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फ़िल्म ‘जॉयलैंड’ (2022)

फ़िल्म 'जॉयलैंड' देखी तो दिमाग में सबसे पहला सवाल यह आया कि क्या हम कभी अपना जॉयलैंड ढून्ढ पाएंगे ?

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शाहरुख ख़ान की फ़िल्म ‘जवान’ 7 सितम्बर को रिलीज़ हो गयी है.

'बेटे को छूने से पहले बाप से बात करो.' शाहरुख़ ख़ान की फ़िल्म 'जवान' का डायलाग

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Actor Naveen Nischol Life history: Career and Death

एक बहुत ही मशहूर  क़िस्सा उस वक़्त मशहूर हुआ था जब नवीन स्टारडम में इतने मग़रूर हो  गए थे कि उन्होंने फ़िल्म 'परवाना' में अमिताभ बच्चन के साथ एक फ्रेम में खड़े होने से इंकार कर दिया था, फिर गुरबत के ऐसे दिन भी आए जब काम पाने के लिए उन्होंने उन्हीं अमिताभ बच्चन की मदद ली और फ़िल्म देशप्रेमी में उनके साथी कलाकार के तौर पर काम किया. इस फ़िल्म का एक गीत बहुत मशहूर हुआ था- जा जल्दी भाग जा, नहीं बाबा नहीं..

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Biography of Super Star Rajesh Khanna

जून 2012 में, यह खबर मिली थी कि राजेश खन्ना का स्वास्थ्य खराब हो रहा था. 23 जून को उनके ख़राब हेल्थ की वजह से मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती कराया गया था. 8 जुलाई को उनके हेल्थ में कुछ सुधार होने की वजह से छुट्टी मिल गयी थी.  फिर 14 जुलाई को, अचानक तबियत ख़राब होने की वजह से उन्हें अस्पताल में फिर भर्ती कराया गया लेकिन 16 जुलाई को उन्हें छुट्टी मिल गई थी. 18 जुलाई 2012 को मुंबई के उनके बंगले, आशीर्वाद में वो दुनिया- ए-फ़ानी से रुखसत हो गए. उनके इंतेक़ाल के बाद उनके सह-कलाकार मुमताज ने कहा कि खन्ना पिछले वर्ष की अवधि के लिए कैंसर से पीड़ित थे.

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सिनेमा के शुरुवाती दौर के संगीतकार: 1933 में की अपने करियर की शुरुवात लेकिन लोग उन्हें भूल गए.

हिंदुस्तान में जब सिनेमा की शुरुवात हुई तो बहुत से कलाकारों ने इसमें अपना योगदान दिया और वक़्त के साथ कहीं भुला दिए गए या किसी ने उनको जानने की कोशिश भी नहीं की. उनकी यादों पर वक़्त की ऐसी आंधी चली कि आज उनकी कोई भी तस्वीर भी उपलब्ध नहीं है. उसी तरह के एक कलाकार थे संगीतकार मुश्ताक़ हुसैन.

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राधारानी: 1930 – 40 के दौर की एक बेहतरीन अभिनेत्री की ज़िन्दगी की दास्तान

1938 में उनकी एक तेलुगु फ़िल्म भक्त-जयदेव रिलीज़ हुई और इसी साल वह मुंबई वापस आकर वाडिया मूवीटोन के साथ अनुबंधित हो गयीं और इसी साल उनकी फ़िल्म सुनहरे बाल रिलीज़ हुई और फिर यहाँ उन्होंने 7 स्टंट/एक्शन फिल्में कीं. इसके बाद उन्होंने इस प्रोडक्शन हाउस से अपना अनुबंध या कॉन्ट्रैक्ट तोड़ दिया और फ्रीलांसर के तौर पर काम करने लगीं और विभिन्न बैनर्स की और 18 फिल्मों में काम किया. उन्होंने उस वक़्त बनने वाली लगभग हर भाषा की फ़िल्म में काम किया.

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राधाकिशन: एक बेहतरीन कॉमेडियन, 1961 में एक फिल्म बनाई लेकिन सेंसर बोर्ड की वजह से सुसाइड कर लिया.

राधाकिशन की दोस्ती मशहूर और मारूफ़ अदाकारा देव आनंद से काफ़ी थी. और दोनों ने कई फ़िल्मों में साथ काम किया जैसे निराला (1950), एक के बाद एक (1960)- इस फ़िल्म में उनके किरदार का नाम गंगू तेली था जिसे दर्शकों से खूब प्यार मिला. इसके अलावा फ़िल्म शराबी में भी इन दोनों ने साथ काम किया.

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गुलशन बावरा ने बंटवारे के वक़्त अपने माता-पिता को आँखों के सामने मरते हुए देखा: 1959 में मिला पहला ब्रेक

गुलशन जब 10 साल के थे तो उन्होंने और उनके परिवार ने देश के विभाजन का दंश झेला. गुलशन ने अपनी आँखों के सामने अपने माता पिता और चाचा का दंगाइयों के द्वारा क़त्ल देखा. किसी तरह से उन्होंने और उनके भाई ने अपनी जान बचाई. विभाजन के बाद वह अपनी बहन के पास जयपुर आ गए. जब दिल्ली में इनके भाई की जॉब लगी तो ये भाई के पास रहने आ गए और यहाँ उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया. अपनी पढाई के दौरान वह शायरी करने लगे थे. गुलशन कुमार बावरा फिल्मों में ही काम करना चाहते थे इसी वजह से उन्होंने 1955 में मुंबई में रेलवे क्लर्क के रूप में काम करना स्वीकार कर लिया. 

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नवाब कश्मीरी: 1933 की फ़िल्म ‘यहूदी की लड़की’ में काम किया, सिनेमा के शुरुवाती दौर के कलाकार..

नवाब ने अपने करियर की शुरुआत थिएटर से की थी. वह इंपीरियल थिएटर कंपनी के साथ एक लोकप्रिय स्टार थे और उनके नाटक 'खूबसूरत बाला', 'नूर ए वतन' और 'बाग ए ईरान' के ज़रिये बहुत मशहूर थे.बाद में नवाब ने  सेठ सुख लाल करनानी के थिएटर कंपनी अल्फ्रेड थिएटर बॉम्बे ज्वाइन कर ली और नवाब उनके सैलरी वाले आर्टिस्ट के तौर पर काम करने लगे.  बाद में नवाब बी एन सरकार के स्वामित्व वाले नए थिएटर में शामिल हो गए, सही मैनों में कहा जाये तो बी. एन. सरकार नवाब कश्मीरी के अभिनय के बहुत बड़े प्रशंसक थे.

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रुस्तम-ए-हिन्द दारा सिंह : 500 कुश्ती के मैच खेले लेकिन हारे.

जब कभी भी कुश्ती की बात होगी तो रुस्तम-ए-हिन्द दारा सिंह का नाम सबसे पहले आएगा. आज भले ही वो हमारे साथ ना हों लेकिन उनसे जुडी तमाम यादें आज भी हमारे ज़हन पर ताज़ा हैं. उन्होंने जो भी काम किया बहुत ही शिद्दत के साथ किया. अगर वो कुश्ती खेले तो ऐसे खेले कि 500 मैचों में उन्हें कोई हरा नहीं पाया और अभिनय ऐसा किया कि आज भी लोगों को टीवी सीरियल के भगवान हनुमान लोगों को भुलाये नहीं भूलते. पंजाब का ये शेर आज भी कई लोगों के दिल ओ दिमाग़ में एक मीठी याद बन कर ताज़ा है. आज आपको सुनाएंगे दारा सिंह की ज़िन्दगी की दास्तान...

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