गौरी और दीक्षित की कॉमेडी की बात ही कुछ और थी: 1927 में मिली थी पहली फ़िल्म. 

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By Filmi Khan

बीसवीं सदी के तीसरे, चौथे और पांचवें दशकों में हॉलीवुड के हास्य कलाकारों की जोड़ी लौरेल और हार्डी की जोड़ी ने बहुत सारे कलाकारों को मुतासिर किया. इन दोनों हास्य कलाकारों से प्रभावित हमारे हिंदी सिनेमा में भी पात्र गढ़े गए जोकि दर्शकों का भरपूर मनोरंजन कर सकें. इसी कड़ी में हमारे सिनेमा को पहली कॉमेडियन जोड़ी मिली – गौरी और दीक्षित की शक्ल में. हॉलीवुड के लौरेल और हार्डी की राह को अपनाते हुए गौरी और दीक्षित की टीम ने अपनी कॉमिक टाइमिंग से दर्शकों के दिलों अपनी एक ख़ास जगह बना ली. उनमें से गौरी लौरेल की और दीक्षित हार्डी की  नक़ल किया करते थे. आज हम आपको में गौरी और दीक्षित की दास्ताँ सुनाएंगे. 

गौरी-और-दीक्षित
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तो सबसे पहले गौरी की दास्ताँ शुरू करते हैं- 

गौरी-और-दीक्षित

मशहूर और मारूफ़ कॉमेडियन गौरी की पैदाइश 11 अगस्त 1901 को लाहौर में हुई थी. उनका असली नाम नज़ीर अहमद गौरी था. वह हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के पहले ग्रेजुएट और पहले कॉमेडियन थे, जिन्होंने फ़िल्मों में काम किया था. वह एक अफगानी परिवार से ताल्लुक़ रखते थे जो बाद में आकर लाहौर में बस गया था. उनके परिवार का फॅमिली बिज़नेस पर्ल का था, और अपने खानदान के वह एक ऐसे अहद इंसान थे जिन्होंने सिनेमा में काम किया था. वह हिंदी, इंग्लिश, उर्दू, फ़ारसी, अंग्रेजी, पंजाबी, गुजराती, बंगाली भाषा को बहुत अच्छी तरह से पढ़ लिख और बोल सकते थे.उन्हें साज़ बजने में भी खासी दिलचस्पी थी- वह हारमोनियम, पियानो और वॉयलिन बखूबी बजाना आता था. वह थोड़ा बहुत गा भी सकते थे, लेकिन उन्हें किताबें पढ़ने का सबसे ज़्यादा शौक़ था. उनकी हाइट यही कोई पांच फ़ीट 6 इंच के क़रीब रही होगी. परदे पर उन्होंने कॉमेडी की तमाम भूमिकाएं निभाई और असल ज़िंदगीं में भी वह काफी हंसमुख थे, सेट पर उनको शायद ही किसी ने उदास देखा हो, वह हमेशा हस्ते बोलते रहते थे. 

गौरी और दीक्षित
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गौरी का फ़िल्मों का शौक़ उन्हें मुंबई ले आया 

उन्हें बचपन से फिल्में देखने का काफी शौक़ था और उनका यही शुक उन्हें फ़िल्मी नगर बम्बई खींच लाया. गौरी साहब की पहली फ़िल्म 1927 में भगवती प्रसाद मिश्रा द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘अलादीन एंड हिज़ वंडरफुल लैंप थी,’ यह एक साइलेंट फ़िल्म थी. इस फ़िल्म में जैबुन्निशा, युसूफ, जल्लो बाई, सैय्यद हुसैन और एन. ए. गौरी थे.उसके बाद उन्होंने भगवती प्रसाद मिश्रा के ही निर्देशन में बनी फ़िल्म ‘बेंटेड डेविल’ में काम किया. निर्देशक भगवती ने मोहन भवनानी की फ़िल्म ‘मैजिक फ्लूट या जादुई बांसुरी’ (1931) में काम किया. 

गौरी और दीक्षित की नायाब जोड़ी बनाने का श्रेय फ़िल्म डायरेक्टर जयंत देसाई को जाता है.

हिंदी सिनेमा को दीक्षित और गौरी की कॉमेडियन जोड़ी बनाने का श्रेय निर्देशक जयंत देसाई को जाता है, जिन्हे कॉमेडी फिल्में बनाने में अपार दक्षता हासिल थी. 1932  में उन्होंने दीक्षित और गौरी को लेकर चार चक्रम उर्फ़ चार भोंदू बनाई. डायरेक्टर जयंत देसाई ने यह फ़िल्म एक एक्सपेरिमेंट के तौर पर बनाई थी, और उनका यह एक्सपेरिमेंट सफल रहा. इस फ़िल्म की शोहरत सातवें आसमान तक पहुंच गयी और इस  की कामयाबी ने भारतीय सिनेमा को दीक्षित और गौरी जैसे कॉमेडियन की जोड़ी मिली, जिसने सिनेमा में कॉमेडी की एक नज़ीर पेश की, लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि बहुत जल्द ही कॉमेडियन की इस जोड़ी को दर्शकों ने भुला दिया. आज शायद ही किसी को दीक्षित और गौरी की जोड़ी की कोई फ़िल्म याद हो. 

गौरी का इम्पीरिअल कंपनी के साथ अनुबंध

उन्होंने इम्पीरिअल कंपनी की फ़िल्में एक अबला, अलिफ़ लैला की. इसके अलावा उन्होंने लोकमान्य फ़िल्म कंपनी की साइलेंट फ़िल्म ‘शशिकला’ में वकील और जल्लो बाई के साथ काम किया. इस फ़िल्म का निर्देशन बी. पी . मिश्रा ने किया था. इसके बाद उन्होंने रणजीत मूवी टोन ज्वाइन कर लिया इस फ़िल्म कंपनी के साथ उन्होंने खामोश फ़िल्म: बॉम्बे दा मिस्टीरियस में शांता कुमारी और ई. बिलिमोरिया के साथ काम किया. इस फ़िल्म का निर्देशन एन. वकील थे. इसके बाद उन्होंने रणजीत मूवी टोन की ही फ़िल्में बांके सांवरिया, सिपाहसालार, दी कैप्टन में काम किया.

सिनेमा को आवाज़ मिलने के बाद गौरी का सफर

टॉकी फ़िल्मों का दौर आने के बाद उन्होंने 1932  में रणजीत मूवी टोन की फ़िल्म भूतियो महल में ई. बिलिमोरिओ और कमला के साथ काम किया. इस फ़िल्म का निर्देशन जैन देसाई और संगीत उस्ताद जेड. ए. खान ने दिया था. यह फ़िल्म अपने वक़्त में बेहद क़ामयाब रही थी. इसके बाद उन्होंने फ़िल्में चार आँखें, दो बदमाश और सती सावित्री में काम किया. 1933  में इन्होने दीक्षित के साथ भोला शिकार, भूल भुलैय्या, कृष्णा सुदामा, मिस 1933 परदेसी प्रीतम में काम किया.

गौरी और दीक्षित की कॉमेडी के तीसरे जोड़ीदार : नूर मोहम्मद चार्ली 

1934 में गौरी और दीक्षित की जोड़ी ने रणजीत मूवी टोन की ही फ़िल्में गुड़सुन्दरी में मिस गौर और ई. बिलिमोरिया के साथ, नादिरा में ई. बिलिमोरिया, ईश्वर लाल और माधुरी के साथ काम किया. इसी फ़िल्म से उनकी कॉमेडी के तीसरे जोड़ीदार नूर मोहम्मद चार्ली उनके साथ जुड़ गए. इस तिगड़ी को परदे पर देखते ही दर्शक हंसना शुरू कर देते थे.

कॉमेडी की इस तिगड़ी ने सितमगर, तूफ़ान मेल, वीर बब्रुवाहान में काम किया. 1935  में इस तिगड़ी ने नूर-ए-वतन और देश दासी और रात की रानी में कॉमेडी का ज़बरदस्त तड़का लगाया. 1936  में इन दोस्तों ने चालक चोर, मतलबी दुनिया, लहरी लाला, रंगीला राजा में काम किया. इसी साल उन्होंने दिल का डाकू में स्वर्ण लाल, खातून के साथ काम किया. 1937  में मिटटी का पूतला, ज़मीन का चाँद, परदेसी पंछी, सराफी लूट, 1938  में गौरी नूर मोहम्मद चार्ली और केसरी ने बन की चिड़िया में माधुरी और ई. बिलिमोरिया, रिक्शावाला में इला देवी और मज़हर खान के साथ काम किया. इसी साल उन्होंने बतौर लीड आर्टिस्ट फिल्म पृथ्वी पुत्र में माधुरी और बिली में इला देवी के साथ नज़र आये.1939 में इन्होने अपने जोड़ीदार दीक्षित के साथ नदी किनारे में काम किया. 1940 में इन्होने खुर्शीद और मोतीलाल के साथ फिल्म होली में काम किया. इस फ़िल्म का निर्देशन ए. आर. कारदार और संगीत खेमचंद ने तैयार किया था.

1941 में बेटी, ढंढोरा, शादी फिल्म में काम किया. 1941 की फ़िल्म ‘रिटर्न ऑफ़ तूफ़ान मेल’ में इन्होने शमीम और अरुण के साथ एक एहम भूमिका निभायी. फ़िल्म का डायरेक्शन एस. पी ईरानी और मौसिक़ीकार ज्ञान दत्त थे. रंजीत फ़िल्म कंपनी के साथ उनकी आख़िरी फ़िल्म त्याग थी. इस फ़िल्म में गौरी ने नूर मोहम्मद चार्ली, मोतीलाल, केसरी और माधुरी के साथ अपनी अदाकारी के जौहर दिखाए थे.

1943 में गौरी ने फ़िल्म मुस्कराहट में गोप, बनमाला और मोतीलाल के साथ एक खूबसूरत किरदार निभाया था. 1944 में उन्होंने फ़िल्म क़िस्मत में नरगिस, लाल हवेली में नूर जहाँ,  मौजी जीवन में सुलोचना चटर्जी, ओ पंछी में राधा रानी के साथ एक्टिंग की. 1945 में गौरी ने फ़िल्म चाँद तारा में नूर मोहम्मद चार्ली और स्वर्णलता, एक दिन का सुल्तान में मेहताब, सादिक़ अली और सिल्वर फिल्म्स की फ़िल्म नसीब में कुमार के साथ अभिनय किया. 1947 में उन्होंने फ़िल्म मेहँदी में काम किया. इसके साथ साथ वह फ़िल्म दुनियादारी में भी नज़र आये. और यह फ़िल्म 1950 में रिलीज़ हुई थी. साल 1947 में वह पाकिस्तान चले गए वहां जाकर भी उन्होंने फ़िल्मों में काम करना जारी रखा उन्होंने लाहौर की फ़िल्म इंडस्ट्री की कुछ फ़िल्में जैसे- शम्मी (1949), अलबेली (1951), फ़नकार, अनोखी मंडी, उमर मारवी, शिकारी, मिस 56 , कारनामा जैसी फ़िल्मों में काम किया.

मुल्क़ की आज़ादी के बाद गौरी पाकिस्तान चले गए 

पाकिस्तान जाकर उनकी अदाकारी की चमक थोड़ी कम पड़ गयी , वहां उनकी एक भी फ़िल्म हिट नहीं हुई, इस वजह से उन्होंने फ़िल्मों में काम करना बंद कर दिया. गौरी ने लगभग 70  फिल्मों में अभिनय किया, जिनमें 12  साइलेंट फिल्में थीं. गौरी की निजी ज़िन्दगी में झांके तो पता चलता है की उनके तीन बेटियां और एक बेटा है जिनकी पैदाइश मुंबई में हुई थी. उनकी बेटियां करांची में और बेटा कनाडा में रहता था. अभी हाल ही में उनके बेटे का कनाडा में ही इन्तेकाल हो गया है. 9  दिसंबर 1977  को वह बहुत ही मामूली बीमारी की वजह से गौरी इस दुनिया-ए-फ़ानी से रुखसत हो गए. उनका इंतेक़ाल लाहौर में हुआ लेकिन उन्हें रावल पिंडी के एक क़ब्रिस्तान में सुपुर्द-ए- ख़ाक किया गया. क्योंकि उनकी तीसरी साहबज़ादी यानी कि बेटी श्रीन गौरी पाकितान सरकार में सचिव थीं और वही रहा करती थी.  ख़ुदा उनकी मग़फ़िरत फरमाए. आमीन. गौरी के भाई का परिवार इंडिया में ही रहता है और उनका भतीजा अशरफ बट मुंबई में रहता है. 

 अब गौरी के जोड़ीदार रहे कॉमेडियन दीक्षित की कहानी 

दीक्षित 
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इस कहानी में गौरी के जोड़ीदार मनोहर जनार्दन दीक्षित, जिन्हे स्क्रीन नाम मिला -दीक्षित. इनकी पैदाइश हुई 12 नवंबर, 1906 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के सनर क़स्बे में. इनके वालिद साहब उस जगह के डिस्ट्रिक्ट जज थे. दीक्षित बचपन से ही थोड़ा मोटे थे, उनका वज़न लगभग 115  किलो रहा होगा, जब वह फ़िल्मों में आये. उनकी शुरुवाती पढाई लिखाई ज़्यादा नहीं हो पायी क्यंकि उनका दिल पढाई लिखाई में बिलकुल नहीं लगता था. लगातार दो बार कोशिश करने के बावजूद वह मैट्रिकुलेशन का एग्जाम भी पास नहीं कर पाए. पढाई में दिल ना लगने की वजह से उन्होंने पढाई बिलकुल ही छोड़ दी थी. कुछ लोग यह भी कहते हैं कि उन्हें हर वक़्त यह वहां लगा रहता था कि उन्हें कोई बीमारी है, इसलिए वह पढ़ लिख कर क्या करेंगे- जब उनकी उम्र ही काम होने वाली है. खैर वह बात अलग है वह कम जिए. 

दीक्षित को मिली फ़िल्म

कम पढ़े लिखे होने के बावजूद जब वालिद साहब से उन्हें प्रेशर मिलने लगा कि वह कुछ काम करें तो काम की तलाश में उन्होंने बम्बई का रुख किया, यहाँ उन्होंने भाई खल्ला के नवजीवन स्टूडियो में मशहूर मराठी फिल्म निर्माता मामा वारेकर के सहायक के तौर पर काम करना शुरू किया. उन्होंने कई महीनों तक स्पॉट बॉय का काम किया. उस वक़्त नवाबी शान-ओ-शौक़त पर एक फिम बन रही थी, जिस कलाकार को मोटे नवाब का किरदार निभाना था उसने उस क़िरदार को निभाने से मना कर दिया. तभी शायद किसी की नज़र उन पर पड़ी और उन्हें वह नवाब का क़िरदार मिल गया. इस तरह से वह अभिनय में आ गए और अपनी आख़िरी साँस तक अदाकारी करते रहे. 

दीक्षित फ़िल्म सोहनी महिवाल में PC: Internet

दीक्षित का संघर्ष और उनकी पहली फ़िल्म 

दीक्षित की पहली फ़िल्म स्पार्कलिंग यूथ उर्फ़ जगमगाती जवानी (1930) थी, जिसमें उनके साथ पी. जयराज और मधु काले थे. इस फिल्म का निर्माण चन्द्रिका फ़िल्म कंपनी के द्वारा और इसका निर्देशन नागेंद्र मजूमदार ने किया था. इस फ़िल्म के बाद उन्हें नवजीवन फ़िल्म कंपनी ने अपने साथ अनुबंधित कर लिया और इसी साल उनकी तीन और फ़िल्में बदमाश, बिजली और वनदेवी रिलीज़ हुई. जब फ़िल्मों को आवाज़ मिली तो उन्होंने नवजीवन फिल्म कंपनी से अनुबंध तोड़कर रंजीत मूवी टोन में काम करना शुरू कर दिया. यही पर उनकी मुलाक़ात गौरी से हुई. 1932  में उन्होंने सिपाह सालार और बग़दाद का बादशाह फिल्म में काम किया. और उनकी ज़िन्दगी में वह फिल्म आयी जिसने उन्हें शोहरत की बुलन्दियों पर पंहुचा दिया.  इस फ़िल्म में उनके साथ गौरी, ई. बिलिमोरिया और माधुरी ने काम किया था. 

गौरी और दीक्षित की सफल जोड़ी का आगाज़ 

फ़िल्म की शोहरत के बाद तो उन्हें और गौरी को कॉमेडी का बादशाह और सरताज की उपाधि से नवाज़ा जाने लगा था. उस वक़्त के रिसाले और न्यूज़ पेपर में इनकी तारीफ के क़सीदे गढ़े जाते थे, यह जोड़ी इतनी पॉपुलर हो गयी थी कि फ़िल्मों में लोग सिर्फ इन्हीं कि कॉमेडी देखने आते थे और इनके परदे पर आते ही तालियों और सीटियों से स्वागत किया जाता था. लोगों ने इस कॉमेडी की जोड़ी को तस्लीम कर लिया था. हॉलीवुड की कॉमेडियन जोड़ी लारेल और हार्डी की तरह ही गौरी और दीक्षित की जोड़ी की हर जगह धूम होती थी. इस कॉमेडी जोड़ी के बन जाने की वजह से रंजीत मूवी टोन के हाथों तो जैसे खज़ाना ही लग गया. और प्रोडक्शन हाउस ने वक़्त की नज़ाकत को समझते हुए आनन् फानन में लगभग आधा दर्ज़न फ़िल्में बना डालीं. वह फ़िल्में कुछ यूं थीं – चार चक्रम (1932), भूतिया महल(1932), दो बदमाश (1932), भोला शिकार(1933), भूल भुलैय्या (1933), विश्वमोहिनी(1933) और नादिरा (1934). 

रणजीत स्टूडियो में आग लग जाने कि वजह से गौरी और दीक्षित की ज़्यादातर फ़िल्मों के नेगेटिव और प्रिंट्स जल कर ख़ाक हो गए और जो फ़िल्में बच गयीं वह ज़माने की बेक़दरी का शिकार हो गयी, अभी शायद ही इस जोड़ी की की फ़िल्म मिल जाये. रणजीत स्टूडियो में लगी आग में जिन फिल्मों के प्रिंट बच गए वह फ़िल्में आप की सेवा में (1947), जीवन यात्रा (1946) और पी. एन. अरोरा की फ़िल्म पगड़ी शामिल है. 

दीक्षित के करियर की इम्पोर्टेन्ट फ़िल्म:  पगड़ी

फ़िल्म पगड़ी – इस  फ़िल्म में कॉमेडियन दीक्षित का रोल सीधे सादे रामु चाचा का है जो किसी ख़ाली पड़े आलीशान मकान में चोरी से प्रवेश करके उसे अपना ठिकाना बना लेते हैं और कई बेसहारा व बेघर लोगों को उस घर में आसरा देते हैं, और जब उस घर का असली मालिक जिसका किरदार अदाकार गोप ने निभाया था, तो इस रहस्य से पर्दा उठता है की घर दरअसल किसका है. घर का असली मालिक रामु चाचा की सादगी और दरिया दिली का क़ायल हो जाता है. इस फ़िल्म में दीक्षित और गोप के अलावा कामिनी कौशल, वस्ती हैं. इस फ़िल्म में दीक्षित के सादगी भरे अभिनय की वजह से फ़िल्म के सारे किरदार उनके सामने बौने से नज़र आते हैं. 

दीक्षित का यूँ अचानक दुनिया से कूच कर जाना 

फ़िल्म पगड़ी के निर्माण के दौरान दीक्षित को दिल का दौरा पड़ा था लेकिन उनकी तबियत में सुधार होने की वजह से फ़िल्म को पूरा कर लिया गया. प्रोडूसर मज़हर खान की फ़िल्म ‘सोना’ (1948) भी दीक्षित की स्वस्थ्य की वजह से लम्बे समय तक अधूरी पड़ी रही और ख़ुदा ख़ुदा करके किसी तरह यह फ़िल्म पूरी कर ली गयी. यह दोनों ही फिल्में उनके करियर की आख़िरी फ़िल्में साबित हुईं . 29 जून, 1949 को उन्हें एक और घातक दिल का दौरा पड़ा और वह इस फ़ानी दुनिया से कूच कर गए. जब उनकी मृत्यु हुई तब वह सिर्फ 43 साल के थे. दीक्षित ने अपने 17 साल के लम्बे फ़िल्मी करियर में 4  साइलेंट और 66 टॉकी फिल्मों में काम किया और अपनी इन फिल्मों से वह सदा के लिए अमर हो गए. 

गौरी और दीक्षित: Film-Comedy of Error
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गौरी और दीक्षित की कॉमेडी का सफ़र 1947 में ख़त्म हो गया 

1947 में गौरी के पाकिस्तान चले जाने से यह जोड़ी टूट गयी और 1949 में दीक्षित के इस दुनिया से कूच कर जाने से इस जोड़ी का आस्तित्व ही ख़त्म हो गया.  इस जोड़ी की वजह से जो ख़ाली जगह हो गयी थी उसे पूरा करने के लिए गोप और याक़ूब की जोड़ी बनायीं गयी जोकि काफी सफल रही. गौरी और दीक्षित की यह कहानी आपको कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताइयेगा. शुक्रिया. 

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