
कहानियों के बग़ैर हमारी ज़िन्दगी अधूरी है. फ़िल्में जब से बननी शुरू हुई हैं तब से फ़िल्मी कहानी में एक नायक एक नायिका और खलनायक का होना ज़रूरी है, अगर किसी फ़िल्म में ये सब ना हो तो वो फ़िल्म अधूरी सी रहती है और उसे दर्शक पसंद नहीं करते. अगर फ़िल्म का खलनायक नायक से ज़्यादा खूंखार और ख़तरनाक़ हो तो फ़िल्म देखने में ज़्यादा मज़ा आता है फिर चाहे वो बैटमैन सीरीज की फ़िल्म दा डार्क नाईट का जोकर हो या शोले का गब्बर…इतिहास गवाह है जिन जिन भी फ़िल्मों में विलेन ख़तरनाक़ हुआ है उन फ़िल्मों ने बहुत नाम कमाया है. हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में बहुत से खलनायक आये उन्होंने बॉक्स ऑफ़िस पर धमाल मचाया और चले गए लेकिन कुछ ऐसे खलनायक रहे, जिनके परदे पर निभाए गए क़िरदार इतने रियल लगते थे कि लोग रियल ज़िन्दगी में ख़ौफ़ खाते थे.
ऐसे बहुत कम ही अभिनेता हुए हैं..अमरीश पूरी के बाद अगर किसी ख़लनायक ने ख़ौफ़ मचाया था तो वो थे रामी रेड्डी. लोग उनके असली नाम से नहीं बल्कि उनके परदे पर निभाए गए क़िरदार से ज़्यादा जानते हैं…ये कभी कर्नल चिकारा बन कर आतंक फैलाते तो कभी अन्ना बन कर…इन्होने अपने अभिनय को नए आयाम दिए और एक नयी पहचान बनाई. रामी रेड्डी ही वो अभिनेता थे जिनके सामने बड़े बड़े अभिनेता पानी भरते नज़र आते थे वो उस दौर के मशहूर हीरो पर भारी पड़ जाया करते थे.

रामी रेड्डी का पूरा नाम ‘गंगासानी रामी रेड्डी’ था. इनकी 1 जनवरी, 1959 को पैदाइश आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित वाल्मीकिपुरम गांव में हुई थी. रामी रेड्डी ने हैदराबाद की उस्मानिया यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन की डिग्री ली और एक पत्रकार के रूप में एक स्थानीय अख़बार के साथ जुड़ गए इनका मन पत्रकारिता में नाम कमाने का था. लेकिन इन्हे नहीं पता था कि एक दिन ये इतने बड़े अभिनेता बनेंगे कि इनके नाम से लोग थर-थर कापेंगे.
उन्होंने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत तेलुगु सिनेमा से की थी. लेकिन जब हिंदी फ़िल्मों के ऑफर मिलने शुरू हुए तो सोचा कि क्यों न उसमें भी किस्मत आजमाई जाए. पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ दिन इन्होने मुंसिफ डेली नाम के एक लोकल उर्दू न्यूज़पेपर में काम किया. लेकिन इसी दौरान इन पर एक फ़िल्म मेकर की नज़र इन पर पड़ी और उन्होंने इन्हें अपनी फ़िल्म अंकुसम में स्पॉट नागा का क़िरदार इन्हे ऑफर किया. हमारे देश में भला कौन फ़िल्म में काम करने को मना करेगा, रामी ने इस फ़िल्म के ऑफर को तुरंत स्वीकार कर लिया और फिर उसके बाद तो रामी स्पॉट नागा के क़िरदार में ऐसे उतरे, कि करियर की पहली ही फ़िल्म ने इन्हें रातों-रात सुपरस्टार का दर्जा दिला दिया. इनकी एक्टिंग को लोगों ने खूब सराहा.

इसी साल इन्होने अभिमन्यू नाम की एक कन्नड़ फ़िल्म में काम किया हालांकि ये फ़िल्म एकदम फ्लॉप साबित हुई और इसमें रामी रेड्डी का रोल भी कुछ ख़ास नहीं था, लेकिन ये अभी शुरुवात थी फिर इसी साल इनकी एक और फ़िल्म आई जिसका नाम था जागाडेका विरूदू अथिलेका सुंदरी. इस फ़िल्म में रामी रेड्डी ने विलेन बनकर ऐसा डराया कि हर जगह इन्ही के चर्चे थे. इस फ़िल्म में हिंदी सिनेमा के बड़े अभिनेता अमरीश पुरी और श्रीदेवी भी थे, साथ ही ये वो वक़्त भी था जब चिरंजीवी को भी हिंदी दर्शक पहचानने लगे थे, इसलिए इस फ़िल्म के मेकर्स ने इस फ़िल्म को हिंदी में डब करके आदमी और अप्सरा नाम से रिलीज़ किया.
इस फ़िल्म में हिंदी भाषी सिने प्रेमियों को रामी रेड्डी का काम बेहद पसंद आया. रामी की क़िस्मत की गाडी अब चल पड़ी थी वो जिन फ़िल्मों में काम कर रहे थे वो सारी दर्शकों को पसंद आ रही थीं. सन 1990 में रामी रेड्डी की चिरंजीवी के साथ एक और फ़िल्म रिलीज़ हुई जिसका नाम था प्रतिबंध, रामी ने इस फ़िल्म में अन्ना नाम के विलेन का क़िरदार निभाया था. इस क़िरदार में रामी रेड्डी ने ऐसी जान लगाई कि ये क़िरदार हमेशा के लिए यादगार बन गया. उस वक़्त में रामी रेड्डी का ख़ौफ़ ऐसा हो गया था कि जब भी वो फ़िल्मी परदे पर आते तो लोगों के अंदर दहशत फैल जाती. हर फ़िल्म में उनका किरदार और लुक इतना भयानक और क्रूर होता था कि लोग देखते ही ख़ौफ़ खा जाते थे.

रामी की ख़ौफ़नाक आंखों और ख़तरनाक से दिखने वाले चेहरे ने लोगों के ज़ेहन में अपनी छाप छोड़नी शुरू कर दी थी. प्रतिबंध फ़िल्म की सफलता के बाद रामी रेड्डी के लिए हिंदी फ़िल्मों के दरवाज़े भी खुल गए और जब रामी रेड्डी को हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में काम करने ऑफर आया तो ये ऑफर इन्होंने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया. रामी को 1993 की सुपरहिट फ़िल्म वक्त हमारा है में मेन विलेन का क़िरदार निभाने का मिला और वो उन्होंने बहुत शिद्दत से निभाया.
अगर अपने ये फ़िल्म देखी है तो आपको कर्नल चिकारा की अंगार जैसी आंखों और ख़ौफ़नाक इरादों को आपने ज़रूर देखा होगा, कर्नल चिकारा के क़िरदार ने रामी रेड्डी को भारतीय सिनेमा के इतिहास के सुनहरे पन्नों में हमेशा के लिए अमर कर दिया. रामी ने फ़िल्मों में विलेन बन लोगों को डराया लेकिन क्या आपको पता है कि वो कॉमेडी भी बहुत अच्छी करते थे और उनकी कॉमेडी को भी दर्शकों ने खूब पसंद किया था. फ़िल्म ख़ुद्दार में रामी एक स्वामी बने थे, दरअसल उनका क़िरदार दुनिया को दिखाने के लिए नेक काम करता है लेकिन हक़ीक़त की दुनिया में वो बदमाशी की दुनिया के बादशाह होते हैं. इस फ़िल्म में उनका एक डायलॉग काफ़ी मशहूर हुआ था और वो डायलॉग कुछ यूँ था – तुमने हमारा शहद वाला रूप देखा है और अब ज़हर वाला भेष भी देख लो और इसके साथ स्वामी अपने असली रूप में आ जाता है, वहीं फ़िल्म दिलवाले में रामी का क़िरदार ऐसा था जिसमें उनके डायलॉग ना बराबर थे लेकिन अपने चेहरे के हाव-भाव से ही वो दर्शकों को डरा देते हैं.

हिंदी फिल्मों में उनके निभाए खलनायक के क़िरदारों को दर्शकों ने उन्हें खूब पसंद किया और रामी साउथ फ़िल्म इंडस्ट्री की तरह हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री पर भी राज करने लगे. उनकी खलनायकी की अदायगी का आतंक इस कदर फैल रहा था कि असल जिंदगी में भी लोग उनसे डरने लगे थे. उन्होंने अपने फ़िल्मी करियर में तक़रीबन 250 से भी ज़्यादा फ़िल्मों में काम किया.
हिंदी फ़िल्मों में रामी रेड्डी के कई किरदार निभाए जो दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय रहे, ऐसा ही एक क़िरदार था आंदोलन फ़िल्म के बाबा नायक का किरदार, गोविंदा और संजय दत्त स्टारर आंदोलन एक सुपरहिट फिल्म थी और इस बात से कोई भी इन्कार नहीं कर सकता कि बाबा नायक के किरदार के बिना वो फ़िल्म इतनी शानदार बन ही नहीं सकती थी, इस बात से शायद ही कोई इन्कार कर पाएगा कि रामी रेड्डी के अलावा बाबा नायक का किरदार इतनी गहराई से शायद ही कोई दूसरा अभिनेता निभा पाता.

फ़िल्मों में रामी रेड्डी के क़िरदार ज़्यादातर ऐसे होते थे जो या तो फ़िल्म के मेन विलेन के सबसे खास आदमी होते थे या फिर नेताओं और करप्ट बिज़नेसमैन द्वारा हायर किए जाने वाला किराए का गुंडा, ये बात सौ टका सच है कि रामी रेड्डी को एक्टिंग में कोई ख़ास महारत हासिल नहीं थी वो बस अपने डील डौल और लुक्स की वजह से इतने ज़्यादा मशहूर हुए थे.
रामी ने फ़िल्मों के साथ साथ टी वी में भी काम किया ये बात शायद ही लोगों को पता हो भले ही फ़िल्मों में वो खतरनाक किलर बने हों लेकिन अपनी ज़िन्दगी की आख़िरी फ़िल्म में उन्होंने एक बेहद ख़ास क़िरदार निभाया था और वो क़िरदार था साईं बाबा का. जी हाँ, उनकी आखिरी फ़िल्म तेलुगू भाषा की गुरुवरम में रामी रेड्डी ने साईं बाबा का क़िरदार निभाया जोकि लोगों ने काफ़ी पसंद किया. अगर उनके करियर की बेहतरीन फ़िल्मों की बात की जाये तो उन्होंने ऐलान, दिलवाले, खुद्दार, अंगरक्षक, आंदोलन, हकीकत, लोहा, चंडाल, हत्यारा, गुंडा, गंगा की कसम, दादा, शेरा, जानवर, कुर्बानियां, क्रोध, जैसी बड़ी और सुपरहिट हिंदी फ़िल्मों में काम किया था. अपनी ज़िंदगी के आखिरी सालों में ये हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री से दूर होते चले गए थे, इनकी आखिरी हिंदी फ़िल्म थी सत्यघाट जो कि साल 2003 में रिलीज़ हुई थी.

इनकी अगर निजी ज़िन्दग़ी की बात की जाये तो इनके परिवार में इनकी दो बेटियां और एक बेटा है. इनकी ज़िन्दग़ी के आख़िरी सालों में ये किडनी और लिवर की गंभीर बीमारियों का शिकार हो गए थे और बीमारी की वजह से इनकी सेहत ज़्यादा गिर गयी थी, हट्टे-कट्टे रामी रेड्डी जब किसी इवेंट में नज़र आये तो एकदम दुबले पतले रामी को देखकर फैंस हक्के-बक्के रह गए थे और इस इवेंट के बाद उनकी हालत बेहद ख़राब हो गयी थी. रामी रेड्डी को हैदराबाद के किम्स हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया था.
रामी रेड्डी दो हफ्तों तक इस हॉस्पिटल में इलाज कराते रहे लेकिन उनकी तबियत में कोई सुधार नहीं हुआ और आख़िरकार 14 अप्रैल 2011 को फिल्मों का ये बेहद खूंखार विलेन इस दुनिया- ए- फ़ानी से रुख़्सत हो से गया और इसी के साथ कर्नल चिकारा हिंदी सिनेमा के इतिहास में अपने फैंस के ज़ेहन में हमेशा के लिए बस एक याद बनकर रह गया.