हिंदी सिनेमा के शुरुवाती युग के प्रतिभाशाली कलाकारों की सूची जब भी बनाई जाएगी तब नवाब कश्मीरी का नाम सबसे ऊपर आएगा. वह साइलेंट एरा के दौरान और बाद में हिंदी सिनेमा के साउंड ट्रैक एरा के एक प्रतिभाशाली एक्टर थे. उनके बारे में कहा जाता है की वह मुकरी, दिलीप कुमार और जॉनी वॉकर समकालीन अदाकार थे लेकिन उन्होंने साइलेंट फिल्मों में भी काम किया था जबकि दिलीप कुमार, मुकरी और जॉनी वॉकर ने कभी भी साइलेंट फिल्मों में काम नहीं किया, इस तरह से वो इनसे सीनियर थे.
उनके वालिद साहब लखनऊ के बड़े इमामबाड़े के मुफ़्ती थे और उनका नाम मुफ़्ती आज़म कश्मीरी था वह अपने वालिद साहब की एकलौती औलाद थे. नवाब कश्मीरी इंडियन सिनेमा के मशहूर स्क्रीन राइटर आगा जाना कश्मीरी के चचेरे भाई थे. नवाब कश्मीरी लखनऊ में बसे प्रवासी कश्मीरी थे शायद इसी वजह से वह अपने नाम में कश्मीरी सर नेम का इस्तेमाल करते थे.
नवाब ने अपने करियर की शुरुआत थिएटर से की थी. वह इंपीरियल थिएटर कंपनी के साथ एक लोकप्रिय स्टार थे और उनके नाटक ‘खूबसूरत बाला’, ‘नूर ए वतन’ और ‘बाग ए ईरान’ के ज़रिये बहुत मशहूर थे.बाद में नवाब ने सेठ सुख लाल करनानी के थिएटर कंपनी अल्फ्रेड थिएटर बॉम्बे ज्वाइन कर ली और नवाब उनके सैलरी वाले आर्टिस्ट के तौर पर काम करने लगे. बाद में नवाब बी एन सरकार के स्वामित्व वाले नए थिएटर में शामिल हो गए, सही मायनों में कहा जाये तो बी. एन. सरकार नवाब कश्मीरी के अभिनय के बहुत बड़े प्रशंसक थे.
नवाब कश्मीरी ने फिल्मों में अपने अभिनय करियर की शुरुवात किस फिल्म से की यह साफ़ पता नहीं चलता है क्योंकि बहुत साडी साइलेंट फिल्मों का रिकॉर्ड का कुछ भी पता नहीं है , लेकिन सबसे पहले उनके अभिनय को नोटिस किया1933 की फिल्म यहूदी की लड़की से, इस फिल्म में उनकी हेरोइन थीं रतन बाई. इस फिल्म में उन्होंने लीड रोल किया था और उनके द्वारा निभायी गयी यहूदी लड़के की भूमिका बहुत ही शानदार थी और इस फिल्म में नवाब के द्वारा गाए गये गीत उनकी ज़िन्दगी के बेहद क़रीब थे. इसके अलावा उनकी कुछ लोकप्रिय फिल्में कुरुक्षेत्र (1945), जिद्दी (1948), संग्राम (1950) थीं जिसमें उन्होंने अशोक कुमार के पिता की भूमिका निभायी थे, इसके अलावा मुक्ति (1937) और देवदास (1936) में अहम भूमिका निभाई थी.
नवाब कश्मीरी की आखिरी फिल्म नौजवान (1951) थी जिसमें उन्होंने प्रेमनाथ और नलिनी जयवंत के साथ अभिनय किया था. इस फिल्म का निर्देशन महेश कौल ने किया था. साहिर लुधियानवी द्वारा लिखित और इस फिल्म के लिए एस डी बर्मन द्वारा रचित गीत “ठंडी हवाएं लहरा के आईं” ने अपने वक़्त में लोकप्रियता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे.
नवाब कश्मीरी की मौत पर मशहूर और मारूफ अफसानानिगार सआदत हसन मंटो अपने ठेठ मंटो की शैली में नवाब कश्मीरी के बारे में लिखते हैं –
नवाब कश्मीरी मर चुका है। वह अपनी कलात्मक दुनिया का बादशाह था. कोई वज़ीर आपको इस बादशाह की महानता के बारे में नहीं बता सकता. किसी भी मजदूर से पूछो जिसने गाढ़ी कमाई से चार आने का टिकट खरीदकर उसकी फिल्में देखी हों. ये लोग आपको नवाब की एक्टिंग का जादू बता सकते हैं.
मैं इस महान कलाकार से उनके करीबी रिश्तेदार खान कश्मीरी के जरिए मुंबई के एक स्टूडियो में मिला था. नवाब ने एक बार एक कहानी सुनी जो मैंने लिखी थी, एक बार कहानी पढ़ने का सत्र समाप्त होने के बाद, मैंने नवाब की आँखों को नम पाया था. वह उस फिल्म कंपनी का नाम जानना चाहते थे जिसके लिए मैंने कहानी लिखी थी. अगर कोई निर्माता मेरी कहानी पर फिल्म बनाता है तो वह ख़ुद उस फिल्म में एक अहम क़िरदार निभाना चाहते थे.
कोई निर्माता इस कहानी को लेने के लिए तैयार नहीं है, मैंने नवाब को जब यह बताया तो नवाब ने कहा – भाड़ में जाएं ऐसे निर्माता.
नवाब कश्मीरी की अगर निजी ज़िन्दगी में झाँका जाये तो पता चलता है कि उनकी दो शादियां हुई थीं, उनकी पहली बीवी से जब कोई औलाद नहीं हुई तो उन्होंने अपनी बीवी को इग्नोर करना शुरू कर दिया और गुप्त रूप से लखनऊ के किसी शाही परिवार की किसी महिला से शादी कर ली. उनकी पहली बीवी को जब उनकी दूसरी शादी के बारे में पता चला तो उन्होंने अपने शरीर पर मिटटी का तेल उंडेल लिया और ख़ुद को जलाकर मार डाला. दूसरी पत्नी से उनकी एक बेटी अख्तर और एक साहबज़ादे मनु कश्मीरी हैं.
मंटो के लेखन के अलावा, नवाब कश्मीरी हमेशा एक महान अभिनेता और भारतीय सिनेमा के एक दिग्गज बने रहेंगे. अपने निजी जीवन में वह चाहे जैसे रहे हों.