कज्जन बाई : भारत की दूसरी बोलती फ़िल्म की अदाकारा, 16 की उम्र में बन गयीं थी ‘Superstar’

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By Mohammad Shameem Khan

कज्जन बाई
तस्वीर: सोशल मीडिया

सिनेमा ने हमेशा से हमारा इंटरटेनमेंट किया है, जब हमारे यहाँ साइलेंट फ़िल्में बनती थी तब भी लोग बहुत ही चाव से फिल्में देखा करते थे, लेकिन जब सिनेमा को आवाज़ मिली तब तो फिल्मों को लेकर लोगों की दीवानगी बढ़ गयी, आज हम उसी दौर की एक अभिनेत्री की बात करेंगे जो हमारी फ़िल्म इंडस्ट्री की की पहली सुपरस्टार थी, नाम है इनका कज्जन बाई बात तब की है जब लखनऊ की मशहूर तवायफ सुग्गन बेगम पटना में रहा करती थीं. 15 फरवरी 1915 को उनके घर बेटी की पैदाइश हुई, जिसका नाम रखा गया जहांआरा कज्जन, जो आगे चलकर कज्जनबाई नाम से बहुत मशहूर हुई. सुग्गन बेगम अपनी बेपनाह ख़ूबसूरती और गानों के लिए मशहूर थीं.

कज्जन बाई
तस्वीर: सोशल मीडिया

अपनी खनकदार आवाज़ में जब वह तरन्नुम छेड़ती तो सुनने वाले ‘वाह’ कहे बिना नहीं रह पाते थे. उनकी महफिलों में उस वक़्त के नामी लोग शिरकत किया करते थे. उनकी महफ़िल की शान भागलपुर के नवाब छम्मी साहब भी हुआ करते थे, अफवाहों की मानें तो कज्जन इन्ही नवाब साहब की बेटी थीं, यह बात कितनी सच है यह हम नहीं कह सकते. उस वक़्त में तवायफों को शादी करने की इजाज़त नहीं थीं लेकिन उनके रिश्ते के बारे में सब को मालूम हुआ करता था.

20वीं सदी में जब तवायफों और कोठों का विरोध होने लगा तो रोज़ी रोटी के लिए सारी तवायफें स्टेज आर्टिस्ट बन गयीं, बदलते दौर में सुग्गन बाई भी स्टेज आर्टिस्ट बन गयीं. उन्होंने अपनी बेटी कज्जन की तालीम और तरबियत का इंतेज़ाम घर पर ही कर दिया और कज्जन ने घर पर ही रहते हुए उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी सीखी. कज्जन इन तीनों भाषाओँ में काफी अच्छीं थीं. लैंग्वेज सीखते सीखते कज्जन का झुकाव शेरो-शायरी की तरफ हो गया था और वह ‘अदा’ तखल्लुस के नाम से शायरी किया करतीं थीं, जो उस ज़माने की उर्दू मैगज़ीन में छपा करती थी. उन्होंने पटना के उस्ताद हुसैन खान से क्लासिकल सिंगिंग की ट्रेनिंग भी ली. कज्जन की आवाज़ बहुत ही सुरीली थी और उन्हें यह खूबी अपनी माँ सुग्गन से मिली थी. माँ से यही खूबी कज्जन को भी मिली थी, ऐसा कहा जाता है कि उनकी फ़िल्में देखने के लिए लोग अपने घर का सामान तक गिरवी रख दिया करते थे. कहा ये भी जाता है कि कज्जन की इन्ही ख़ूबियों को देखते हुए उन्हें कलकत्ता की एक थिएटर कंपनी ने अपने यहाँ नौकरी दे दी थी. ये वो वक़्त था जब स्टेज पर महिलाएं छोटी मोटी भूमिकाएं ही निभाया करती थी.

कज्जन बाई
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उन्हें स्टेज पर मुख्य अभिनेत्री के तौर पर परफॉरमेंस देने की अनुमति नहीं थी, ऐसे में कज्जन स्टेज की पहली महिला मुख्य अदाकारा बनीं. ये बात करीब 1925-30 के बीच की होगी, जब उन्हें हर परफॉर्मेंस के 250 रुपए मिला करते थे यह उस वक़्त बहुत बड़ी रक़म हुआ करती थी। उस वक़्त कज्जन की उम्र 15 सिर्फ साल थी. स्टेज पर कज्जन अपने गाने के साथ साथ चाकू के साथ अजब गज़ब करतब भी दिखाया करती थीं, उन्हें देखने के लिए भारी संख्या में भीड़ इकठ्ठा हो जाया करती थी. कहतें हैं कि कज्जन फिल्म स्टार से ज़्यादा पॉपुलर हुआ करती थीं कि उन्हें देखने के लिए उस दौर की बड़ी बड़ी अभिनेत्रियां फ़िल्मी परदे पर उनकी नक़ल उतारा करती थीं. एक बार की बात है की उन्हें देखने के लिए उस दौर के मशहूर फिल्म प्रोडूसर जमशेद मदन आये वह कज्जन के टैलेंट से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें अपनी फ़िल्म में रोल दे दिया और यह फ़िल्म थी भारत की दूसरी बोलती फिल्म -शीरीं फरहाद। इस फिल्म में कुल 42 गाने थे.

कज्जन बाई
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कज्जन के बारे में ये मशहूर है कि वह मशहूर गायिका नूरजहां की गुरु भी थीं और वह उन्हें हर रोज़ 12 घंटे रियाज़ करवाया करती थीं. इन्हे जानवरों से इतनी मोहब्बत थी कि इन्होने अपने घर पर दो टाइगर पाल रखे थे. कज्जन की पहली फ़िल्म शीरीन फरहाद दरअसल आगा हशर कश्मीरी के एक प्ले पर बनी थी, रिलीज़ होने के बाद इस फ़िल्म ने इतिहास रच दिया था और कज्जन बाई महज़ 16 साल की उम्र में देश की पहली सुपर स्टार बन गयीं थीं उनकी शोहरत का आलम ये था कि लोग अपनी प्रॉपर्टी बेच कर उनकी फ़िल्में बार बार देखा करते थे. लाहौर का एक क़िस्सा बहुत ही मशहूर हुआ था कि एक ताँगे वाले ने ये फ़िल्म 22 बार देखी और उसके लिए उसने अपने घोड़े तक गिरवीं रख दिए थे. कज्जन की अगर दूसरी फ़िल्मों की बात की जाये तो शीरीन फरहाद के बाद फ़िल्म लैला मजनू रिलीज़ हुई जो सुपर हिट साबित हुई. अगर आपसे पूछा जाये कि भारत की किस फ़िल्म में सबसे ज़्यादा गाने थे – तो जवाब होगा इंद्रसभा – इस फिल्म में 72 गाने थे जो अब तक सबसे ज़्यादा गानों वाली फ़िल्म है और इस फिल्म के ज़्यादातर गाने कज्जन ने ही गए थे. साढ़े तीन घंटे की इस फिल्म की हिरोईन भी वह ही थीं. उस वक़्त यह फ़िल्म ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी.

फ़िल्म- इंद्रा सभा पोस्टर
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शिरीन फरहाद (1931), शकुंतला (1931), लैला मजनू (1931), सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र (1931),पति भक्ति (1932), गुलरू ज़रीना (1932), छत्र बकावली (1932),आंख का तारा (1932), अलीबाबा और चालीस चोर (1932), इंद्रसभा (1932), प्रेम का नशा (1933), बिरवामंगल (1933), ध्रुव (1933), सखी लुटेरा (1934),ज़हरी सांप (1934), गरीब की दुनिया (1934),अनोखा प्रेम (1934), जहाँआरा (1935), रशीदा (1935), मेरा प्यारा (1935), शैतान का पाश (1935), मिस मनोरमा (1935), प्रेम की रागिनी (1935), दिल की प्यास (1935), मनोरमा (1936), रीजनेरशन (1936), मेरा प्यारा (1936), प्रार्थना (1943), पृथ्वी वल्लभ (1943) जैसी फिल्मों में वह नज़र आयीं. इन सभी फ़िल्मों से उन्होंने सफलता का स्वाद चखा. यह सारी फ़िल्में 1931 से 1936 के बीच रिलीज़ हुई थीं.

उस वक़्त इनकी फ़िल्में खूब मक़बूल हो रहीं थीं, लेकिन फ़िल्मों का टिकट महंगा होने की वजह से वो आम लोगों फिल्में देख नहीं पाते थे, कज्जन इस बात को बख़ूबी समझती थीं इसीलिए वह फ़िल्में करने के साथ साथ थिएटर भी किया करती थीं शायद इसी वजह से वह आम और ख़ास हर तरह के लोगों के बीच बहुत पॉपुलर थीं और सही मायनों में हिंदी सिनेमा की पहली सुपर स्टार और सबसे महंगी एक्ट्रेस बनीं. कहा जाता है कि उनकी शान-ओ- शौक़त का आलम यह था कि ये किसी रानी की तरह कोलकाता की एक बड़ी सी हवेली में रहा करती थीं. लग्ज़री गाड़िया, नौकर चाकर और इनका घर सारी मॉडर्न सुविधाओं से लैस हुआ करता था। इन्हे जानवरों से ख़ासा लगाव था इसलिए इन्होने घर में ही दो टाइगर पाल रखे थे, इनकी शान-ओ- शौकत का आलम सोचिये ज़रा, जब यह अपनी गाड़ी में अपने पाले हुए टाइगर्स के साथ निकलती थीं तो लोग उन्हें देख कर हैरत से भर जाते और मन ही मन उनसे रश्क़ करते.

कज्जन बाई
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कज्जन उस वक़्त की सबसे मॉडर्न और फैशनेबल लड़की के रूप में देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर हो गयीं. उनकी पॉपुलैरिटी के बारे में मैडम नूरजहां के शौहर और फिल्म ज़ीनत (1945) के डायरेक्टर शौकत हुसैन रिज़वी ने एक आर्टिकल में लिखा – वो किसी काम से इजिप्ट गए थे और वहां बिकने वाले सिगरेट के पैकेट पर कज्जन बाई की तस्वीर छपी थी यह आलम था कज्जन की पूरी दुनिया में पॉपुलैरिटी का. कज्जन एक बेहतरीन गायिका तो थीं ही लेकिन उनकी एक्टिंग भी कमाल की थी जो उन्हें अपने वक़्त की अभिनेत्रियों से कहीं आगे रखती थी, उनकी ख़ूबसूरती और अदायगी भी उस ज़माने में चर्चा का विषय रही, उनका नैन-नक़्श, हेयर स्टाइल बनाने का तरीक़ा, साड़ियां और उस पर डिज़ाइनर ब्लाउज़ उस ज़माने से काफ़ी आगे था. उनके अंदाज़ और स्टाइल को उस वक़्त की महिलाएं कॉपी किया करती थीं.

1935 तक आते आते सिनेमा बनाने का तरीका बदलने लगा कहानी कहने का तरीका पूरी तरह से बदल गया, मैथोलॉजिकल, टिपिकल लव स्टोरी, मेलो-ड्रामा और ज़रुरत से ज़्यादा गानों वाली फ़िल्मों ने दर्शको को इम्प्रेस करना बंद कर दिया. कई बड़ी फ़िल्म कंपनी और थिएटर कंपनी बंद होने की कगार पर आ गईं, जिनमें मदन थिएटर कंपनी भी बंद हो गयी. कज्जन बाई मदन थिएटर कंपनी की मुख्य हेरोइन हुआ करती थी, जब कंपनी बंद हुई तो उनकी क़ामयाबी भी मद्धम पड़ने लगी.

नए प्रोडूसर्स ने भी उन्हें काम देना बंद कर दिया. जब मदन थिएटर बिका तो उसे खरीदा कर्णी सेठ ने, जिनसे कज्जन की कभी नहीं बनी, उनसे कज्जन के अकसर झगडे होते रहते थे. एक बार बात इतनी बढ़ गयी कि उन्होंने थिएटर छोड़ने का फैसला किया. लेकिन मदन थिएटर के साथ कॉन्ट्रैक्ट में बंधी होने की वजह से कर्णी सेठ ने उनके ख़िलाफ़ मुकदमा कर दिया. ये आपस के झगडे इतने ज़्यादा बढ़ गए कि ख़ुद को सही साबित करने के लिए कज्जन पूरी तरह से बर्बाद हो गयीं, उन्हें अपनी कोलकाता वाली हवेली तक बेचनी पड़ी. कोर्ट कचेहरी से आख़िरकार हार कर उन्होंने अपनी बची खुची संपत्ति बेच 1938 में कलकत्ता छोड़ दिया. कलकत्ता छोड़ने के बाद कज्जन बाई ने सपनों की नगरी मुंबई का रुख किया. अपनी प्रॉपर्टी बेच कर जो 60 हज़ार रूपए कज्जन को मिले थे उससे उन्होंने जहाँआरा थिएटर कंपनी शुरू की.

कज्जन बाई
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अपने करियर को दोबारा पटरी पर लाने के लिए उन्होंने वक़्त के मुताबिक अपने मशहूर शोज को कांट-छाँट करके पूरे भारत में परफॉरमेंस देने लगीं. उन्होंने लाहौर, मुल्तान, अमृतसर, दिल्ली और मुंबई की महफ़िलों में इन्होने परफॉर्मेंस दी, लेकिन उस वक़्त तक इनकी सेहत ख़राब रहने लगी शायद कोर्ट कचहरी के चक्कर या फिर अपने करियर को दुबारा शुरू करने के प्रेशर ने की सेहत पर बुरा असर डाला था. बेशुमार शोहरत और दौलत देखने वाली कज्जनबाई अपनी रंगीन मिजाज़ी से भी लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया करती थीं. सबसे पहले इन्हे मोहब्बत हुई अपने को-सत्र फ़िदा हुसैन से जो मदन थिएटर कंपनी में एक्टर और डायरेक्टर हुआ करते थे. फ़िदा हुसैन साहब कज्जन पर इतने फ़िदा थे कि सोते बैठते सिर्फ कज्जन की नाम की माला जपा करते थे लेकिन इनका ये रिश्ता ज़्यादा चल नहीं पाया और दोनों अलग हो गए फिर इनके लिंक की खबर आयी अपने वक़्त के सबसे हैंडसम और चर्चित एक्टर रहे नज्म-उल-हसन से भी जुड़ा. ये वही नज्म-उल- हसन जिन्हे फर्स्ट लेडी ऑफ़ इंडियन सिनेमा देविका रानी से अफ़ेयर की वजह से बॉम्बे टॉकीज कंपनी से निकल दिया गया था. कई लोगों के साथ अफेयर होने के बावजूद भी इन्होने कभी शादी नहीं की. शादी ना करने की वजह शायद इनकी बीमारी रही हो जो इन्हे खाये जा रही थी.

कज्जन बाई नज्म- उल – हसन के साथ
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कज्जन की तबियत जब ज़्यादा ख़राब रहने लगी तो उनकी माँ सुग्गन बाई उनकी देखभाल करने के लिए मुंबई आ गयीं. थिएटर ही उनकी आमदनी का एकमात्र जरिया था लेकिन कज्जन की तबियत ख़राब होने की वजह से वह भी बंद करना पड़ा और उसमें लगाए गए साठ हज़ार रुपये ही डूब गए. किसी ज़माने में ऐश-ओ- आराम से ज़िन्दगी बिताने वाली कज्जन पाई पाई को मोहताज होने लगीं. उस वक़्त उनका साथ दिया मशहूर फिल्कार सोहराब मोदी ने. वह अपने निर्देशन में बनने वाली लगभग हर फ़िल्म में कज्जन को काम देने लगे. कज्जन ने उनके साथ लगभग 6 फ़िल्मों में काम किया, जिनमें ज़्यादातर करेक्टर रोल ही रहे. उस वक़्त उनकी एकलौती बड़ी फ़िल्म रही पृथ्वी वल्लभ, जिसमें उनके काम को नोटिस किया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. इस फ़िल्म से भी उन्हें कोई ख़ास फ़ायदा नहीं हुआ.

1944 की फ़िल्म मुमताज़ महल के बाद कज्जनबाई फ़िल्मों से गायब हो गयीं. कई वेबसाइट ये दावा करती हैं कि फ़िल्में छोड़ने की मुख्य वजह उनका गिरता स्वस्थ्य था लेकिन असली वजह क्या थी ये आज तक नहीं पता चल सकी. फ़िल्मी परदे पर उनकी जोड़ी एक्टर निस्सार के साथ ख़ूब जमी. 1945 के आस पास लोकल अख़बारों और फ़िल्मी मैगजीन्स से पता चला कि कज्जन बाई की मौत हो गयी है तारीख का किसी को भी अंदाज़ा नहीं. कुछ लेखकों के मुताबिक 1941 के आस पास ही कज्जन काफी बीमार रहने लगीं थीं लेकिन घर चलने के लिए उन्हें काम करना पड़ता था लेकिन जब ज़्यादा तबियत ख़राब रहने लगी तो उन्होंने फिल्मों से बिलकुल ही किनारा कर लिया, वही कुछ लोगों का कहना था कि उन्हें कैंसर था इस वजह से उनकी मौत हुई. असली वजह क्या थी किसी को नहीं पता. मौत के वक़्त उनकी उम्र सिर्फ 30 साल थी. कज्जनबाई की मौत के बाद उनकी माँ सुग्गन बाई का क्या हुआ या उनके परिवार में और कौन कौन लोग थे यह कोई नहीं जनता. दोस्तों अगर आपके पास कज्जनबाई की कोई और जानकारी हो या उनकी मौत के बाद उनका परिवार आज कहाँ है तो हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताइयेगा.

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