मशहूर और मारूफ़ अभिनेता आमिर ख़ान ने अपने करियर की शुरुवात बाल कलाकार के तौर पर अपने चाचा नासिर हुसैन द्वारा निर्मित और निर्देशित फ़िल्म ‘यादों की बारात’ (1973) और ‘मदहोश’ (1974) से की. ग्यारह साल बाद वयस्क होकर केतन मेहता की फ़िल्म होली (1984) में नज़र आये लेकिन किसी ने भी उनको नोटिस नहीं किया.
आमिर ख़ान को बतौर मुख्य अभिनेता के रूप में पेश किया नासिर ख़ान के बेटे मंसूर ख़ान ने फ़िल्म क़यामत से क़यामत तक (1988) में. यह एक टीन ऐज रोमांटिक फ़िल्म थी जो बॉक्स ऑफिस पर ज़बरदस्त हिट साबित हुई. इस फ़िल्म ने पैसों की बारिश कर दी थी. फ़िल्म के गीत काफी मक़बूल हुए थे. दरअसल इस फ़िल्म से तीन लोगों को सबसे ज़्यादा फ़ायदा हुआ- आमिर ख़ान, जूही चावला और उदित नारायण. इस फ़िल्म के गीतों में उदित नारायण का गया हुआ गीत -पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा बहुत मशहूर हुआ था और आज भी उतना ही पॉपुलर है.
उसके बाद आमिर 80 और 90 के दशक की कई फ़िल्मों में दिखे. 1989 में उनकी राख और लव लव लव फिल्में रिलीज़ हुईं. 1990 में अव्वल नंबर, तुम मेरे हो रिलीज़ हुईं, ये साड़ी फिल्में औंधे मुँह गिरी. इसी साल इनकी माधुरी दीक्षित के साथ फ़िल्म ‘दिल’ रिलीज़ हुईं जोकि सुपर हिट हो गयी और ये फ़िल्म इनके करियर के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुईं.
इसके अलावा दिल है कि मंटा नहीं (1991), जो जीता वही सिकंदर (1992), हम हैं रही प्यार के (1993) इस फ़िल्म के लिए उन्होंने पटकथा भी लिखी थी. 1994 में इनकी एक फ़िल्म रिलीज़ हुईं ‘अंदाज़ अपना अपना,’ इस फ़िल्म में इनके सह-अभिनेता सलमान ख़ान थे. यह फ़िल्म बुरी तरह से फ्लॉप हो गयी थी लेकिन बाद में इस फ़िल्म को कल्ट फ़िल्म का दर्जा मिला.
1995 की फ़िल्म रंगीला में इनका काम लोगों को काफ़ी पसंद आया. इसके बाद इन्होने ये नियम बना लिया कि साल में एक या दो फ़िल्म ही करेंगे. 1996 राजा हिंदुस्तानी, 1997 की इश्क़ और 1998 की ग़ुलाम सुपर हिट साबित हुई. 1999 की सरफ़रोश भला कोई कैसे भूल सकता है . इसी साल रिलीज़ हुई फ़िल्में अर्थ और मन फ्लॉप हो गयीं. अच्छी पटकथा और गीत- संगीत होने के बावजूद इन लोगों को दर्शकों का प्यार नहीं मिला.
आमिर ख़ान ने आमिर ख़ान प्रोडक्शंस बना कर अपने पुराने दोस्त आशुतोष गोवारिकर (जिनके साथ आमिर ने 1995 की फ़िल्म बाज़ी में काम किया था) को उनकी फ़िल्म ‘लगान’ को प्रोड्यूस किया. इस फ़िल्म में आमिर ख़ान ने अभिनय भी किया था. 2001 में रिलीज़ हुई उनकी यह फ़िल्म उनके करियर की बहुत बड़ी सफल फ़िल्म साबित हुई. इस फ़िल्म को सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा के लिए भारत की तरफ़ से अकादमी अवार्ड के लिए नामांकित किया गया. यह फ़िल्म अवार्ड तो नहीं जीत सकीय लेकिन इसे पूरे विश्व से ख़ूब सराहना मिली.
आमिर अपने साढ़े हुए अभिनय के लिए जाने जाते हैं इसलिए उन्होंने जो भी क़िरदार किये वह यादगार हो गए. चाहे वो क़िरदार क़यामत से क़यामत तक का एक नवयुवक आशिक़ या राजा हिंदुस्तानी का टैक्सी ड्राइवर की भूमिका, अंदाज़ अपना अपना में चालबाज़ इंसान की भूमिका, रंगीला में मुन्ना नाम के रोमियो का क़िरदार.
फ़िल्म दिल चाहता है में दोस्तों के साथ मस्ती करता हुआ उनका क़िरदार, सरफ़रोश में देशभक्त पुलिस अधिकारी की भूमिका, रंग दे बसंती में चंद्रशेखर की भूमिका, 3 इडियट्स की रेंचो की मस्ती भरी लेकिन बेहतरीन भूमिका, तारे ज़मीन पर में टीचर की भूमिका, गजनी में गठे हुए शरीर के साथ मानसिक रोगी की भूमिका, हर किदार इन्होने दिल से जिया और उसमें जान डाल दी. पीके में उनकी निभाई भूमिका को भला कैसे भुला जा सकता है.
आमिर ख़ान सिनेमा में नए – नए प्रयोग या कुछ अनोखा करने के लिए जाने जाते है. उनकी हर फ़िल्म पहले से बिलकुल अलग होती है इसीलिए दर्शकों में उनकी फ़िल्म को लेकर हमेशा कौतुहल रहता है.
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