अदाकार राधाकिशन मेहरा हिंदी सिनेमा के एक बेहतरीन विलेन और कॉमेडियन थे. उनकी संवाद अदायगी और ज़बरदस्त एक्सप्रेशन किसी को भी उनका दीवाना बना देता था. परदे पर जब वह विलेन के अवतार में नज़र आते तो दर्शक उनके अभिनय से ख़ौफ़ खाता था लेकिन जब वह कॉमेडी करते तो हँस हँस कर दर्शकों के पेट में बल पड़ जाते. वह एक अभिनेता होने के साथ साथ एक अच्छे लेखक भी थे.
राधाकिशन की शुरुवाती ज़िंदगी और फ़िल्मों में काम करने का जूनून
राधाकिशन की पैदाइश 13 जून 1915 को दिल्ली में हुई थी. उन्हें अदाकारी करने का शौक़ बचपन से ही था. फ़िल्मों में काम पाने के लिए उन्होंने कड़ा संघर्ष किया सबसे पहले उन्होंने प्रभात फिल्म कंपनी (पुणे) ज्वाइन कर ली. वहां काम करते हुए उनकी मुलाक़ात राइटर पंडित मुखराम शर्मा से हुई. यह मुलाक़ात दोस्ती में बदल गयी. पंडित मुखराम ने इन्हे खूब प्रोत्साहित किया अदाकारी करने के लिए और वह जो फिल्में लिख रहे थे उनमें उनके लिए भी उन्होंने रोल लिखे.
राधाकिशन ने अपने करियर की शुरुवात वी. शांताराम की फ़िल्म पडोसी (1941) से की, इस फिल्म में उनकी भूमिका छोटी होते हुए भी बहुत प्रभावशाली थी. इस फ़िल्म में उनके साथ थे अनीस खातून, मज़हर खान और गजानन जागीरदार.
फ़िल्म पडोसी के हीरो अभिनेता मज़हर खान एक्टर होने के साथ साथ फिल्म निर्माता भी थे. फ़िल्म के फिल्मांकन के दौरान राधाकिशन ने अपनी एक कहानी उन्हें सुनाई जो उन्हें इतनी पसंद आयी कि उन्होंने उस कहानी पर ‘याद’ (1942) नाम की फ़िल्म बनाई. जो उस वक़्त काफ़ी मक़बूल हुई. कहानी लिखने के साथ साथ वो फ़िल्मों में अभिनय भी करते रहे. उन्हें फ़िल्मिस्तान स्टूडियो की फिल्म मजदूर में एक छोटा लेकिन बढ़िया रोल मिला जिसे उन्होंने बहुत शिद्दत से निभाया. जिसे दर्शकों से अच्छा रिस्पांस मिला.
बड़ी मुश्किलों के बाद जब मिला फ़िल्मों में पहला ब्रेक
इस फ़िल्म के बाद वह नज़र आये निर्माता पी. एल. संतोषी की फ़िल्म शहनाई में, यह फ़िल्म रिलीज़ हुई थी 1947 में. फ़िल्म में अभिनय करने के साथ-साथ उन्होंने इस फ़िल्म के संवाद भी लिखे थे. फ़िल्म में नासिर खान, इंदुमती और रेहाना ने मुख्य भूमिका निभाई थी. आपको बताते चलें कि निर्माता पी. एल. संतोषी साहब आज के वक़्त के मशहूर डायरेक्टर राजकुमार संतोषी के वालिद हैं.
राधाकिशन का काम पी. एल. संतोषी को इतना पसंद आया की उनकी हर फ़िल्म में हर फिल्म में वह नज़र आये
इस फ़िल्म के बाद तो पी एल संतोषी साहब इनके अभिनय के इतने क़ायल हुए कि राधा कृष्ण उनकी फ़िल्मों के लगभग स्थाई कलाकार ही बन गए. वह उनकी लगभग सारी फ़िल्मों में नज़र आये जैसे – खिड़की (1948), सरगम (1950), अपनी छाया (1950), निराला (1950) और छम छमा छम (1952). इस सारी फ़िल्मों में उन्होंने अच्छा काम किया लेकिन उन्हें वह सफलता नहीं मिल रही थी जिसकी उन्हें तलाश थी. फिर आयी 1956 की फ़िल्म ‘नई दिल्ली’, जिसमें उन्होंने एक दयालु दुकानदार का किरदार निभाया था जो हेरोइन वैजन्तीमाला को ग़लती से पंजाबी लड़की समझता है. इस फ़िल्म में उन्होंने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया. निर्देशक बी. आर. चोपड़ा की फ़िल्म साधना, यह फ़िल्म रिलीज़ हुई थी.
1958 में इस फ़िल्म में राधाकिशन ने फ़िल्म में कॉलेज के एक प्रोफेसर मोहन जिसका क़िरदार सुनील दत्त ने निभाया था, के पडोसी जीवन राम का किरदार निभाया था. जो प्रोफसर साहब की माँ की आखिरी इच्छा पूरी करने में मदद करते हैं. उनकी माँ की आख़िरी इच्छा होती है कि वह मरने से पहले अपनी बहु का मुँह देखें, तो राधा किशन उन्हें रजनी नाम की लड़की से मिलवाते हैं जिसका क़िरदार वैजन्तीमाला ने निभाया है. जोकि एक कोठे में काम करती है. राधा किशन सुनील दत्त को सलाह देते हैं कि उसे नकली बहु बना कर अपनी माँ से मिलवा दें. इस फ़िल्म में उनका क़िरदार कॉमिक होने के साथ- साथ नेगेटिव भी था. फ़िल्म बेगुनाह (1957) और नया दौर (1957) में भी उनका क़िरदार काफी अच्छा था.
फ़िल्म नया दौर में उन्होंने फ़िल्म के मुख्य विलेन जीवन के सहायक के रूप में दिखाई दिए. इसी दशक में उन्होंने परवरिश (1958), साधना (1958), मुक़द्दर (1950), संगीता (1950), बैजू बावरा (1952), औलाद (1954), वचन (1955), छोटी बहन (1959), सिंगापुर (1960), श्रीमान सत्यवादी (1960), करोड़पति (1961), बनारसी ठग (1962) जैसी फ़िल्मों में काम किया.
राधाकिशन और देव आनंद की दोस्ती
राधाकिशन की दोस्ती मशहूर और मारूफ़ अदाकारा देव आनंद से काफ़ी थी. और दोनों ने कई फ़िल्मों में साथ काम किया जैसे निराला (1950), एक के बाद एक (1960)- इस फ़िल्म में उनके किरदार का नाम गंगू तेली था जिसे दर्शकों से खूब प्यार मिला. इसके अलावा फ़िल्म शराबी में भी इन दोनों ने साथ काम किया.
एक अच्छे लेखक होने के नाते वह अच्छे डायलाग डिलीवरी का महत्व समझते थे. फ़िल्म छोटी बहन के सीन में जब वह घर आते हैं हैं तो उनकी पत्नी बानी लीला मिश्रा दरवाज़े पर कड़ी मिलती हैं उन्हें बुरे खबर देने के लिए- और उनको बताती हैं कि उनकी भतीजी कहीं भाग गयी है तो वह अपनी पत्नी से कहते हैं कि यहाँ क्यों कड़ी हो, क्या तुम्हारा भी इरादा है किसी के साथ भाग जाने का ? इस तरह के डायलाग से दर्शकों की हंसी छूट जाती है.
राधा किशन की ज़िन्दगी की आखिरी फ़िल्म रही देव आनंद और मधुबाला स्टारर शराबी (1964) रही. इस फ़िल्म में उनका रोल फ़िल्म के हीरो केशव (जिसका क़िरदार देव आनंद ने निभाया था) के शराबी दोस्त शंकर का क़िरदार निभाया था जो शराब से तौबा कर चुके हीरो को धोखे से शराब पिला देता है, और उसकी ज़िन्दगी बर्बाद कर देता है. इस फ़िल्म में वह एक धोखेबाज़ बने हैं जो देसी कुत्तों को रंग लगा कर विदेशी कुत्ते बना कर बेच देते हैं. यह फ़िल्म मधुबाला की बीमारी और राधा किशन की आत्महत्या की वजह से डिले हो गयी थी. मधुबाला के रोल को कांट छांट कर छोटा कर दिया गया था. फिर भी यह फ़िल्म राधा किशन की मौत के बाद रिलीज़ हो पायी थी.
राधाकिशन ज़िंदगी की त्रासदी : एक फ़िल्म की वजह से कर ली आत्महत्या
राधा किशन ने 1961 में एक फ़िल्म बनाई थी ‘अमर रहे यह प्यार’, इस फ़िल्म की कहानी भी उन्होंने खुद लिखी थी. इस फ़िल्म के सितारों में राजेंद्र कुमार, नलिनी जयवंत और नंदा थे.
नलिनी जयवंत के दूसरे हस्बैंड प्रभुदयाल ने भी इस फिल्म को को-प्रोड्यूस किया था उन्होंने इस फ़िल्म का निर्देशन भी किया था. इस फिल्म की कहानी देश के बटवारे पर आधारित थी. फिल्म सेंसर में भी अटक गयी थी. क्योंकि कवि प्रदीप ने देश के बटवारे को लेकर फिल्म के गीतों में काफ़ी तीखी टिप्पणी कर दी थी जिस पर सेंसर बोर्ड को काफ़ी आपत्ति थी. कवि प्रदीप की अपनी आवाज़ में गीत- आज के इंसान को ये क्या हो गया है और हाय सियासत कितनी गन्दी पर काफ़ी विवाद हो गया था. कोई भी वितरक इस फ़िल्म को रिलीज़ करने को राज़ी नहीं था क्योंकि इतने गंभीर विषय पर फ़िल्म को खरीदना किसी भी वितरक के लिए आत्हत्या जैसा होता.
ख़ैर किसी तरह से यह फ़िल्म रिलीज़ हुई तो बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हो गयी. दर्शकों को यह फ़िल्म बिलकुल भी पसंद नहीं आयी. राधा किशन जी का काफ़ी नुकसान हो गया, इस वजह से उनका दिमागी संतुलन बिगड़ गया. कुछ लोग कहते हैं कि वह अदाकारा नलिनी जयवंत की एकतरफ़ा मोहब्बत में गिरफ़्त थे लेकिन उनकी मोहब्बत कामयाब नहीं हुई.
18 मार्च 1962 को उन्होंने अपने घर के चौथे फ़्लोर से कूद कर आत्महत्या कर ली. फ़िल्म ‘अमर रहे यह प्यार’ ने भी अपने फ़िल्म निर्माता के साथ वही किया जो फ़िल्म छोटी छोटी बातें (1966) ने अपने निर्माता वा एक्टर मोतीलाल और फ़िल्म तीसरी क़सम के निर्माता और गीतकार शैलेन्द्र और फ़िल्म नूरजहां के निर्माता और एक्टर शेख मुख़्तार के साथ किया था, यानि अपने रचयिता की जान ले ली. इस फ़िल्मों के फ्लॉप हो जाने के बाद इन फिल्मों के निर्माता अवसाद में चले गए थे और उनकी जान चली गयी.
दोस्तों आपको राधाकिशन जी की यह कहानी कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताइयेगा.
राधाकिशन जी की फ़िल्म शराबी (1964): https://www.youtube.com/watch?v=lamWCdfjIg8&t=1256s