अपने वक़्त की एक ज़बरदस्त स्टार, निर्माता और स्टूडियो मालिक, गौहर कहें, या मिस गौहर, दोनों एक ही शख़्सियत हैं. उन्होंने अपने करियर की शुरुवात 1926 में की थी. यह वह वक़्त था जब सिनेमा को आवाज़ नहीं मिली थी.
टॉकी युग आने के बाद उन्होंने राधा रानी (1932), बैरिस्टर वाइफ़ (1935) और देवी देवयानी (1931) जैसी फिल्मों में काम किया.
उनकी शादी चंदूलाल शाह से हुई थी, जिनके साथ उन्होंने रंजीत फ़िल्म स्टूडियो की स्थापना की, जिसे बाद में रंजीत मूवीटोन के नाम से जाना गया.
19 नवंबर, 1910 को एक संपन्न दाऊदी बोहरा परिवार में जन्मी गौहर ख़य्याम मामाजीवाला की ज़िन्दगी तब बदल गयी जब उनके वालिद साहब की अचानक मौत हो गई. पिता के चले जाने से उनका व्यवसाय बंद हो गया जिससे परिवार पर रोज़ी-रोटी का संकट आ गया. उस वक़्त गौहर को एक पारिवारिक मित्र, होमी मास्टर, जो कोहिनूर फ़िल्म्स के साथ एक निर्देशक के रूप में काम करते थे, उन्होंने मिस गौहर को फ़िल्म उद्योग में शामिल होने के लिए पप्रोत्साहित किया. उस वक़्त गौहर सिर्फ़ 16 साल की थी जब उनकी पहली फिल्म, बाप कमाई या फॉर्च्यून एंड फूल्स (1925) मिली. इस फ़िल्म का निर्देशन कांजीभाई राठौड़ ने किया था. इस फ़िल्म की कहानी कुछ यूँ थी कि एक अमीर आदमी का बेटा, जो अपनी विरासत में मिली दौलत को बर्बाद कर देता है, लेकिन अपनी युवा पत्नी के प्रयासों की बदौलत अपना काम चलाने में सफल हो जाता है. इस फ़िल्म में गौहर ने युवा पत्नी का किरदार अदा किया था. यह सामाजिक फ़िल्म उस वक़्त काफ़ी सफल रही थी जब पौराणिक और स्टंट फिल्में ज़्यादा देखी जाती थीं.
उन्होंने होमी मास्टर द्वारा निर्देशित फ़िल्म लंका नी लड़ी या फेयरी ऑफ सीलोन (1925) में अदाकारी की. उसके बाद उन्होंने सम्राट शिलादित्य (1926), रा कावत (1926), मैना कुमारी (1926), लाखो वंजारो (1926), दिल्ली नो ठग (1926), ब्रीफलेस बैरिस्टर (1926), सती जसमा ( 1926), मुमताज महल (1926), पृथ्वी पुत्र (1926), टाइपिस्ट गर्ल (1926), और शिरीन फरहाद (1926) में काम किया. गौहर की ऑनस्क्रीन जोड़ी अभिनेता खलील के साथ खूब पसंद की गयी; अपनी पहली फ़िल्म के अलावा, उन्होंने लंका नी लड़ी में भी उनके साथ काम किया.
भनेली भामिनी या एजुकेटेड वाइफ (1927) में, उन्होंने एक डॉक्टर की भूमिका निभाई, जिसकी शादी सिफलिस के पुराने मामले से पीड़ित एक व्यक्ति से हो जाती है. फ़िल्म में दिखाया गया है कि किस तरह से वह आपसी स्नेह और समझ के बंधन को बना कर आगे बढ़ती हैं. इस बेहतरीन भूमिका में गौहर का संतुलित और ज़बरदस्त एक्टिंग ही था जिसने लोगों को आकर्षित किया और उनके भावी पति चंदूलाल शाह का ध्यान उनकी तरफ़ गया, जो जल्द ही कोहिनूर फिल्म्स के लिए फ़िल्म टाइपिस्ट गर्ल का निर्देशन शुरू करने वाले थे. कहा जाता है कि चंदू लाल शाह ने गोहर को फ़िल्म में एक कैमियो करने पर ज़ोर दिया था. इस फ़िल्म
में एक्ट्रेस सुलोचना मुख्य भूमिका में थीं. एक शराबी की पत्नी के रूप में गौहर ने अपनी अदाकारी से लोगों को अचंभित कर दिया, और वह चंदूलाल शाह के पसंदीदा कलाकारों में शामिल हो गईं, बाद में उनकी यह पसंद व्यक्तिगत और व्यावसायिक बंधन बन गयी. यानी कि दोनों ने शादी कर ली थीं, फिर बात में दोनों ने मिल कर अपनी फ़िल्म प्रोडक्शन हाउस खोला जो काफ़ी हिंदी सिनेमा के इतिहास में काफ़ी मायने रखता है. सही मायनों में गौहर एक ज़बरदस्त अदाकारा थीं, उनकी ज़बरदस्त स्क्रीन प्रेज़ेन्स और स्टाइलिश गोहर कई मायनों में एक ट्रेंड-सेटर थीं. उनकी कई भूमिकाएँ गुजराती उपन्यासों पर आधारित थीं, जो विशेष रूप से उनके लिए लेखक मोहनलाल दवे द्वारा लिखे गए थे.
1927 में, एक नयी टीम बनी जिसमें मिस गौहर, चंदूलाल शाह, जगदीश पास्ता, अभिनेता राजा सैंडो और कैमरामैन पांडुरंग नाइक शामिल थे ने मिलकर श्री साउंड स्टूडियो की स्थापना की. 1929 में गोहर और शाह ने इस स्टूडियो से अलग होने से पहले लगभग 10 फिल्में बनाईं. बाद में गौहर और चंदूलाल शाह ने अपनी फ़िल्म निर्माण कंपनी-रंजीत फ़िल्म्स बनाई, बाद में इस जोड़ी ने अपना ख़ुद का स्टूडियो बनाया, जिसे रंजीत स्टूडियो कहा गया, जो करीब 20 वर्षों तक एक प्रमुख मोशन पिक्चर स्टूडियो था.
उन्होंने तूफानी तरूणी (1934) और बैरिस्टर की पत्नी (1935) जैसी कुछ शुरुआती व्यावसायिक सफलताओं वाली फ़िल्मों में अभिनय किया.
एक बेहतरीन भागीदार, निर्माता और प्रमुख अभिनेत्री के रूप में, उन्होंने रंजीत और उसके कर्मचारियों का ख़ूब ध्यान रखा. 1970 के दशक में उन्होंने फ़िल्मों से सन्यास ले लिया और एक सादगी भरी ज़िन्दगी बिताने लगीं. 28 सितंबर 1985 को बॉम्बे में उन्होंने आख़िरी साँस ली. उन्होंने हिंदी सिनेमा की एक मज़बूत नींव रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी.
उनकी फ़िल्मी करियर की अगर बात करूँ तो उन्होंने –
फॉर्च्यून एंड फूल्स (1925), घर जमाई (1925), लंका नी लाडी (1925), ब्रीफलेस बैरिस्टर (1926), लाखो वंजारो (1926), मैना कुमारी (1926), मुमताज महल (1926), पृथ्वी पुत्र (1926), रा कावत (1926), सम्राट शिलादित्य (1926), सती जसमा (1926), शीरीं फरहाद (1926), दिल्ली का चोर (1926), टाइपिस्ट गर्ल (1926), शिक्षित पत्नी (1927), गुणसुन्दरी (1927), सती माद्री (1927), सिंध की सुमारी (1927), गृहलक्ष्मी (1928), पूरन भगत (1928), विश्वमोहिनी (1928), भिखारी लड़की (1929), चंद्रमुखी (1929), गुलशन-ए-अरब (1929), जादुई बांसुरी (1929), पति पत्नी (1929), पंजाब मेल (1929), राजपूतानी (1929), शिरीन खुसरू (1929), माई डार्लिंग (1930), राज लक्ष्मी (1930), विजेता (1930), जंगली फूल (1930), देवी देवयानी (1931), राधा रानी (1932), सती सावित्री (1932), शैल बाला (1932), मिस (1933), विश्व मोहिनी (1933), गुणसुन्दरी (1934), तारा सुंदरी (1934), तूफ़ानी तरूणी (1934), बैरिस्टर की पत्नी (1935), देश दासी (1935), किमीती आंसू (1935), डर्बी का शिकार (1936), गुनेहगर (1936), प्रभु का प्यारा (1936), राज रमानी (1936), सिपाही की सजनी (1936), परदेसी पंखी (1937), अछूत (1940), उषा हरण (1940).
नोट:- हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में गौहर नाम की कई और अभिनेत्रियां हुईं हैं तो फ़िल्मोग्राफ़ी में ग़लतियों से इंकार नहीं किया जा सकता है