर भी सोच-विचार किया गया, लेकिन डेनिलेव्स्की को वैजन्तीमाला पसंद नहीं थीं रोज़ी के क़िरदार के लिए. इस तरह से कई और अभिनेत्रियों के बारे में सोचा गया लेकिन बात नहीं बन पायी. फ़िल्म की भलाई के लिए राज खोसला ने इस इस फ़िल्म से किनारा कर लिया, ताकि वहीदा रहमान फिर से फ़िल्म में शामिल हो सकें जो परदे के पीछे से राज को इस फ़िल्म से निकालने की पैरवी कर रहीं थीं. राज खोसला के फ़िल्म छोड़ने के बाद देव आनंद ने अपने बड़े भाई चेतन आनंद से बात की फ़िल्म को डायरेक्ट करने की तो उन्होंने यह शर्त रख दी कि फ़िल्म की हेरोइन प्रिय राजवंश को बनाया जाये. लेकिन देव आनद इस बात के लिए राज़ी नहीं हुए तो चेतन ने इस फ़िल्म से अलग होने में ही भलाई समझी.  तब इस फ़िल्म के हिंदी वर्ज़न के डायरेक्शन की बागडोर विजय आनंद के हाथ में आयी और ये फ़िल्म कैसी थी यह अपने आपमें एक इतिहास है. 

देव आनंद और वहीदा रहमान
PC: Internet

यह फ़िल्म देव आनंद और वहीदा रहमान दोनों के करियर में एक ऐतिहासिक उपलब्धि साबित हुई. गाइड रिलीज होने पर बॉक्स-ऑफिस पर बेहद सफल फ़िल्म थी, जबकि इसका इंग्लिश वर्ज़न बुरी तरह से फ्लॉप हो गया था. इस फ़िल्म को  बाद में सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ हिंदी फिल्मों में से एक माना जाता है. इसे व्यापक आलोचनात्मक प्रशंसा मिली, विशेष रूप से देव आनंद और वहीदा रहमान के एक्टिंग के साथ-साथ एस. डी. बर्मन के संगीत के लिए. 

इस फ़िल्म का संगीत और बैकग्राउंड स्कोर सचिन देव बर्मन ने बनाया था, गीत शैलेन्द्र ने लिखे थे और किशोर कुमार, मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर, मन्ना डे और सचिन देव बर्मन ने आवाज़ दी थी. पहले इस फ़िल्म के गीत हसरत जयपुरी लिख रहे थे. और मो. रफ़ी की आवाज़ में “हम ही मैं थी ना कोई बात, याद ना तुमको आ सके, तुमने हमें भुला दिया, हम ना तुमको भुला सके” नाम का एक गाना रिकॉर्ड किया था, लेकिन आनंद भाइयों को यह गीत कुछ खास पसंद नहीं आया तो उन्होंने एस. डी. बर्मन से गुज़ारिश की हसरत साहब से कहें कि इसके बोल कुछ अलग लिखें. एस. डी. बर्मन ने जब हसरत जयपुरी से बात की उन्होंने बेहद भद्दे अनदाज़ में कहा कि फ़िल्म का मुख्य क़िरदार राजू जैसा है उसके हिसाब से यह गीत एकदम सही लिखा है. जब यह बात देव आनंद को पता चली तो उन्होंने हसरत जयपुरी को उनका मेहनताना देकर उनके साथ काम करने से मना कर दिया.

देव आनंद फ़िल्म “गाइड” के पोस्टर में PC: Internet

यह बात जब शैलेन्द्र को पता चली कि देव साहब अपनी फ़िल्म के लिए कोई गीतकार ढूंढ रहे हैं तो वो देव आनंद से आकर मिले और उनसे कहा कि मैं आपकी फ़िल्म के लिए गीत लिखना चाहता हूँ. देव आनंद और विजय आनंद शैलेन्द्र को जानते थे और उनके साथ फ़िल्म कला बाजार में साथ में काम कर चुके थे. इसलिए देव आनंद ने शैलेन्द्र को अपनी टीम से मिलवाया और विजय आनंद ने उनको गाने की सिचुएशन समझा दी. तब शैलेन्द्र ने रचा “दिन ढल जाए, रात न जाये.” काम वक़्त में सिचुएशन के हिसाब से और एक सरल अंदाज़ में गीत कहने की जो कला शैलेन्द्र के पास थी वह शायद उस वक़्त की पूरी फ़िल्म इंडस्ट्री में किसी और गीतकार के पास नहीं थी. शैलेन्द्र के शब्द तो सरल होते थे लेकिन बात एकदम गहराई की होती थी. अपने सीधे और सरल शब्दों की तरह शैलेन्द्र एकदम सादगी पसंद इंसान थे. शैलेन्द्र सिचुएशन को बहुत ध्यान से सुन कर समझ लेते और “मैं अभी थोड़ी देर में आता हूँ.” और समुद्र के किनारे पहुंच जाते और कुछ वक़्त बाद डमी गीत के साथ हाज़िर हो जाते. उनके लिखे डमी गीत धुन पर एकदम सही बैठते. 

आज फिर जीने की तमन्ना है आज फिर मरने का इरादा है गीत के वक़्त भी सिचुएशन समझा दी गयी. गीत की सिचुएशन यह थी कि फ़िल्म की हेरोइन का पति उसकी ज़िन्दगी से डांस और म्यूज़िक को निकल देता है जिससे उसकी ज़िन्दगी नीरस हो जाती है क्योंकि उसे डांस और म्यूज़िक से बहुत लगाव है. फिर फ़िल्म का हीरो या नायक उसे यह एहसास दिलाता है कि डांस और म्यूज़िक को छोड़ कर ग़लती कर रही है तो उसे यह एहसास होता है कि वाक़ई उसके बहुत बड़ी ग़लती कर दी है और ज़िद करके वह अपने पैरों में घुंघरूं बांध लेती है. घुंघरूं उसकी आज़ादी का प्रतीक है और लोक लाज सब छोड़ कर अब सिर्फ़ जीना चाहती है. कुछ वक़्त बाद शैलेन्द्र ने गीत का मुखड़ा तो लिख दिया और उस पर सचिन देव बरमन की धुन – ‘आज फिर जीने की तमन्ना है आज फिर मरने का इरादा है.’ लेकिन इसके आगे के बोल शैलेन्द्र को समझ नहीं आ रहे थे. तो उन्होंने एस. डी. बर्मन से कहा कि कुछ वक़्त दीजिये सोचने का, बरमन साहब ने कहा कि ठीक है लेकिन जब दो दिन बीत गए तो एस. डी. बर्मन शैलेन्द्र के घर पहुंच गए और उनसे कहा कि वाट बीता जा रहा है हमारे पास बहुत काम वक़्त है.

शैलेन्द्र ने कहा कि दादा बात बिलकुल उलटी हो रही है आज फिर जीने की तमन्ना है , मरने का इरादा है. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है तो एस. डी. बर्मन ने कहा कि आप लिखिए कि नायिका को जीने की तमन्ना क्यों है मरने का इरादा क्यों है ? अचानक से ऐसा क्या हुआ जो वह इतना चहक रही है ? यह तो मुखड़ा हुआ बाक़ी अंतरे में हम बताएँगे कि किस वजह से उसमें इतनी उमंग है, तभी आज जीने की तमन्ना है. एस. डी. बर्मन की यह बात सुन कर शैलेन्द्र एकदम से चहक उठे….”काँटों से खींच के ये आँचल, तोड़ के बंधन बाँधी पायल…” और फिर इस तरह से बना यह ख़ूबसूरत गीत- आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फिर मरने का इरादा है…

Tagged:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!