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गुलशन बावरा ने बंटवारे के वक़्त अपने माता-पिता को आँखों के सामने मरते हुए देखा: 1959 में मिला पहला ब्रेक

“मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती”, “यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िन्दगी” यह दोनों गीत किसी भी इंसान की ज़िन्दग़ी को बख़ूबी बयाँ करता है क्योंकि देश और दोस्तों की वजह से किसी भी इंसान की पहचान होती है. क्या आपको पता है कि इन गीतों को लिखने वाला गीतकार कौन है? इन ख़ूबसूरत गीतों लिखने वाले गीतकार का नाम है- गुलशन बावरा 

गुलशन बावरा
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गीतकार गुलशन ने झेला बंटवारे का दंश

गुलशन बावरा का असली नाम गुलशन मेहता था और इनकी पैदाइश हुई 12 अप्रैल, 1937 को अविभाजित भारत के लाहौर के पास शेखुपुरा (अब पाकिस्तान) में हुआ था. उनकी माँ विद्यावती एक धार्मिक प्रवृति की महिला थीं जिनकी संगीत में काफी रूचि थी. नन्हा गुलशन अपनी माँ के साथ धार्मिक कार्यक्रमों में जाया करते थे जहाँ वह भजन कीर्तन में भाग लिया करते थे और शायद यहाँ से उनकी संगीत के प्रति एक ख़ूबसूरत भावना जाग्रत हुई. जब वह 10 साल के थे तो उन्होंने और उनके परिवार ने देश के विभाजन का दंश झेला. गुलशन ने अपनी आँखों के सामने अपने माता पिता और चाचा का दंगाइयों के द्वारा क़त्ल देखा. किसी तरह से उन्होंने और उनके भाई ने अपनी जान बचाई. विभाजन के बाद वह अपनी बहन के पास जयपुर आ गए. जब दिल्ली में इनके भाई की जॉब लगी तो ये भाई के पास रहने आ गए और यहाँ उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया. अपनी पढाई के दौरान वह शायरी करने लगे थे. गुलशन कुमार बावरा फिल्मों में ही काम करना चाहते थे इसी वजह से उन्होंने 1955 में मुंबई में रेलवे क्लर्क के रूप में काम करना स्वीकार कर लिया. 

गुलशन बावरा
गुलशन बावरा
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घर चलाने के लिए की रेलवे में क्लर्क की नौकरी

मुंबई में वह क्लर्क की नौकरी कर तो रहे हे लेकिन उनके अंदर का कलाकार उन्हें हमेशा शायरी और कविता लिखने को प्रेरित करता रहता था. नौकरी करने के साथ साथ वह फिल्म इंडस्ट्री में काम ढूंढ़ते रहते थे. इन्ही संघर्ष के दिनों में इनकी मुलाक़ात मशहूर संगीतकार कल्याण वीर जी शाह से हुई. कल्याणजी को जब उन्होंने अपनी कविता सुनाई तो उन्हें बेहद पसंद आयी और कल्याण जी ने गुलशन बावरा को फ़िल्म चन्द्रसेना में गीत लिखने का मौक़ा दिया. उनका पहला हिंदी फ़िल्म गीत ‘मैं क्या जानू काहे लागे ये सावन मतवाला रे’ और इस गीत को आवाज़ दी थी लता मंगेशकर ने. इस गीत को कुछ ख़ास सफलता नहीं मिली. गुलशन बावरा जी को अगला मौक़ा भी कल्याणजी आनंदजी के संगीत निर्देशन में फ़िल्म ‘सट्टा बाज़ार’ में मिला. इस फ़िल्म के लिए उन्होंने 3 गीत लिखे थे. इस फ़िल्म के लिए पहले हसरत जयपुरी, इंदीवर और शैलेन्द्र से बात हो गयी थी लेकिन जब फ़िल्म वितरक और प्रोड्यूसर  शांतिभाई पटेल ने गुलशन बावरा के लिखे गीत सुने तो बहुत ख़ुश हुए और उन्होंने गीतों को ज्यों के त्यों ही रखने के निर्देश दिए. 

गुलशन के बस एक गीत ने उनका नाम “बावरा” और ज़िंदगी दोनों बदल दी

उनका नाम गुलशन बावरा कैसे पड़ा इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है दरअसल गुलशन जब फ़िल्म वितरक और प्रोड्यूसर शांतिभाई से मिले तो काफी रंग बिरंगे कपड़े पहने हुए थे. जिसे देख कर शांतिभाई ने उन्हें कहा कि यह तो बिलकुल बावरा सा है यानी कि पगला सा, बस तभी से वह गुलशन बावरा हो गए. गुलशन बावरा ने कल्याणजी आनंदजी से संगीत निर्देशन में क़रीब 69 गीत लिखे, जबकि आर. डी. बर्मन के लिए क़रीब 150 गीत लिखे थे. उन्होंने फ़िल्म हाथ की सफाई (1974), त्रिमूर्ति (1974), रफू चक्कर (1975), कस्मे वादे (1978), सनम तेरी क़सम (1982), अगर तुम ना होते (1982), सत्ते पे सत्ता (1982), यह वादा रहा (1982), और पुकार (1983) जैसी फिल्मों के लिए गीत लिखे. 

गुलशन गीतकार होने के साथ साथ अदाकार और गायक भी थे

गुलशन बावरा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे उन्होंने गीत लिखने के साथ साथ फिल्मों में एक्टिंग भी की. इनमें फ़िल्म उपकार, विश्वास, ज़ंजीर, पवित्र पापी, अगर तुम ना होते, बईमान, बीवी हो तो ऐसी प्रमुख हैं. फिल्मों में एक्टिंग करने के साथ साथ उन्होंने फ़िल्म सत्ते पे सत्ता के लिए पार्श्वगायन भी किया वह गीत था ‘प्यार हमें किस मोड़ पे ले आया,’ जिसमें उन्होंने किशोर कुमार, भूपिंदर सिंह, राहुल देव बर्मन, और सपन चक्रबोर्ती के साथ गया. 

गुलशन बावरा को उनके 49 साल के फ़िल्मी करियर में बतौर सर्वश्रेष्ठ गीतकार के तौर पर फ़िल्म उपकार (1967) में मेरे देश की धरती और फ़िल्म ज़ंजीर (1973) में यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िन्दग़ी’ गीत लिखने के लिए फ़िल्म फेयर पुरुस्कार मिला था.   

उन्होंने 7 साल तक बोर्ड ऑफ़ इंडियन परफार्मिंग राइट सोसाइटी के डायरेक्टर के पद पर भी काम किया था. 

मर कर भी लोगों के काम आएंगे गुलशन, देह मेडिकल कॉलेज में दान कर दी

अपने गीत लेखन, अभिनय कौशल और आवाज़ से दर्शकों को मदहोश कर देने वाले गुलशन बावरा ने 7 अगस्त 2009 को आख़िरी सांस ली और उनकी इच्छा के अनुसार उनकी बॉडी को जे. जे. अस्पताल में शोध करने के लिए दान कर दिया गया. उनकी आख़िरी हिट फ़िल्म हक़ीक़त (1995) थी और आख़िरी फ़िल्म ज़ुल्मी (1999) थी. उनके लिखे हुए गीत आज भी कई मौक़ों पर सुने जा सकते हैं. 

गीतकार गुलशन बावरा के सदाबहार गीत : https://www.youtube.com/watch?v=qdeDYt0I0b8

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