अनीता गुहा: जय संतोषी माँ (1975) की बदनसीब हिरोइन.

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By Mohammad Shameem Khan

अनीता गुहा, साल 1950 कोलकाता से एक 15 साल की लड़की खूबसूरत सी लड़की बॉम्बे आती है सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लेने, सौंदर्य प्रतियोगिता तो वह नहीं जीत पायी. लेकिन इस प्रतियोगिता ने उसकी क़िस्मत की बाज़ी ज़रूर बना दी, उन्हें एक बंगाली फिल्म में बतौर मुख्य अभिनेत्री कास्ट कर लिया जाता है और वो 1953 की फिल्म रही बनशेर केला, और उस ख़ूबसूरत अदाकारा का नाम है अनीता गुहा.

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जी हाँ बिलकुल सही समझे ये वही अनीता गुहा हैं जिन्होंने जय संतोषी माँ में संतोषी माता की भूमिका निभाई थी. बंशेर केला के बाद उन्होंने छूमंतर फ़िल्म में काम किया, इसी तरह वह लगातार छोटी छोटी भूमिकाएं निभाती रहीं जिससे इनके करियर का ग्राफ बढ़ता गया.

हिंदी सिनेमा में अब भले ही पौराणिक यानि कि मायथेलॉजिकल कांसेप्ट पर फ़िल्में बहुत ही कम बनतीं हों लेकिन एक ज़माना था जब ऐसी फिल्में खूब बनती थीं और ऐसी ही फिल्मों की एक ख़ास अदाकारा रहीं हैं अनीता गुहा. आज के वक़्त के दर्शक शायद ही उन्हें पहचान पाएं लेकिन जब 1975 में आयी जय संतोषी माँ का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री को भूल नहीं पाए होंगे. बेशक इस क़िरदार को अमर करने वाली अभिनेत्री अनीता गुहा को आज हम याद करेंगे.

अदाकारा अनीता गुहा ने 1950 में रिलीज़ हुई फ़िल्म तांगावाली के साथ बॉलीवुड में क़दम रखा. 1959 में गूंज उठी शहनाई के लिए उनको फ़िल्मफेयर अवॉर्ड्स में बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस के लिए नामित किया गया था. इसके बाद उन्होंने कई पौराणिक कहानियों पर आधारित फ़िल्मों में उन्होंने काम किया. 1959 में उनकी फ़िल्म कवि कालिदास रिलीज़ हुई. 1961 में संपूर्ण रामायण में अनीता गुहा ने सीता का क़िरदार निभाया था. यह फ़िल्म बड़ी हिट साबित हुई थी.

इसके बाद 1965 में श्री राम भरत मिलाप और 1971 में तुलसी विवाह में उन्होंने दोबारा सीता का क़िरदार निभाया. उसके बाद उन्होंने गेटवे ऑफ इंडिया (1957), देख कबीरा रोया (1957), लुकोचुरी (1958), प्यार की राही (1959), और संजोग (1961) जैसी फ़िल्मों में भी बेहतरीन भूमिकाएँ निभाईं.

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हालांकि पॉपुलैरिटी मिलने के साथ ही वह ऐसी फ़िल्मों में टाइपकास्ट हो गईं. 1964 में रिलीज़ हुई महारानी पद्मिनी नाम की फ़िल्म में अनीता गुहा ने लीड रोल निभाया था. ये वही कहानी है जिस पर संजय लीला भंसाली ने दीपिका पादुकोण को लेकर पद्मावत बनाई थी. हालाँकि तब इस कहानी को लेकर कोई बवाल नहीं हुआ था.

धार्मिक फ़िल्मों में वह लगातार काम कर रही थीं लेकिन वह इन फ़िल्मों में काम करके संतुष्ट नहीं थीं क्योंकि वह एक तरह की इमेज में नहीं बांधना चाहती थीं, उन्हें अलग-अलग तरह के क़िरदार निभाने में ज़्यादा दिलचस्पी थी. इसलिए उन्होंने इस लीक से हटकर फ़िल्में करना शुरू कीं, लेकिन वो सभी फ़िल्में फ्लॉप रहीं.

फिर वह फ़िल्म आयी जिसने उन्हें क़ामयाबी की बुलंदियों पर पंहुचा दिया, 1975 में आयी जय संतोषी माँ, एक मैगज़ीन को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि जब तक उन्हें वह भूमिका की पेशकश नहीं की गई, तब तक उन्होंने देवी संतोषी के बारे में कभी नहीं सुना था, क्योंकि वह एक अल्पज्ञात देवी थी. इस फ़िल्म में उनकी गेस्ट भूमिका थीं, और उनके सीन्स को 10-12 दिनों में शूट कर लिया गया था. वह बताती हैं कि उन्होंने शूटिंग के दौरान उपवास किया था. कम बजट की यह फ़िल्म एक ज़बरदस्त हिट हुयी थी, और हिंदी सिनेमा की एक बहुत बड़ी घटना बनकर बॉक्स ऑफिस रिकॉर्ड तोड़ दिया.

इस फ़िल्म के बाद देवी संतोषी अब एक मशहूर देवी बन गई, और पूरे भारत में महिलाओं ने उनकी पूजा की. इस फिल्म का क्रेज़ ऐसा था कि लोग बसों ट्रकों में लोग भर भर कर फिल्म देखने आते थे लोग सिनेमा घरों को एक मंदिर के रूप में देखते थे और सिनेमा हॉल दरवाजे पर जूते चप्पल उतर कर फिल्म देखने आते थे. ‘जय संतोषी मां’ ने अनीता को रातोंरात स्टार बना दिया था.

एक इंटरव्यू के दौरान अनीता ने बताया था कि इस फ़िल्म के बाद लोग उनके पैर छूते और उन्हें सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देने के लिए कहते थे. 12 लाख में बनी इस फ़िल्म ने उस वक़्त 25 करोड़ से भी ज़्यादा का कारोबार किया था.

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उनकी दूसरी पौराणिक फ़िल्मों की बात करें तो उन्होंने कवि कालिदास (1959), जय द्वारकादेश (1977) और कृष्णा कृष्णा (1986) में अभिनय किया. एक ही तरह की भूमिकाएं करने की वजह से वह टाइपकास्ट बन गई, और उनके पास फ़िल्मों के प्रस्ताव आने बंद हो गए। उनके दूसरी फिल्मों में संगीत सम्राट तानसेन (1962), कण कण में भगवान (1963) और वीर भीमसेन (1964) जैसी पीरियड फिल्में शामिल हैं. उन्होंने 1969 की हिट फ़िल्म आराधना में राजेश खन्ना की दत्तक माँ की भूमिका निभाई थीं.

फ़िल्म में संतोषी माता बनीं अनीता गुहा की निजी जिंदगी दुखों से भरी हुई रही. कभी अपनी ख़ूबसूरती के लिए मशहूर अनीता को करियर की ढलान के दौरान ल्यूकोडर्मा नाम की गंभीर बीमारी हुई, जिसके चलते वह घर से बाहर कम ही निकलती थीं. इसको छिपाने के लिए वह अक्सर हैवी मेकअप में रहती थीं. अगर उनकी निजी ज़िन्दगी की बात की जाये तो उनकी शादी माणिक दत्ता के साथ हुई थी.

उनकी शादीशुदा ज़िन्दगी अच्छी चल रही थी, फ़िल्मी परदे पर वह माँ की भूमिका निभा रही थीं लेकिन वह असल जिंदगी में वह मां बनने से वंचित रह गईं. इस बात का उन्हें हमेशा दुःख रहा. पति माणिक दत्त का असामयिक मौत होने की वजह से वह बहुत ही गुमनाम सी ज़िन्दगी जीने लगी. 20 जून 2007 को 75 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने की वजह से दुनिया- ए- फ़ानी से बहुत ही ख़ामोशी के साथ रुख़्सत हो गयीं.

एक टॉक शो में अनीता ने बताया था कि उन्हें बचपन से ही मेकअप का बहुत शौक था. वे स्कूल भी जाती थीं तो मेकअप करके जाती, जिसकी वजह से उनकी पिटाई भी होती थी. उन्हें पाउडर और लिपस्टिक लगाना बहुत पसंद था. इंसान को ज़िन्दग़ी क्या क्या रंग दिखती है, अपनी ज़िन्दगी के आख़िरी वक़्त में वह तनाव और ल्यूकोडर्मा से इतना परेशान हो गई थीं कि उन्होंने अपने क़रीबियों से कहा था कि मेरे अंतिम संसकार से पहले मेरा मेकअप किया जाए ताक़ि उनके सफेद धब्बे लोग ना देख पाएं. उनकी ये अंतिम इच्छा पूरी भी की गई।

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