सरदार उधम सिंह (2021): एक बेहतरीन फ़िल्म

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By Mohammad Shameem Khan

Source: Social Media

हर किसी इंसान का अपना एक सपना होता है जो उसे हर हाल में पूरा करना चाहता है. चाहे कुछ भी हो जाये. जब आप शिद्दत से उस सपने को पूरा करने की कोशिश करते हो तो आज नहीं कल वो सपना पूरा ही हो जाता है. हिंदी फ़िल्म निर्देशक शूजित सरकार ने भी 21 साल पहले एक सपना देखा था सरदार उधम सिंह की ज़िन्दगी पर फ़िल्म बनाने का, जो अब जाकर पूरा हुआ है.

उनके द्वारा निर्देशित फ़िल्म – सरदार उधम सिंह अमेज़ॉन प्राइम वीडियो पर रिलीज़ हो चुकी है. ये कहानी अपने देश की आज़ादी के मतवाले क्रन्तिकारी की ज़िन्दगी की कहानी नहीं कहती है बल्कि आंदोलनकारियों की विचारधारा को समझाने की बेहतरीन कोशिश की गयी है. अपनी इस कोशिश में शूजित सरकार पूरी तरह सफल होते हैं.

ये फ़िल्म जालियां वाला बाग़ के क़त्ले आम के इर्द गिर्द घूमती है. फिल्म देखते हुए आपको ऐसा लगेगा की ये कहानी एक क्रन्तिकारी के बदले की है लेकिन ये कहानी उस दौर की युवा पीढ़ी की देश प्रेम को दर्शाती है कि अपने ही देश में आज़ादी से सांस न ले पाने की छटपटाहट साफ़ देखी जा सकती है जो ब्रिटिश हुक़ूमत के ख़िलाफ़ उठ खड़ी होती है.

ये फ़िल्म सरदार उधम सिंह की शख़्सियत के साथ साथ आज़ादी के लिए उनके सोच से भी परिचित कराती है. वो सिर्फ बदला लेना नहीं चाहते थे अगर ऐसा होता तो वो जनरल डायर के घर पर काम करते हुए भी उसे मार सकते थे. अगर वो ऐसा करते तो शायद ये मालिक और उसके नौकर के बीच का विवाद दर्शाता. वो सिर्फ एक मर्डर होता प्रोटेस्ट नहीं. वो जनरल डायर को लंदन में मारकर पूरी दुनिया को सन्देश देना चाहते थे. ब्रिटिश हुकूमत तक ये पैग़ाम पहुंचना कि हिंदुस्तानी अपने ऊपर हुए ज़ुल्म को नहीं भूलते और 20 साल बाद भी उन्हें ढूंढ कर ख़त्म कर देते हैं.

फ़िल्म की कहानी का एरा 1919 जब जालियांवाला नरसंहार हुआ था से 1940 जनरल डायर की हत्या तक का क़िस्सा बयां करता है. फ़िल्म की शुरुवात होती है एक जेल से जहाँ शेर सिंह बंद है इस वक़्त उधम सिंह शेर सिंह के नाम से जाने जाते हैं. फ़िल्म की कहानी का स्क्रीनप्ले नॉन-लीनियर फॉर्मेट में है. यानि कहानी कि परतें धीरे धीरे खुलती हैं.

कहानी बार बार फ्लैशबैक में जाती है. सरदार उधम सिंह का स्क्रीन प्ले शुबेंदु भट्टाचार्य और रितेश शाह ने लिखा है. जो कि बहुत असरदार है. फ़िल्म के कई दृश्य इतने सजीव बन पड़े हैं कि आप समझ ही नहीं पाएंगे कि ये दृश्य स्क्रीन पर चल रहा है या रियल ज़िन्दगी में.

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जेल से छूटने के बाद ब्रिटिश सरकार उधम सिंह पर नज़र रखे हुए है लेकिन वो चकमा देकर वो रूस होते हुए लंदन पहुंचते हैं. यहाँ से उनका असल सफर शुरू होता है लंदन में अपने लिए सपोर्ट मिलने का. भगत सिंह ने शहादत से पहले एक चिट्ठी लिख कर उधम सिंह से सपोर्ट जुटाने के लिए कहा था. लंदन आके शेर सिंह उर्फ़ उधम सिंह अपने कई साथियों से मिलता है.

13 मार्च 1940 को लंदन में एक भरी सभा में सरदार उधम सिंह जनरल डायर को गोली मार देतें हैं जिसकी गूँज पूरी दुनिया में सुनाई देती है. ब्रिटिश सरकार के लिए ये घटना एक आतंकी घटना है. और उधम सिंह को एक टेररिस्ट क़रार देती है. उधम पर डायर कि हत्या का मुक़दमा चलाया जाता है और उन्हें बिना किसी सुनवाई के फांसी की सजा दे दी जाती है.

सरदार उधम सिंह बहुत ही इत्मीनान से बनाई गयी फिल्म है. फिल्म का हर एक फ्रेम को बस महसूस किया जा सकता है. फ़िल्म पर चल रहे विज़ुअल्स पूरी कहानी बयां कर देते हैं शायद इसीलिए फ़िल्म में ज़्यादा डायलॉग्स नहीं है. फिल्म में सरदार उधम टूटी फूटी इंग्लिश बोलते है जो बिलकुल भी नहीं अखरता. अँगरेज़ क़िरदारों से ज़बरदस्ती हिंदी नहीं बुलवाई गयी है.

फ़िल्म में क्रन्तिकारी और आतंकी का अंतर साफ बताया गया है. फ़िल्म के कई सीन्स में संवादों की ज़रुरत ही नहीं महसूस होती. अभिनेता अपने हावभाव और आँखों से ही सबकुछ कह जाते हैं. किरदारों को इतने सटीक ढंग से गढ़ा गया है कि वो आपके दिल में उतर जाते हैं.

अभिनय की अगर बात करें तो विक्की कौशल ने वाक़ई अपने अभिनय से फ़िल्म में जान दाल दी है. फ़िल्म सरदार उधम सिंह में जितने भी क़िरदार सबने एक प्रभाव छोड़ा है. चाहे जनरल डायर कि भूमिका निभाने वाले कलाकार हों या उधम कि प्रेमिका का छोटा सा क़िरदार निभाने वाली कलाकार हों सबने बहुत ख़ूब काम किया है. वैसे तो पूरी फ़िल्म बेहतरीन बन पड़ी है लेकिन सेट और कॉस्टूयम डिज़ाइनर वीरा कपूर का काम वाक़ई काबिल-ए-तरीफ़ है.

उन्होंने हर एक चीज़ पर अपनी बारीख़ नज़र रखी है चाहे हो ब्रिटिश एरा के जेल हों , टेलीफोन या मोटर गाड़ी हों. फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी लाजवाब है. बहुत वक़्त बाद एक ऐसी फ़िल्म आयी है जिसे देख कर कहा जा सकता है कि वाक़ई शानदार फ़िल्म है. फ़िल्म का जलियावालां बाग़ वाला सीन क्रिएट किया गया है जिसे देख कर आपके रोंगटे खड़े हो सकते है. वो सीन देख कर आपकी आँखों में आंसू ज़रूर आएंगे. इस फ़िल्म का आनंद इसमें डूब कर ही लिया जा सकता है.

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