मुख़्तार बेगम साइलेंट सिनेमा की एक ऐसी गायिका और अदाकारा, जिनका अपने वक़्त में वह जलवा था कि वह हिंदुस्तान की बड़ी से बड़ी महफ़िलों की शान हुआ करती थीं. उन्हें क्वीन सॉन्गस्ट्रेस या भारत की मेलोडी क्वीन कहा जाता था.
आज हम आपको साइलेंट सिनेमा की एक ऐसी गायिका और अदाकारा की दास्ताँ सुनाएंगे जिनका अपने वक़्त में वह जलवा था कि वह हिंदुस्तान की बड़ी से बड़ी महफ़िलों की शान हुआ करती थीं. उन्हें क्वीन सॉन्गस्ट्रेस या भारत की मेलोडी क्वीन कहा जाता था. मुख़्तार बेगम 1930 के दशक की एक प्रतिष्ठित और मशहूर ग़ज़ल गायिका अभिनेत्री थीं. वह अपने चाहने वालों के बीच बेहद लोकप्रिय थीं और अविभाजित भारत के फ़िल्म इतिहास में सबसे मशहूर हस्तियों में से एक थीं.
उन्हें नियमित रूप से राजा और महाराजाओं द्वारा अपने शाही दरबारों में बुलाया जाता था और एक बार की बात है उन्हें हैदरबाद के निज़ाम के यहाँ गाने का आमंत्रण मिला और जब वह उनके दरबार में पहुंचीं तो हैदराबाद के निज़ाम ने अपनी बेगम के बगल में कुर्सी की पेशकश की थी, जिसकी उनके दरबार के अधिकारियों ने आलोचना की, जिसके जवाब में निज़ाम ने कहा कि उन्होंने मुख़्तार बेगम की कला और प्रतिभा को कुर्सी पेशकश की थी.
1930 के दशक में, वह कोलकाता चली आयीं और यहाँ उन्होंने प्रसिद्ध उर्दू नाटककार और शायर आग़ा हशर कश्मीरी द्वारा लिखे गए मंचीय नाटक और थिएटर किए. मुख्तार बेगम बंबई भी गईं और वहां उन्होंने थिएटर में भी काम किया. थिएटर करने के बाद, उन्होंने मूक फिल्मों में काम करना शुरू किया और 1931 में उन्होंने अलीबाबा 40 चोर (1932), चित्रबकावली (1932), हठीली दुल्हन (1932), हिंदुस्तान (1932), इंद्रसभा (1932), कृष्ण कांत की वसीयत (1932), मुफ़लिस आशिक़ (1932), श्रवण कुमार (1932), आँख का नशा (1933), औरत का प्यार (1933), चंतामिनी (1933), नल दमयंती (1933), रामायण (1933), सीता (1934), दिल की प्यास (1935), मजनू (1935),मतवाली मीरा (1940) सहित हिंदी, पंजाबी और उर्दू दोनों फिल्मों में दिखाई दीं. 1940 के बाद उन्होंने अभिनय छोड़ दिया. उन्होंने प्रेम की आग (1936) और भेशम (1937) जैसी फ़िल्मों के लिए संगीत तैयार किया.
मशहूर और मारूफ़ अदाकारा और सिंगर मैडम नूरजहाँ मुख़्तार बेगम को अपना आदर्श मानती थीं. यह मुख़्तार बेगम ही थीं जिन्होंने बेबी नूरजहाँ को गायन और अभिनय की दुनिया में अपनी कोशिशों को जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया, जब उन्होंने 1935 में कलकत्ता में बाल कलाकार के रूप में अपने करियर की शुरूवात की थी. इसलिए उन्होंने उन्हें कुछ निर्माताओं और अपने पति आग़ा हशर कश्मीरी से मिलवाया, ताकि उन्हें कुछ काम मिल सके.
क्वीन ऑफ़ ग़ज़ल फरीदा खानम और गायिका नसीम बेगम को उन्होंने ही प्रशिक्षित किया था. वह पाकिस्तान की प्रसिद्ध फिल्म स्टार रानी की गार्डियन भी थीं, जो उनके एक नौकर की बेटी थी. बंटवारे के बाद मुख्तार बेगम अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चली गईं और लाहौर में बस गईं. उन्होंने रेडियो और टेलीविजन के लिए ग़ज़लें गाना जारी रखा.
उनकी शादी महान उर्दू नाटक लेखक आगा हशर कश्मीरी से हुई थी.
मुख़्तार बेगम की पैदाइश 16 जुलाई 1901 में अमृतसर में हुई थी. मुख्तार अपने चार भाई बहनों में सबसे बड़ी थीं. उनकी एक बहन और तीन भाई थे. मशहूर और मारूफ़ सिंगर फरीदा ख़ानम उनकी छोटी बहन हैं.
मुख़्तार बेगम ने पटियाला घराने के क्लासिक म्यूजिक स्कूल में पढ़ाई की. वहां उस्ताद मियां मेहरबान खान नाम के एक टीचर को उनका गायन पसंद आया जो उस्ताद आशिक अली खां के शिक्षक थे. इसलिए उन्होंने सात साल की उम्र से मुख्तार बेगम को हिंदुस्तानी गायन शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण दिया.
मुख़्तार बेगम को ज़्यादा उम्र होने की वजह से कई बीमारियों ने घेर लिया था. उम्र के आख़िरी पड़ाव पर उन्हें पैरालिसिस भी हो गया था, जिससे 25 फरवरी 1982 को कराची में 80 साल की उम्र में वह इस दुनिया-ए-फ़ानी से रुख़सत हो गई. उन्हें कराची में सोसाइटी के क़ब्रिस्तान में सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया.