तनवीर नक़वी की कहानी सुनाने से पहले, उनसे जुड़ा एक क़िस्सा आपके साथ साझा करता हूँ… बात है 1982 की जब लीजेंडरी सिंगर, अदाकारा नूरजहां इंडिया आईं मौक़ा था हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री की टॉकी फिल्मों की गोल्डन जुबली मानाने का…स्टेज पर वह जैसे ही गयीं सबने उनसे एक ही रिक्वेस्ट की वह बेहतरीन गीत गाने की जिसे गाकर वह हमारे दिलों में अमर हो गयीं, वह गीत था – आवाज़ दे कहाँ है दुनिया मेरी जवां है. दरअसल यह गीत 1946 में रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘अनमोल घडी’ का था जिसमें उन्होंने लीड रोल भी निभाया था और फ़िल्म के गाने भी गए थे. इस फ़िल्म का संगीत नौशाद ने लिखा था. यह गीत इतना पॉपुलर हुआ था कि लोग आज भी इस फ़िल्म के संगीतकार और सिंगर को याद रखते हैं लेकिन शायद ही किसी को इस गीत के गीतकार का नाम याद हो. इस गीत को लिखा था तनवीर नक़वी साहब ने. वह इतना खूबसूरत गीत लिख कर भी ज़माने की बेक़द्री का शिकार हो गए. तो दोस्तों आज हम उनको ख़िराज-ए- अक़ीदत पेश करेंगे.
तनवीर नक़वी की पैदाइश 6 फरवरी 1919 को लाहौर में हुई थी. उनका असली नाम सैय्यद खुर्शीद अली था. वह मूल रूप से ईरान के फ़ारसी लेखकों और शायरों के ख़ानदान से ताल्लुक रखते थे. अपनी तालीम मुकम्मल करने के बाद वह बम्बई आ गए और अब्दुल रशीद कारदार से मिले जो उस वक़्त स्वामी (1941) फ़िल्म बना रहे थे. कारदार साहब उनसे मिलकर बहुत प्रभावित हुए और उन्हें तुरंत गीत लिखने का मौका दिया. तनवीर नक़वी ने उस फ़िल्म के लिए सिर्फ एक गीत लिखा जिसे रफ़ीक़ ग़ज़नवी साहब ने संगीत दिया. तनवीर नक़वी से कारदार साहब खासे प्रभावित हुए और उन्होंने अपनी अगली फ़िल्म नई दुनिया (1942) का निर्देशन किया तो इस फ़िल्म के लिए तनवीर ने 11 में से 9 गाने लिखे, जिसके संगीतकार थे नौशाद साहब. उनके गीतों में बेबी सुरैया का मक़बूल डेब्यू गीत, “बूट करूं मैं पॉलिश, बाबू …” शामिल था.
तनवीर नक़वी के करियर का सबसे अच्छा दौर 1946-47 का था, जब उन्होंने अनमोल घड़ी, जुगनू और नादान (1948) जैसी बेहतरीन फिल्मों के लिए लिखा था.के करियर का सबसे अच्छा दौर 1946-47 का था, जब उन्होंने अनमोल घड़ी, जुगनू और नादान (1948) जैसी बेहतरीन फिल्मों के लिए लिखा था. एक गीतकारों के तौर पर वह खासे मशहूर हो गए थे, लेकिन वह एक और फिल्म “परदा” -49 के बाद पाकिस्तान चले गए और अगले 4-5 सालों तक उन्होंने वहां की फ़िल्म इंडस्ट्री में काम किया और फिर तनवीर नक़वी के करियर का सबसे अच्छा दौर 1946-47 का था, जब उन्होंने अनमोल घड़ी, जुगनू और नादान (1948) जैसी बेहतरीन फिल्मों के लिए लिखा था. 1954 तनवीर नक़वी के करियर का सबसे अच्छा दौर 1946-47 का था, जब उन्होंने अनमोल घड़ी, जुगनू और नादान (1948) जैसी बेहतरीन फिल्मों के लिए लिखा था. में भारत वापस आ गए और “ज़मीन के तारे” 1960 तक गीत लिखे. फिर उनके दिमाग़ में ना जाने क्या आया कि यहाँ का अच्छा खासा करियर छोड़ कर वह फिर पाकिस्तान चले गए. कहते हैं कि वह मशहूर और मारूफ़ सिंगर और अदाकारा नूर जहाँ के बुलावे पर पाकिस्तान गए थे क्योंकि वह रिश्ते में उनकी साली लगती थी, तनवीर नक़वी ने नूर जहाँ की छोटी बहन ईदन बाई से शादी की थी. वहाँ जाकर उन्हें फिर से संघर्ष करना पड़ा और वहां उन्होंने 1971 तक उर्दू और पंजाबी फिल्मों में गाने लिखे.
तनवीर नक़वी के करियर का सबसे अच्छा दौर 1946-47 का था, जब उन्होंने अनमोल घड़ी, जुगनू और नादान (1948) जैसी बेहतरीन फिल्मों के लिए लिखा था.अपने एक लम्बे करियर में उन्होंने “शाह-ए-मदीना यशब के वली” और “जो ना होता तेरा जमाल ही” जैसी बेहतरीन नातें लिखीं। भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन से पहले, नकवी को 1950 और 1970 के दशक के बीच पंजाबी कविता और साहित्य में सबसे महान शास्त्रीय लेखकों में से एक माना जाता था. उन्होंने पाकिस्तान की पहली फीचर फिल्म ‘तेरी याद’ सहित उर्दू और पंजाबी भाषा की फिल्मों के लिए ढेरों गीत लिखे. 1-11-1972 को लाहौर में वह इस दुनिया-ए-फ़ानी से रुख़सत हो गए. भारत में उन्होंने 48 फिल्मों में क़रीब 224 गीत लिखे. तो दोस्तों यह थी कहानी एक मक़बूल गीतकार की ज़िन्दगी की. आपको यह कहानी कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताइयेगा.
Filmography
S.N. | Film | Year | Type/Credited as | Remarks |
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1 | अनमोल घड़ी | 1946 | गीतकार | उन्होंने इस फ़िल्म के लिए नौशाद द्वारा संगीतबद्ध बेहद लोकप्रिय गाना ‘आवाज दे कहाँ है’ लिखा. |
2 | जुगनू | 1947 | गीतकार | — |
3 | तेरी याद | 1948 | गीतकार | — |
4 | नाता | 1955 | गीतकार | — |
5 | झूमर | 1959 | गीतकार | उन्होंने हिट गाना ‘चली रे चली रे, बैरी आस लगा के चली रे’ लिखा, जिसे नाहिद नियाजी ने गाया और ख़्वाजा खुर्शीद अनवर ने संगीत से सजाया. |
6 | नींद | 1959 | गीतकार | — |
7 | कोयल | 1959 | गीतकार | कोयल (1959) में फ़िल्मी गीतों के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार निगार पुरस्कार जीता |
8 | शाम ढले | 1960 | गीतकार | फ़िल्म ‘शाम ढले’ (1960) में गीतों के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार निगार पुरस्कार जीता |
8 | सलमा | 1960 | गीतकार | — |
9 | गुलफ़ाम | 1961 | गीतकार | — |
10 | घूँघट | 1962 | गीतकार | — |
11 | अज़रा | 1962 | गीतकार | ‘जान-ए-बहारन-रश्क-ए-चमन’ गाना लिखा, सिंगर सलीम रज़ा ने गाया और इसका संगीत इनायत हुसैन ने दिया. |
12 | सीमा | 1963 | गीतकार | — |
13 | हमराज़ | 1967 | गीतकार | — |
14 | बहन भाई | 1969 | स्क्रिप्ट राइटर | — |
15 | अट्ट ख़ुदा दा वैर | 1970 | गीतकार | इस फ़िल्म का सबसे मशहूर गीत ‘जदों हौली जे लैंदा मेरा नाम’ लिखा, जिसे नूरजहाँ ने गाया,और इस गीत का संगीत बख्शी वज़ीर ने तैयार किया था. |
16 | दोस्ती (पाकिस्तानी फ़िल्म) | 1971 | गीतकार | दोस्ती (1971) के गीतों के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार निगार पुरस्कार मिला. |