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जयश्री गड़कर: 1987 के सीरियल रामायण में भगवान राम की माँ का क़िरदार निभाया

जयश्री गड़कर के करियर की प्रमुख फिल्म रही 'संगत्ये आइका’ जिसने उन्हें मराठी फिल्म इंडस्ट्री में मुख्य अभिनेत्री के तौर पर स्थापित कर दिया, ये तमाशा आधारित एक फिल्म थी. इसी तरह उन्होंने राजा परांजपे की फिल्म 'गठ पड़ली थाका थाका' में काम किया इस फिल्म के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ के नहीं देखा.

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भारत की मीरा : सिंगर वाणी जयराम जिन्होंने क़रीब 10,000 से ज़्यादा गाने गाये

वाणी जयराम की आवाज में ‘हम को मन की शक्ति देना मन विजय करे…’ गीत लगभग सभी को याद होगा। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के कई भजन भी गाए थे, जो मीरा की भक्ति पर आधारित थे. इसलिए वाणी जयराम को भारत की मीरा भी कहा जाता था.

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नसीम बानो की ज़िन्दगी की दास्तान: हिंदी सिनेमा की नंबर 1 सुपरस्टार

नसीम बानो की माँ की दिली तमन्ना थी कि उनकी बेटी पढ़ लिख कर डॉक्टर बने, लेकिन नसीम हमेशा से ही एक अदाकारा बनना चाहती थीं, दरअसल अदाकारा बनने की उनकी तमन्ना परदे पर अपनी पसंदीदा एक्ट्रेस रूबी मेयर्स (सुलोचना) को देखकर जागी थी. लेकिन नसीम की माँ उनकी इस इच्छा के बिलकुल ख़िलाफ़ थीं. एक बार की बात है नसीम बानो अपनी माँ के साथ बॉम्बे आयी हुई थीं तो उन्होंने अपनी माँ से फ़िल्म की शूटिंग देखने की ज़िद की. बच्चों की ज़िद के आगे ज़्यादातर माँ बाप झुक ही जाते हैं नसीम की माँ को भी अपनी बेटी की ज़िद के आगे झुकना पड़ा और वह उन्हें फ़िल्म 'सिल्वर किंग' (1935) की शूटिंग दिखाने ले गयीं और इस फ़िल्म की शूटिंग देखने के बाद तो नसीम ने ये ठान ही लिया कि उन्हें अब एक्ट्रेस ही बनना है.

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‘हुस्न बानो’ के हुस्न के आगे किसी की भी नहीं चलती थी: 50 के दशक में ख़ूब नाम था.

हुस्न बानो की पैदाइश 8 फरवरी 1919 को सिंगापुर में हुई थीं, जब वो पैदा हुई तो उनकी माँ शरीफा ने उनका नाम 'रोशन आरा' रखा क्योंकि वह अपनी माँ की ज़िन्दगी में एक रोशनी बन के आयी थीं. अपनी माँ की तरह ही हुस्न बानो ने अपने करियर की शुरुवात न्यू थिएटर की नितिन बोस के डायरेक्शन में बनने वाली फिल्म 'डाकू मंसूर' से की.

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‘पारो देवी’ जिन पर ‘सआदत हसन मंटो’ भी फ़िदा थे, 1946 की फिल्म ‘शिकारी’ से शुरू किया करियर.

अदाकारा पारो के बारे में सआदत हसन मंटो अपनी किताब 'स्टार्स फ्रॉम अनऑथर स्काई' में लिखते हैं कि वो मेरठ की शिष्टाचार थीं, जहां वह शहर के सभी रईसों लोगों के बीच काफी पॉपुलर थीं लोग उनके कोठे पर बार बार आना पसंद करते थे, उनके क़द्रदानों में मशहूर और मारूफ़ शायर जोश मलीहाबादी और सागर निज़ामी भी शामिल थे.

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Meena Kumari: मोहब्बत की तलाश में ज़िंदगी भर तड़पती रहीं ‘पाकीजा’ (1972) ने अमर कर दिया

Meena Kumari की कहानी की शुरुआत करते हैं उनकी अम्मी इकबाल बानो से, जिनका असल नाम प्रभावती था. मीना का ताल्लुक रविंद्र नाथ टैगोर के खानदान ...

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