मूलचंद: हंसने हंसाने वाला अभिनेता (1988) में ख़ामोशी के साथ चला गया.

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By Mohammad Shameem Khan

मूलचंद हिंदी सिनेमा के एक चरित्र अभिनेता थे. ‘खई के पान बनारस वाला खुल जाये बंद अक़्ल का ताला’ यह गाना तो हम सभी ने सुना ही है कभी ना कभी खूब नाचे भीं होंगे. हैं ना. इस गाने में ऐसी क्या ख़ास बात है जो इसे बहुत ख़ास बनाती है, तो वो है इस गीत में चरित्र अभिनेता मूलचंद का होना.

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इस पूरे गीत में मूलचंद अभिनेता अमिताभ बच्चन के इर्द गिर्द अपने मोटे और गोल मटोल से पेट के साथ नाचते नज़र आते हैं. मूलचंद को आज याद किया जाता है तो उनके मोटे पेट और उनके हँसाने की कला की वजह से. उन्होंने फ़िल्मों में चरित्र भूमिकाएं निभाने के लिए जाना जाता है और 1960 से 1970 के दशक के क्लासिक वक़्त से फिल्मों में छोटी मोटी भूमिकाएं निभाया करते थे. उनकी अगर शुरुवाती फिल्में देखें तो उन्हें क्रेडिट नहीं मिलता था. फिर उन्होंने जी तोड़ मेहनत की और बहुत सी फ़िल्मों में काम किया.


मूलचंद अपने हंसमुख स्वभाव, बड़े पेट और फ़िल्मों में कॉमेडी का तड़का लगाने वाले दृश्यों के लिए जाने जाते हैं, उनमें से भी ज्यादातर थप्पड़ वाली कॉमेडी. लेकिन उन्होंने अपने पूरे फ़िल्मी करियर में बहुत ही गिनी चुनी संजीदा भूमिकाएँ निभाईं हैं. वह पारिवारिक मनोरंजन फ़िल्म ‘यादों की बारात’ में थे, जहाँ उन्हें साथी मोटे आदमी राम अवतार के साथ देखा गया था.


यह बेहतरीन अभिनेता हिंदी फ़िल्मों के अलावा कुछ पंजाबी फ़िल्मों में भी दिखाई दिया है. उन्हें पहली बार 1950 के दशक की हिंदी फ़िल्म में देखा गया था. उन्होंने नियमित रूप से महान फिल्म निर्माताओं, गुरु दत्त और राज कपूर द्वारा निर्देशित फ़िल्मों में अभिनय किया, क्रमशः उनकी ज़्यादातर फ़िल्मों में काम किया.

उन्होंने देव आनंद, बी.आर. चोपड़ा, आई.एस. जौहर और दारा सिंह को उनके प्रोडक्शन में भी काम किया. 1950 के दशक में उन्होंने ज्यादातर छोटी भूमिकाएँ निभाईं, और उनमें से अधिकांश पर किसी का ध्यान नहीं गया. 1960 के दशक में भी उन्हें पड़ोसन जैसी कुछ ही अच्छी चरित्र भूमिकाएँ मिलीं. उन्हें फिल्म में ओम प्रकाश के नौकर के रूप में एक पूर्ण हास्य भूमिका मिली और उन्हें फिल्म के कई दृश्यों में देखा गया. मूलचंद के बहुत सारे क्लोज-अप दिखाए और उन्हें एक सक्षम हास्य अभिनेता के रूप में दिखाया.

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1970 के दशक में भी, फिल्म निर्देशकों ने ज्यादातर उनकी हास्य प्रतिभा का ही उपयोग किया और फिल्म के दृश्यों को हल्का बनाने के लिए उनके मोटे शरीर और पेट का इस्तेमाल किया। लेकिन दुख की बात है कि उन्हें उसी तरह के चरित्र और हास्य भूमिकाएँ मिलीं, और उनका वह टाइप कास्ट हो गए. उन्होंने यादों की बारात में प्रताड़ित व्यवसायी की भूमिका निभाई- 1970 के दशक में उनकी प्रसिद्ध भूमिकाओं में से एक.

मूलचंद हिंदी और पंजाबी सिनेमा के एक मंझे हुए चरित्र अभिनेता थे, जो 1950 से 1980 के दशक के अंत तक अपनी मृत्यु तक वह फ़िल्मों में सक्रिय रहे. उन्होंने 250 से भी ज़्यादा फ़िल्मों में अभिनय किया. इन फ़िल्मों में गुरु दत्त के समानांतर सिनेमा से लेकर दारा सिंह की पहलवान फ़िल्मों तक, हर तरह की फ़िल्में की. पुराने दौर के लगभग सभी सुपरस्टार्स के साथ उन्होंने काम किया.

जिस कलाकार ने चिन्दी सिनेमा के दर्शकों को खूब हँसाया उसको लोग भूल गए.. शायद ही कोई हो जिसे उनका नाम याद हो तो उनकी निजी ज़िन्दगी के बारे में भला कौन जानना चाहेगा.


मूलचंद के बारे में उनके फ़िल्मी काम के अलावा उनकी निजी ज़िन्दगी की बहुत काम जानकारी है. 1988 की रिलीज़ फ़िल्म ‘तमाचा’ ने उन्हें “स्वर्गीय मूलचंद” के रूप में श्रेय दिया. मूलचंद की ये कहानी आपको कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताइयेगा. शुक्रिया.

फ़िल्मोग्राफ़ी:

खानदान (1942) नूरजहाँ की कार के पीछे साइकिल चलाते हुए
फाइटिंग हीरो (1946)
किस्मतवाली (1947)
अपना देश(1949)
श्री गणेश महिमा (1950)
तीन बत्ती चार रास्ता (1953)
नाता (1955)
रेलवे प्लेटफार्म (1955) एक अप्रकाशित के रूप में
प्यासा (1957) एक रेस्तरां मालिक के रूप में
नया दौर (1957)
छोटी बहन (1959)
चंबे दी काली (1960) पंजाबी फिल्म
मामा जी (1964) पंजाबी मूवी
जग्गा (1963) पंजाबी मूवी इन डाकू गैंग्स
दिल ने पुकारा (1967) जॉयती के पिता के रूप में
भोला राम के रूप में नानक दुखिया सब संसार (1970)।
अमर प्रेम (1972) पान की दुकान के मालिक के रूप में
यादों की बारात (1973)
लोफर (1973) कांस्टेबल लालचंद के रूप में
दुःख भंजन तेरा नाम (1974) (पंजाबी फिल्म)
पत्थर और पायल (1974) कैसीनो कार्ड खिलाड़ी/ग्राहक के रूप में
पोंगा पंडित (1975)
प्रतिज्ञा (1975 फ़िल्म)
नए साल की पार्टी में डांसर के रूप में दो जासूस (1975)।
सलाखें (1975)
फूल और इंसान (1976)
हेरा फेरी (1976)
चाचा भतीजा (1977) किराने और राशन की दुकान के मालिक के रूप में
अमर अकबर एंथोनी (1977) पेड्रो के रूप में
परवरिश (1977)
त्रिशूल (1978) ऋणदाता के रूप में
डॉन (1978 फ़िल्म) गोविंदा के रूप में
प्रेमी गंगाराम चाट राम के रूप में
नालयाक (1978) कैसीनो में ग्राहक के रूप में
गोल माल (1979) सिनेमा हॉल में दर्शक के रूप में
मिस्टर नटवरलाल (1979) सेठ धरमदास के रूप में
सुहाग (1979)
खुद-दार (1982) स्मॉल टाइम स्मगलर के रूप में
जख्मी इंसान (1982) सथ कद्दू सिंह हलवाई मिठाई की दुकान के मालिक के रूप में
माटी मांगे खून (1984) जौहरी के रूप में
अधिकार (1986)
ज़िंदगानी (1986) सड़क किनारे ढाबा मालिक के रूप में
गोरा (1987) सेठ अमीरचंद के रूप में
सड़क छाप (1987) जौहरी के रूप में
एक नया रिश्ता (1988)
ज़ख्मी औरत (1988)
मार मिटेंगे (1988) जौहरी के रूप में
हम इंतज़ार करेंगे (1989) सेठजी के रूप में
तूफ़ान (1989) सेठ धरमदास के रूप में
यार मेरी जिंदगी (2008) ताकेदार के रूप में (फिल्म उनकी मृत्यु के बाद रिलीज हुई थी)

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