फ़िल्म: पंचायत (1958) (मो. रफ़ी)
निर्देशक: लेखराज भाकरी
पटकथा: लेखराज भाकरी, पंडित सुदर्शन
संवाद लेखक: लेखराज भाखरी
निर्माता: कुलदीप सहगल
एक्टर्स: राज कुमार, पंडरी बाई, श्यामा शर्मा, मनोज कुमार, जबीन जलील, नज़ीर हुसैन, कन्हैयालाल चतुर्वेदी, लीला मिश्रा, कुलदीप कौर, ब्रह्म भारद्वाज, डेज़ी ईरानी, मनोरमा, रंजना शुक्ला, ब्रह्म भारद्वाज, नर्बदा शंकर, कारदार, अल्ताफ, अमीर बानो.
संगीत : इक़बाल क़ुरैशी
छायांकन (सिनेमेटोग्राफी): रणजोध ठाकुर
संपादन: लछमनदास
कला निर्देशन: एसए वहाब
लिरिसिस्ट: शकील नोमानी और कैफ़ी आज़मी
स्वर: मो. रफ़ी, लता मंगेशकर, ऊषा मंगेशकर
कहानी:
फ़िल्म की कहानी कुछ यूँ है की चरणदास और रामदास जिगरी दोस्त हैं और रामदास की दो बेटियाँ रूपा और माया हैं. माया की शादी कहीं हुई थी और कम उम्र में ही वह विधवा हो जाती है. माया अपने बेटे के साथ उसी गांव में रहती है. रामदास की छोटी बेटी रूपा की सगाई चरणदास के बेटे गोपाल के साथ हो गयी है. चरणदास ने अपनी बेटी सुशीला की सगाई अपने दोस्त के बेटे और माया के भाई मोहन से की थी. सब कुछ ठीक चल रहा था की दोनों दोस्त के बीच में कुछ मतभेद हो गए. चरणदास की चाची ने किसी बात को लेकर चरणदास के खिलाफ पंचायत बुलाई थी और सोने पर सुहागा यह कि रामदास को न्यायधीश नियुक्त किया गया. मामला बहुत नाज़ुक हो गया जब रामदास ने दोती और रिश्तेदारी को एक किनारे रख कर न्याय का साथ दिया और चरणदास के ख़िलाफ़ फैसला सुनाता है. चरणदास ने कभी भी अपने जिगरी दोस्त से कभी भी इस तरह के फैसले की उम्मीद नहीं थी. इस बात से नाराज़ होकर चरणदास ने रामदास से अपने रिश्तेदारी के सम्बन्ध को तोड़ दिया.
इतना ही नहीं उनसे माया के देवर मोहन से भी यह बात कही कि जब तक वह माया को अपने घर रखेगा वह अपनी बेटी
वह बहुत क्रोधित हुए और उन्होंनेन्हों नेराम दास की बेटी रूपा की शादी उससे नहीं करेगा और मोहन किसी भी क़ीमत पर अपनी भाभी और अपने भतीजे को नहीं छोड़ना चाहता था. शादी तोड़ने की बात जब गोपाल को पता चली कि उसके पिता ने रूपा से होने वाली उसकी शादी तोड़ दी है तो वह बहुत नाराज़ हुआ उसने अपने पिता जी से झगड़ा भी किया. उधर मोहन अपनी मंगेतर सुशीला से बहुत प्यार करता था लेकिन अपनी भाभी की वजह से उसने चरणदास की सारी शर्ते नामंज़ूर कर दीं. जब यह बात बात उसकी भाभी माया को पता चली तो वह चरणदास के पास गयी और उसके चरणदास से विनती की कि मोहन की शादी सुशीला से करवा दे. चरण दास ने माया की बात मान ली लेकिन इस शर्त पर कि उन्हें सारी संपत्ति और घर अपनी बेटी सुशीला के नाम पर करना होगा. मोहन और सुशीला की शादी हो गयी. आगे की कहानी में क्या होता है उसके लिए आपको फ़िल्म देखनी पड़ेगी.
म्यूज़िक डायरेक्टर इक़बाल कुरेशी की बतौर संगीतकार पहली हिंदी फिल्म थी.
गाना- मैं ये सोच कर उसके डर से उठा था – इस फ़िल्म का यह गाना अब नहीं मिलता है. इसे रिकॉर्ड पर जारी नहीं किया गया था और ऐसा मालूम होता है कि इसे फ़िल्म से भी हटा दिया गया था. गाने में इस्तेमाल की गई कैफ़ी आज़मी के इस क़लाम को मदन मोहन ने अपनी फ़िल्म “हक़ीक़त” (1964) के एक गाने के लिए दोबारा इस्तेमाल किया था.
प्यारी मेरी राम दुलारी – यह गाना फ़िल्म में इस्तेमाल किया गया था लेकिन संगीत रिकॉर्ड पर जारी नहीं किया गया था. इसे एक अज्ञात पुरुष गायक ने गाया था।
1958 की फ़िल्म पंचायत संगीतकार इक़बाल कुरैशी की पहली फ़िल्म, मो. रफ़ी के गीतों ने कमाल कर दिया था.
फ़िल्म के गीत-
मिलके बैठो जोड़ो बंधन / मो. रफ़ी / लिरिक्स- शकील नोमानी
ता थैया करके आना ओ जादूगर मोरे सैयां / लता मंगेशकर- गीत दत्त / लिरिक्स- शकील नोमानी
हाल यह कर दिया ज़ालिम / गीता दत्त- मो. रफ़ी / लिरिक्स- शकील नोमानी
ज़िंदगानी रुत सुहानी (छुनक छुनक ठुनक ठुनक) / मो. रफ़ी– गीत दत्त / लिरिक्स- शकील नोमानी
मैं यह सोच कर उसके दर से उठा था / मो. रफ़ी / लिरिक्स- कैफ़ी आज़मी
तेरी याद दिल से पिया जाए ना / ऊषा मंगेशकर / लिरिक्स- शकील नोमानी
चाची अकड़ गयी जी चाची बिगड़ गयी जी / ऊषा मंगेशकर / लिरिक्स- शकील नोमानी
प्यारी मेरी राम दुलारी / इस गीत के सिंगर का नाम कहीं नहीं मिलता है / लिरिक्स- शकील नोमानी
आयी आयी बहार आज रे / लता मंगेशकर / लिरिक्स- शकील नोमानी
मैं गुण गाऊं तेरा तू ही श्याम मेरा / लता मंगेशकर / लिरिक्स- शकील नोमानी