फ़िल्म डायरेक्टर प्रोड्यूसर किदार शर्मा अपनी किसी फ़िल्म का संगीत तैयार करवा रहे थे. संगीत की रिहर्सल के दौरान उन्हें लगा कि दरवाज़े की ओट में कोई उनका संगीत सुन रहा है लेकिन उन्होंने इसे अपना वहम समझा और अपने काम में बिजी हो गए लेकिन जब उन्हें दूसरे दिन भी यही लगा तो उन्होंने अपने वहम को ख़त्म करने का सोचा और दरवाज़ा खोल के देखा तो एक नौजवान सामने खड़े मुस्कुरा रहे थे तो किदार शर्मा ने उनसे यह करने का सबब पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि सुना है कि आप जब किसी से ख़ुश होते हो तो उसे एक चव्वनी देते हैं ? किदार शर्मा उस नौजवान के कॉन्फिडेंस को देखकर मुस्कुरा के बोले, बरख़ुरदार आपने सही सुना है. यह बात सुन कर वह नौजवान बोलै, “मैंने एक धुन बनाई है, कल आपको सुनाऊंगा. अगर आपको अच्छी लगे तो मुझे भी चवन्नी दीजिएगा.”
दूसरे दिन वह नौजवान अपने हारमोनियम के साथ आया आया और बहुत बढ़िया धुन सुनाई. उस नौजवान की धुन सुनकर किदार शर्मा ने अपनी जेब में हाथ डाला और 100 का नोट निकाल कर रख दिया. वह नौजवान बोलै लेकिन आप तो चव्वनी देते हैं. किदार शर्मा ने कहा, “तुम्हारी यह धुन अनमोल है.” उस नौजवान के जाने के बाद किदार शर्मा ने भविष्यवाणी की थीं यह नौजवान एक दिन बहुत बड़ा संगीतकार बनेगा और हुआ भी कुछ ऐसा ही. उस नौजवान ने एक से बढ़कर एक गीत रचे. उस नौजवान का नाम था – मदन मोहन.
मदन मोहन ने जो धुन किदार शर्मा को सुनाई थीं उसका इस्तेमाल उन्होंने अपने संगीत निर्देशन की फ़िल्म शराबी (1964) में किया था. उस धुन पर बोल लिखे थे राजेंद्र कृष्णन ने- वह गीत कुछ यूँ था –
सावन के महीने में.
एक आग सी लगीं सीने में,
लगती है तो पी लेता हूँ,
दो चार घडी जी लेता हूँ.
इस गीत को मो. रफ़ी ने आवाज़ दी थीं और देव आनंद पर इसे फ़िल्माया गया था. मदन मोहन ने अपने करियर की शुरुवात फ़िल्म आँखें (1950) से की थीं.