मोतीलाल: 24 की उम्र में मिली थी शोहरत, देवदास के चुन्नी बाबू को.

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By Mohammad Shameem Khan

मोतीलाल के नाम से शायद आजकी युवा पीढ़ी शायद परिचित ना हो लेकिन ये नाम अपने वक़्त में बेहद मशहूर था. इनकी पैदाइश 4 दिसंबर 1910 को शिमला, पंजाब में हुआ था. उस वक़्त शिमला पंजाब का हिस्सा हुआ करता था. आज के वक़्त में शिमला हिमाचल प्रदेश का हिस्सा है. मोतीलाल का पूरा नाम मोतीलाल राजवंश था. वह शिमला के बहुत नमी परिवार से थे. इनके पिता अपने वक़्त के नामी एजुकेशनिस्ट थे.

जब मोतीलाल एक साल थे तभी उनका देहांत हो गया था. मोतीलाल की परवरसिंह उनके चाचा ने की जो उत्तर प्रदेश में एक बड़े सिविल सर्जन थे. मोतीलाल की शुरुवाती पढाई लिखाई शिमला में ही कराई गई बाद में उन्होंने कुछ वक़्त अपने चाचा के साथ उत्तर प्रदेश में बिताया फिर आगे की पढाई के लिए ये दिल्ली आ गए.

कॉलेज ख़त्म होने के बाद, मोती नौसेना में शामिल होने के लिए बंबई आए, लेकिन वह बीमार पड़ गए और नौसेना की परीक्षा में शामिल नहीं हो सके. कहते हैं की आपका भाग्य आपको वहां लेकर जाता है जिसके लिए आप बने होते हो तो मोतीलाल के साथ भी वही हुआ हुआ यूँ कि एक दिन, वह सागर स्टूडियो में एक फ़िल्म की शूटिंग देखने गये, जहाँ निर्देशक के.पी. घोष शूटिंग कर रहे थे.

निर्देशक घोष की नज़र मोतीलाल पर पड़ी और उन्हें लगा कि इस लड़के में कुछ तो बात है. 1934 में (24 वर्ष की उम्र में), उन्हें सागर फ़िल्म कंपनी की फ़िल्म शहर का जादू (1934) में नायक की भूमिका की पेशकश की गई जो उन्होंने स्वीकार कर ली.

बाद में उन्होंने सबिता देवी के साथ कई सफल सामाजिक फ़िल्मों में अभिनय किया, जिनमें डॉ. मधुरिका (1935) और कुलवधू (1937) शामिल हैं. उन्होंने सागर मूवीटोन बैनर के तहत जागीरदार (1937) और हम तुम और वो (1938), मेहबूब प्रोडक्शंस के लिए तक़दीर (1943) और किदार शर्मा की अरमान (1942) और कलियां (1944) में काम किया. उन्होंने एस.एस. वासन की फ़िल्म पैग़ाम (1959) (जेमिनी स्टूडियोज) और राज कपूर की जागते रहो (1956) में भी अभिनय किया.

1965 में, उन्होंने भोजपुरी फिल्म सोलहो सिंगार करे दुल्हनिया में भी अभिनय किया.

शायद जिस भूमिका के लिए उन्हें सबसे अधिक आलोचनात्मक सराहना मिली वह एस.एस. वासन द्वारा आर.के. नारायण की पुस्तक मिस्टर संपत (1952) के रूपांतरण में सज्जन बदमाश की भूमिका थी. उन्हें बिमल रॉय की देवदास (1955) में “चुन्नी बाबू” की भूमिका के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है, जिसके लिए उन्होंने अपना पहला फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार जीता.

बाद में जब 2002 में शाहरुख़ ख़ान को लेकर देवदास बनी तो इस भूमिका जैकी श्रॉफ में निभाई, हांलांकि जैकी ने अभिनय काफी अच्छा किया था लेकिन वह मोतीलाल जैसी अदाकारी नहीं कर सके. उन्हें दूसरा बेस्ट सहायक अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड फ़िल्म परख (1960) के लिए दिया गया.

दिलीप कुमार के साथ फ़िल्म देवदास (1955) में.
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1936 में उनकी शादी में सरोजिनी नायडू शामिल हुईं थीं लेकिन उनकी शादी तब ख़त्म हो गयी जब उनका सम्बन्ध शोभना समर्थ से हो गया. उनका नाम शोभना समर्थ से तब जुड़ा जब वो अपने पति से अलग हो गयी थीं. वह एक्ट्रेस नादिरा के साथ कई सालों तक रिलेशनशिप में रहे. जब शोभना समर्थ ने अपनी बेटी नूतन को लॉन्च फ़िल्म ‘हमारी बेटी’ (1950) बनाई तो इस फ़िल्म में उन्होंने नूतन के पिता की भूमिका निभाई. उन्होंने नूतन की ही फ़िल्म अनाड़ी में उनके अभिभावक की भूमिका भी निभाई, हालांकि इस बार भूमिका में खलनायक का स्पर्श था.

राज कपूर की मशहूर फ़िल्म जागते रहो में उन्होंने शराबी की भूमिका निभाई थी जिसके लिए उनकी ख़ूब प्रशंसा हुई थी लेकिन वास्तविक ज़िन्दगी में वह शराब और रेस के शौक़ीन थे. उन्होंने अपनी कमाई हुई सारी संपत्ति रेस और शराब में बर्बाद कर दी. बाद में उन्होंने अब दिल्ली दूर नहीं (1957), पैग़ाम, अनाड़ी (1959), परख (1960), असली नकली (1962), ये रास्ते हैं प्यार के (1963), लीडर (1964), जी चाहता है (1964), वक़्त (1965), ये ज़िन्दगी कितनी हसीन है (1966) जैसी फ़िल्मों में काम किया.

बाद में उन्होंने ‘छोटी छोटी बातें’ फ़िल्म का निर्देशन शुरू किया. इस फ़िल्म में उन्होंने अभिनय भी किया था, जिसमें उन्होंने एक बड़े पेट वाले अधेड़ उम्र के आदमी की भूमिका में अपने अभिनय से सभी को चौका दिया था, जो अपनी प्रेमिका से मिलने के बाद अपनी वैवाहिक ज़िन्दगी में असहज हो जाता है.

यह ख़ूबसूरत सब्जेक्ट वाली फ़िल्म पूरी तो हो गयी लेकिन फ़िल्म की रिलीज़ से पहले ही मोतीलाल चल बसे. 13वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार में, इस फ़िल्म को तीसरी सर्वश्रेष्ठ फ़ीचर फ़िल्म के लिए सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट का पुरस्कार दिया गया और उन्होंने मरणोपरांत सर्वश्रेष्ठ कहानी लेखक के लिए सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट का पुरस्कार मोतीलाल को दिया गया.

17 जून 1965 को मोतीलाल इस दुनिया को छोड़ कर चले गए.

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