आज आपको हम एक ऐसी अभिनेत्री-गायिका की कहानी बताने जा रहे हैं जिसने सिनेमा के परदे पर आकर अपनी आवाज़ के जादू से धूम मचा दी थी लेकिन उसका सिक्का चला अदाकारी में चला, उसकी आवाज़ को वक़्त के साथ लोगों ने भुला दिया लेकिन वह याद रह गयीं एक बेहतरीन कलाकार के रूप में. परदे पर उन्होंने दुष्ट कोठे वाली का क़िरदार ज़्यादा निभाया, जोकि काफ़ी मशहूर हो गया था, आप उन्हें पारो कहिये या पारो देवी दोनों एक ही इंसान के नाम हैं, अक्सर लोग पारो और पारो देवी नाम में कंफ्यूज हो जाते हैं तो दोस्तों आज आपको अदाकारा गायिका पारो देवी की कहानी सुनाएंगे.
अदाकारा पारो के बारे में सआदत हसन मंटो अपनी किताब ‘स्टार्स फ्रॉम अनऑथर स्काई’ में लिखते हैं कि वो मेरठ की शिष्टाचार थीं, जहां वह शहर के सभी रईसों लोगों के बीच काफी पॉपुलर थीं लोग उनके कोठे पर बार बार आना पसंद करते थे, उनके क़द्रदानों में मशहूर और मारूफ़ शायर जोश मलीहाबादी और सागर निज़ामी भी शामिल थे.
वह आर्थिक रूप से काफ़ी संपन्न थीं और चाहती थीं कि वह एक अदाकारा बन जाए। मंटो ने अपनी किताब में इस बात का ज़िक्र नहीं किया है कि वह किस तरह से फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी लेकिन हाँ उन्होंने अपने कुछ चाहने वालों से अपनी इस इच्छा का ज़िक्र ज़रूर किया होगा कि वह एक अभिनेत्री बनना चाहती हैं और शायद उनमें से किसी एक ने फिल्म निर्माता शशधर मुख़र्जी को उनका नाम सुझाया हो जो उस वक़्त अपनी फिल्म शिकारी (1946) के लिए कलाकारों को अंतिम रूप दे रहे थे. यहाँ ध्यान देने लायक एक दिलचस्प बात और है कि उस वक़्त जोश मलीहाबादी और सागर सरहदी, ये दोनों फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए थे.
पारो देवी ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत फिल्म ‘शिकारी’ (1946) से की। इस फिल्म में अशोक कुमार और वीरा मुख्य भूमिकाओं में थे। पारो देवी ने इस फिल्म में सह- अभिनेत्री के तौर पर बर्मी आदिवासी लड़की की भूमिका निभायी थी. फिल्म में उनका क़िरदार बेहद आक्रामक था. इस क़िरदार के लिए फिल्म के डायरेक्टर सावक वाचा को उनसे अभिनय करवाने बेहद मशक़्क़त करनी पड़ी थी, खासकर संवाद अदायगी में. इस फिल्म से जुड़ी कुछ मज़ेदार बात यूं है कि इस फिल्म में किशोर कुमार और मशहूर कॉमेडियन महमूद ने भी भूमिका निभायी थी. इस फिल्म की पटकथा सआदत हसन मंटो ने लिखी थी, साथ ही इस फिल्म का संगीत अनिल चंद्र सेन गुप्ता और सचिन देव बरमन ने दिया था. फिल्म में कुल पांच गीत थे। पारो देवी ने एक सोलो गीत और एक गीत किशोर कुमार के साथ डुएट गया था. पारो देवी ने अभिनय के मुक़ाबले में गीत ज़्यादा बेहतर ढंग से गया था क्योंकि स्वाभाविक रूप से वह गायन से जुड़ी हुई थीं. उनका गाया हुआ गीत “छुपो छुपो ओ मरने से डरने वालों” उन पर ही फिल्माया गया था. फ़िल्म रिलीज़ होने के साथ ही बॉक्स-ऑफिस पर हिट हो गयी थी. इसके साथ ही पारो देवी ने एक अभिनेता-सिंगर के तौर पर फिल्म इंडस्ट्री में उनके आगाज़ की छाप छोड़ दी थी.
1946 से 1950 के दौरान, पारो देवी ने कुल 16 फिल्मों में अभिनय किया, लेकिन कुछ फिल्मों को छोड़ दिया जाये तो उन्होंने ज़्यादातर जिसे एक साइड हीरोइन/चरित्र अभिनेत्री के तौर पर ही काम किया. इस अवधि के दौरान, उन्होंने लगभग 40 गाने गाए जो उन पर ही फिल्माएं गए. हाँलांकि उनकी अलग तरह की आवाज़ हिंदी सिनेमा के ट्रेडिशनल लव सांग्स में फिट नहीं बैठती थी, इस वजह से म्यूज़िक डायरेक्टर्स ने उनसे गीत नहीं गवाएं और अगर गवाएं भी तो वह गीत उन्ही पर फिल्माएं गयें. काफ़ी रिसर्च के बाद भी यह पता नहीं चलता है कि उन्होंने किसी अभिनेत्री के लिए प्लेबैक सिंगिंग की हो. दूसरी प्लेबैक सिंगर्स ने उनके लिए गया जिसे उन्होंने लिप सिंक किया हो, उदाहरण के लिए, 1949 में रिलीज़ हुई दिलीप कुमार, कामिनी कौशल और पारो देवी के अभिनय से सजी फिल्म ‘शबनम’, इस फिल्म में शमशाद बेगम ने उनके लिए चार गाने गाए, जिनमें “तुमहरे लिए हुई बदनाम” जैसा प्रमुख गीत शामिल हैं. इस फ़िल्म में उन्होंने अपने करियर की सबसे यादगार भूमिका निभायी थी. यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर काफ़ी सफल फिल्म साबित हुई थी. 1946 में इन्होने “Eight Days” में काम किया था.
हीरा (1947) में, उन्होंने मुख्य भूमिका निभायी थी, फिल्म में इनके हीरो ‘ईश्वरलाल’ थे जिन्होंने फिल्म का निर्देशन भी किया था. फिल्म में 11 गानों में से, पारो देवी ने दो सोलो और युगल द्वारा 8 गाने गाये थे। इस फिल्म के गीत अपने वक़्त में काफ़ी मशहूर हुए थे। फिल्म का एक गीत तो लोग आज भी याद करते हैं – चले आना मोरे राजा वादा याद करके – ये गीत जी. एम. दुर्रानी के साथ गाया गया ये युगल गीत, बहुत लोकप्रिय हो गया था. यह गीत क़मर जलालाबादी द्वारा लिखा गया और हुस्नलाल और भगतराम द्वारा रचित था। 1947 की ही फिल्म अमर आशा में भी इन्होने सितारा देवी के साथ मुख्य भूमिका निभाई थी। इस फिल्म में ग़ुलाम मोहम्मद और ईश्वर ने बतौर हीरो मुख्य भूमिका निभाई थी.
1949 में रिलीज़ हुई फिल्म करवट में भी ये नज़र आयीं थी इस फिल्म में मुख्या भूमिका में लीला मिश्रा और जीवन मुख्या भूमिका में थे। इस फिल्म में इन्होने तीन गीत गए थे – “एक रोग लगा बैठी करके मैं हाय” जो कि डी एन मधोक द्वारा लिखा गया था, दूसरा गीत जो उस वक़्त काफ़ी मशहूर हुआ था – “दीवाना गया दामन से लिपट” ये गीत सैफ़ुद्दीन सैफ़ ने लिखा था, निगाहें मिलाने को जी चाहता है -यह गीत भी बहुत ही पॉपुलर हुआ था. इस फिल्म का संगीत हंसराज बहल द्वारा तैयार किया गया था.
1946 से 1950 की अवधि के दौरान, पारो देवी ने दो भाई (1947), घर की बहू (1947, कोहिनूर पिक्चर्स के लिए जी. के. देवरे द्वारा निर्देशित ) हीरा (1947), शबनम (1949), सरगम (1950), और बिजली (1950, एक सामाजिक फिल्म, जो कि हिंदुस्तान चित्र , बॉम्बे के लिए सुजिल साहू द्वारा निर्देशित एक सामाजिक फिल्म थी, अंगारे (1954) सहित कई फिल्मों में सहायक भूमिकाएं निभाईं. 1954 में ही रिलीज़ हुई फिल्म ‘गुज़ारा’ में इन्होने मुख्य भूमिका निभायी थी. इस फिल्म में करण दीवान इनके हीरो थे,और फिल्म का निर्देशन एस. एम. यूसुफ़ ने किया था.
लगभग 50 के दशक के मध्य से, पारो देवी ने ज़्यादातर चरित्र भूमिकाओं में काम किया। अगर उनकी फिल्मोग्राफी देखी जाये तो वह अपने अभिनय करियर में ज़्यादा सक्रिय थीं, जो लगभग 35 वर्षों तक फैली हुई थी, जिसके दौरान उन्होंने 88 फिल्मों में अभिनय किया.
पारो देवी ने पारो पिक्चर्स के बैनर के तहत नखरे (1951) का भी निर्माण किया था। इसके अलावा वो फिल्म जाल साज़ (1959) मेरी सूरत तेरी आँखें (1963), आरज़ू (1965), आग और दाग़ (1965) फिल्मों में नज़र आईं.
70 के दशक में वह दुष्ट कोठे वाली बाई के क़िरदार में नज़र आईं – जैसे कि मोम की गुड़िया (1972), मेरा गांव मेरा देश (1971), महबूब की मेहँदी (1971), तेरे मेरे सपने (1971), हस्ते ज़ख़्म (1973), सोमेश की माँ का क़िरदार में नज़र आईं तो फिल्म शराफत में (1970) में केसर बाई, गंगा की सौगंध (1978) जैसी फिल्मों में छोटे मोटे मगर इम्पोर्टेन्ट भूमिकाएँ निभाती नज़र आईं.
पारो अभी ज़िंदा हैं या इस दुनिया- ए- फ़ानी से रुख़्सत हो गयी हैं इसका कुछ भी पता नहीं चलता है. आपको पारो देवी की यह कहानी कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताइयेगा.