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जॉनी वॉकर को ज़िन्दगी ने जो भी सबक़ सिखाया उन्हें हँस कर झेला फिर बने फ़िल्म इंडस्ट्री के नंबर 1 कॉमेडियन

बदरुद्दीन क़ाज़ी जिन्होंने कॉमेडी की दुनिया में एक नयी इबारत लिखी जिनको ध्यान में रखकर फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखी जाती थी, उन फिल्मों में उन पर उस वक़्त के दिग्गज सिंगर्स की आवाज़ में गाना फिल्माया जाना लाज़मी माना जाता था. वैसे तो उनके लिए कई बेहतरीन सिंगर्स ने अपनी आवाज़ दी लेकिन उन पर मो. रफ़ी की आवाज़ खूब फबी. तभी तो वह 'जाने कहाँ मेरा जिगर गया जी' गाते हुए 'सर जो तेरा चकराए या दिल डूबा जाये' की बात करते हैं और जब उनका दोस्त दूल्हा बनता है तो उससे कोफ़्त करते हुए ख़ुद के दूल्हा बनने की बात करते हुए गाते हैं, 'मेरा यार बना है दूल्हा और फूल खिले हैं दिल के, अरे मेरी भी शादी हो जाये सब दुआ करो मिलके' मो. रफ़ी की आवाज़ में यह सभी गीत अपने वक़्त में ख़ासे मशहूर हुए थे. 

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आशीष कुमार पौराणिक फ़िल्मों के सुपरस्टार जिन्होंने किया था,1975 की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म ‘जय संतोषी माँ’ में काम.

आशीष की पहली बंगाली फ़िल्म1954 में बालयग्रास थी, उसके बाद आशा, सोनार काठी जैसी फ़िल्में आईं. वह हिंदी फ़िल्मों में बेहतर अवसरों की तलाश में 1960 के दशक की शुरुआत में बॉम्बे चले आये. 1963 में रिलीज़ हुई  'फूल बने अंगारे' उनकी पहली हिंदी फ़िल्म बनी, उसके बाद भारत मिलाप, बहू बेटी, बीवी और मकान, नाग पंचमी, सीताराम राधेश्याम, संपूर्णदेवी दर्शन जैसी फ़िल्में रिलीज़ हुईं. बीवी और मकान उनकी दुर्लभ फ़िल्मों में से एक है, उसके बाद उन्होंने पौराणिक भूमिकाओं से बिल्कुल अलग, कॉमेडी फिल्मों में काम करना शुरू किया और वहां भी सफल रहे.

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फ़िल्म : यहूदी की लड़की (1933)

हिंदी सिनेमा को आवाज़ मिलने के थीं 2 साल बाद सन 1933 में रिलीज़ हुई उर्दू / हिंदी कॉस्ट्यूम ड्रामा फ़िल्म 'यहूदी की लड़की' जिसका निर्देशन प्रेमांकुर ऑटोरथी ने किया था. यह फ़िल्म न्यू थिएटर्स लिमिटेड कलकत्ता (अब कोलकाता) के प्रोडक्शन हाउस के बैनर तले बानी थी. अगर इस फ़िल्म के कलाकारों की अगर बात की जाये तो इस फ़िल्म में के. एल. सहगल, रत्तन बाई, नवाब कश्मीरी, पहाड़ी सान्याल, गुल हामिद और कुमार थे. यह फ़िल्म आग़ा हशर कश्मीरी के नाटक - यहूदी की लड़की पर आधारित था.

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जयश्री गड़कर: 1987 के सीरियल रामायण में भगवान राम की माँ का क़िरदार निभाया

जयश्री गड़कर के करियर की प्रमुख फिल्म रही 'संगत्ये आइका’ जिसने उन्हें मराठी फिल्म इंडस्ट्री में मुख्य अभिनेत्री के तौर पर स्थापित कर दिया, ये तमाशा आधारित एक फिल्म थी. इसी तरह उन्होंने राजा परांजपे की फिल्म 'गठ पड़ली थाका थाका' में काम किया इस फिल्म के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ के नहीं देखा.

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भारत की मीरा : सिंगर वाणी जयराम जिन्होंने क़रीब 10,000 से ज़्यादा गाने गाये

वाणी जयराम की आवाज में ‘हम को मन की शक्ति देना मन विजय करे…’ गीत लगभग सभी को याद होगा। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के कई भजन भी गाए थे, जो मीरा की भक्ति पर आधारित थे. इसलिए वाणी जयराम को भारत की मीरा भी कहा जाता था.

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नसीम बानो की ज़िन्दगी की दास्तान: हिंदी सिनेमा की नंबर 1 सुपरस्टार

नसीम बानो की माँ की दिली तमन्ना थी कि उनकी बेटी पढ़ लिख कर डॉक्टर बने, लेकिन नसीम हमेशा से ही एक अदाकारा बनना चाहती थीं, दरअसल अदाकारा बनने की उनकी तमन्ना परदे पर अपनी पसंदीदा एक्ट्रेस रूबी मेयर्स (सुलोचना) को देखकर जागी थी. लेकिन नसीम की माँ उनकी इस इच्छा के बिलकुल ख़िलाफ़ थीं. एक बार की बात है नसीम बानो अपनी माँ के साथ बॉम्बे आयी हुई थीं तो उन्होंने अपनी माँ से फ़िल्म की शूटिंग देखने की ज़िद की. बच्चों की ज़िद के आगे ज़्यादातर माँ बाप झुक ही जाते हैं नसीम की माँ को भी अपनी बेटी की ज़िद के आगे झुकना पड़ा और वह उन्हें फ़िल्म 'सिल्वर किंग' (1935) की शूटिंग दिखाने ले गयीं और इस फ़िल्म की शूटिंग देखने के बाद तो नसीम ने ये ठान ही लिया कि उन्हें अब एक्ट्रेस ही बनना है.

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‘हुस्न बानो’ के हुस्न के आगे किसी की भी नहीं चलती थी: 50 के दशक में ख़ूब नाम था.

हुस्न बानो की पैदाइश 8 फरवरी 1919 को सिंगापुर में हुई थीं, जब वो पैदा हुई तो उनकी माँ शरीफा ने उनका नाम 'रोशन आरा' रखा क्योंकि वह अपनी माँ की ज़िन्दगी में एक रोशनी बन के आयी थीं. अपनी माँ की तरह ही हुस्न बानो ने अपने करियर की शुरुवात न्यू थिएटर की नितिन बोस के डायरेक्शन में बनने वाली फिल्म 'डाकू मंसूर' से की.

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‘पारो देवी’ जिन पर ‘सआदत हसन मंटो’ भी फ़िदा थे, 1946 की फिल्म ‘शिकारी’ से शुरू किया करियर.

अदाकारा पारो के बारे में सआदत हसन मंटो अपनी किताब 'स्टार्स फ्रॉम अनऑथर स्काई' में लिखते हैं कि वो मेरठ की शिष्टाचार थीं, जहां वह शहर के सभी रईसों लोगों के बीच काफी पॉपुलर थीं लोग उनके कोठे पर बार बार आना पसंद करते थे, उनके क़द्रदानों में मशहूर और मारूफ़ शायर जोश मलीहाबादी और सागर निज़ामी भी शामिल थे.

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Meena Kumari: मोहब्बत की तलाश में ज़िंदगी भर तड़पती रहीं ‘पाकीजा’ (1972) ने अमर कर दिया

Meena Kumari की कहानी की शुरुआत करते हैं उनकी अम्मी इकबाल बानो से, जिनका असल नाम प्रभावती था. मीना का ताल्लुक रविंद्र नाथ टैगोर के खानदान ...

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