Gandhi Jayanti: महात्मा गाँधी पर बनी 9 फिल्में जो आपको ज़रूर देखनी चाहियें.

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By Mohammad Shameem Khan

मोहनदास करमचंद गाँधी जिन्हे हम और आप मोहब्बत से बापू कहते हैं और लोग उन्हें महात्मा गाँधी के नाम से जानते हैं. गाँधी जी की पैदाइश 2 अक्तूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुई थी. इस साल हमने गाँधी जी की 152 वीं जयंती मनाई. 2 अक्टूबर के दिन बापू को पूरी दुनिया याद करती है. गांधीजी ने देश की आज़ादी में एक अहम योगदान दिया था. सिनेमा ने भी कई मौक़ों पर गाँधी पर फलम बना कर चकित कर दिया है. चाहे इंटरनेशनल सिनेमा हो या अपना हिंदी सिनेमा, सबने गाँधी पर ऐसी फिल्में बनायीं हैं, उनकी ज़िन्दगी से जुड़े हुए ऐसे पहलुओं पर फिल्में बनाई हैं जिनसे हम अब तक अनजान थे.

आज हम आपको इस आर्टिकल के ज़रिये महात्मा गाँधी से जुड़ी हुई कुछ फ़िल्मों के बारे में बताएँगे, जिन्हे आपको ज़रूर देखनी चाहिए. इन फ़िल्मों को देख कर आपके अंदर देश भक्ति की एक अलख जग जाएगी और साथ ही साथ आप गाँधी की ज़िन्दगी कुछ पहलुओं से भी रूबरू होंगे. इन फ़िल्मों में सिर्फ़ गाँधी की ज़िन्दगी को ही नहीं दिखाया गया है बल्कि आज़ादी पाने के लिए दिए हुए बलिदानों को भी बड़ी ही ख़ूबसूरती से दिखाया गया है. इन फ़िल्मों को देख कर हम समझ पाएंगे कि आज हम आज़ाद हैं तो इन आज़ादी के मतवालों ने क्या क़ुर्बानियाँ दी हैं.

महात्मा गाँधी फ़ोटो : सोशल मीडिया

पहली फ़िल्म जिसका मैं ज़िक्र करूँगा वो इंटरनेशनल फ़िल्म है –
गाँधी (1982)

तस्वीर साभार: सोशल मीडिया


महात्मा गाँधी की ज़िन्दगी पर बनी अब तक की सबसे अच्छी फ़िल्म, यह भी एक बड़ी विडम्बना है कि सबसे ज़्यादा फिल्में बनाने में हम दुनिया में पहले नंबर पर हैं लेकिन गाँधी पर फ़िल्म एक विदेशी फ़िल्मकार ने बनाई. ख़ैर ! इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका ब्रिटिश अभिनेता बेन किंग्सले ने निभायी थी और इसका निर्देशन रिचर्ड एटनबरो ने किया था. इस फ़िल्म को 8 ऑस्कर दिए गए थे. मेरे हिसाब से महात्मा गाँधी पर अब तक बनी फ़िल्मों में ये सबसे अच्छी फ़िल्म है. अगर आप आज़ादी के संघर्ष को देखना चाहते हैं और महात्मा गाँधी को क़रीब से जानना चाहते हैं तो आपको यह फ़िल्म ज़रूर देखनी चाहिए.

दूसरी फ़िल्म:
द मेकिंग ऑफ़ महात्मा गाँधी (1996)

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मशहूर और मारूफ फ़िल्म निर्देशक श्याम बेनेगल के निर्देशन में बनी इस फ़िल्म में अभिनेता राजित कपूर ने गाँधी का क़िरदार निभाया था. इस फ़िल्म में उनकी शानदार एक्टिंग के लिए सर्वश्रेठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरुस्कार मिला था साथ ही साथ इस फ़िल्म को अंग्रेजी भाषा की सर्वश्रेठ फ़िल्म का नेशनल अवार्ड मिला था. फ़िल्म में गाँधी जी की ज़िन्दगी के 21 वर्षों को दिखाया गया है जो उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में बिताये थे.


तीसरी फ़िल्म:
हे राम (2000)

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यह पूरी फ़िल्म महात्मा गाँधी की हत्या के इर्द गिर्द घूमती है. इस फ़िल्म का निर्देशन कमल हसन ने किया था और यह उनके डायरेक्शन में बनने वाली अब तक की सबसे अच्छी फ़िल्म होगी. फ़िल्म में महात्मा गाँधी का क़िरदार नसीरुद्दीन शाह ने निभाया था और इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका कमल हसन, शाहरुख़ खान, रानी मुख़र्जी, अतुल कुलकर्णी, गिरीश कर्नाड और ओम पूरी ने निभायी थी. यह फ़िल्म आज़ादी के बाद चारो तरफ़ फैले क़ौमी दंगों को लेकर गाँधी जी के संघर्ष की भी बात करती है.


चौथी फ़िल्म:
गाँधी माय फादर (2007)

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यह फ़िल्म गाँधी और उनके बड़े बेटे हीरालाल गाँधी के साथ उनके संबंधों पर आधारित थी. इस फ़िल्म का निर्देशन फ़िरोज़ अब्बास खान ने किया था, फ़िल्म में महात्मा गाँधी की भूमिका दर्शन जरीवाला ने निभायी थी और उनके बेटे हीरालाल की भूमिका अक्षय खन्ना ने निभायी थी. बाप बेटे के रिश्ते पर बनी यह फ़िल्म अपने आप में बेहद शानदार थी और इस फ़िल्म को नेशनल अवार्ड भी मिला था.


पांचवी फ़िल्म:
मैंने गाँधी को नहीं मारा (2005)

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इस फ़िल्म में उर्मिला मांतोडकर और अनुपम खेर ने मुख्य भूमिका निभायी थी. यह फ़िल्म एक रिटायर्ड हिंदी के प्रोफेसर के इर्द गिर्द घूमती है जिन्हे यह लगता है कि उन्होंने महात्मा गाँधी की हत्या की है. इस फ़िल्म के लेखक और निर्देशक जानू बरुआ थे. फ़िल्म में बेहतरीन अदाकारी के लिए अनुपम खेर को नेशनल अवार्ड मिला था.


छठी फ़िल्म:
लगे रहो मुन्ना भाई (2006)

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इस फ़िल्म का निर्देशन राजकुमार हिरानी ने किया था. यह फ़िल्म ऊपर बताई गयी फ़िल्मों से बिलकुल अलग फ़िल्म थी. मुन्ना भाई सीरीज़ की दूसरी फ़िल्म के तहत इस फ़िल्म में गाँधीगिरी के ज़रिये ज़िन्दगी की मुश्किलों पर क़ाबू पाने के साथ साथ मौजूदा वक़्त में अहिंसा को बढ़ावा देते हुए दिखाया गया है.
इस फ़िल्म में संजय दत्त द्वारा निभाया गया क़िरदार एक स्थानीय गुंडा (मुन्ना) महात्मा गाँधी की विचारधारा की मदद से समस्याओं का समाधान करता नजर आता है. मुन्ना को गांधी को देखकर भ्रम भी हो जाता है, जिससे वह उनका काल्पनिक मित्र बन जाता है. अभिनेता दिलीप प्रभावलकर ने महात्मा गांधी की भूमिका निभाई जो मुश्किल के वक़्त में मुन्ना की आंतरिक आवाज़ बन जाते हैं.


सातवीं फ़िल्म:

नाइन आवर्स टू रामा (1963)

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यह 1963 की एक ब्रिटिश फ़िल्म है जो नाथूराम गोडसे की ज़िन्दगी से लेकर महात्मा गाँधी की हत्या तक के नौ घंटों पर केंद्रित है. इसी नाम की एक किताब को फ़िल्म के रूप में बनाया गया है. इस फ़िल्म का निर्देशन मार्क रॉबसन ने किया था और महात्मा गांधी की भूमिका जे. एस. कैशप ने प्रभावशाली ढंग से निभाई थी.


आठवीं फ़िल्म:
डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर (2000)

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यह फ़िल्म डॉ. बी.आर.अबेडकर की कहानी बताती है जो भारत में उत्पीड़ित वर्गों के लाभ के लिए अपने काम के लिए जाने जाते हैं. इस फ़िल्म में, गाँधी और अंबेडकर की अपनी -अपनी विचारधाराओं पर टकराव दिखाया गया है और यह कैसे नीतियों और सिद्धांतों के संदर्भ में आज हमारे पास है. फ़िल्म का निर्देशन जब्बार पटेल ने किया था, जिसमें अनुभवी मलयालम अभिनेता ममूटी ने अंबेडकर की भूमिका निभाई थी और मोहन गोखले ने महात्मा गाँधी की भूमिका निभाई थी.


नवीं फ़िल्म:
सरदार (1993)

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इस फ़िल्म का निर्देशन केतन मेहता ने किया था और यह फ़िल्म स्वतंत्र भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल की कहानी दर्शाती है. देशभक्ति से लबरेज़ यह फ़िल्म बताती है कि कैसे पटेल ने भारत को एक लोकतांत्रिक देश बनाने में मदद की, और सदियों पुराने ब्रिटिश शासन से आज़ादी मिलने के बाद देश के नेता के रूप में स्वतंत्रता के बाद के संघर्ष को देखा. फ़िल्म में एक हिस्सा गाँधी और पटेल के रिश्ते को भी दर्शाता है. परेश रावल ने सरदार वल्लभभाई पटेल की भूमिका और अन्नू कपूर ने महात्मा गाँधी की भूमिका निभाई थी.

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