मीना कुमारी: मैं ने सोचा है कि आज तुझे ख़त लिक्खूँ.

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By Mohammad Shameem Khan

मीना कुमारी हिंदी सिनेमा की उन चोटी की अभिनेत्रियों में से एक हैं जिनकी अदाकारी की मिसाल आज भी पेश की जाती है. एक वक़्त ऐसा भी था जब उनकी फ़िल्मों की धूम हुआ करती थी, उनका जादू दर्शकों के सर चढ़ कर बोलता था. उनकी एक पाकीज़ा फ़िल्म साहब, बीवी और ग़ुलाम जोकि बिमल मित्रा के बंगाली उपन्यास साहब बीवी ग़ुलाम (1953) पर आधारित थी. जिसे निर्देशक अबरार अल्वी ने एक फ़िल्म के रूप में रुपहले परदे पर 1962 में उतारा.

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जब इस फ़िल्म की कास्टिंग की बात आयी तो गुरु दत्त जिनके प्रोडक्शन हाउस के बैनर तले यह फ़िल्म बन रही थी उन्होंने फोटोग्राफर जीतेन्द्र आर्या की बीवी छाया आर्या को फ़िल्म की लीड अदाकारा ‘छोटी बहु’ के किरदार के लिए चुना लेकिन जब उनका स्क्रीन टेस्ट हुआ तो गुरु दत्त को वह कुछ ख़ास नहीं लगीं. उन्होंने छोटी बहु के किरदार के लिए मीना कुमारी को चुना. जब उनसे बात की गयी तो वह तुरंत तैयार हो गयीं लेकिन उनके शौहर कमाल अमरोही नहीं चाहते थे कि मीना इस रोल को करें और उन्होंने फ़िल्म की फीस के तौर पर साठ हज़ार रूपए मांग लिए लेकिन गुरु दत्त तो मीना को बतौर मेहनताना बीस हज़ार रूपए ही दे सकते थे. कमाल अमरोही जोकि मीना का सारा काम भी देखते थे इस फ़िल्म के लिए मना कर दिया. जब यह बात मीना कुमारी को पता चली तो उन्होंने गुरु दत्त मिल कर ख़ुद कहा कि उनके अलावा यह रोल कोई और नहीं कर सकता और वह किसी भी क़ीमत पर छोटी बहु का किरदार अदा करेंगी. मीना कुमारी इससे पहले बिमल रॉय की फ़िल्म देवदास (1955) में ‘पारो’ का क़िरदार करते करते रह गयीं थी. पारो के क़िरदार के लिए बिमल रॉय ने मीना कुमारी को ही एप्रोच किया था और कमाल अमरोही ने इस फ़िल्म के लिए मना कर दिया था और मीना को इस बात की ख़बर भी नहीं लगने दी थी. इसलिए मीना छोटी बहु जैसा बेहतरीन क़िरदार हाथ से जाने नहीं देना चाहती थीं. साहब बीवी और ग़ुलाम के लिए जब मीना का स्क्रीन टेस्ट हुआ तो गुरु दत्त साहब मीना को देख कर उछल गए थे जैसी छोटी बहु वह चाहते थे मीना हूबहू वैसी ही लग रही थीं.

इस फ़िल्म का एक गीत ‘ना जाओ सैय्याँ छुड़ा के बैंय्या क़सम तुम्हारी मैं रो पड़ूँगी’ यह पूरा गीत मीना का एक पलंग के इर्द गिर्द घूमते हुए फ़िल्माया गया था. इस गीत में मीना की अदाकारी देखने लायक़ है गीता दत्त ने जितनी ख़ूबसूरती से इस गीत को गाया है, उतनी ही ख़ूबसूरती से मीना ने इसे परदे पर उतारा है. गीता और मीना, दोनों की ज़िन्दगी में जो दर्द था वह उन्होंने अपनी कला के ज़रिये उकेर दिया था. अपने शौहर की तवज्जो के लिए तरसती छोटी बहु का दर्द मीना ने इतनी शिद्दतसे समझा कि वह क़िरदार मीना के नाम से हमेशा के लिए अमर हो गाया. मेरे ख़्याल अदाकारी के लिहाज़ से यह मीना कुमारी की सबसे अव्वल फ़िल्म है.

ख़ैर चलिए लौटते हैं मीना की ज़िन्दगी पर, मीना की पैदाइश हुई 1 अगस्त 1932 को. जब यह पैदा हुईं तो इन्हे नाम मिला ‘महजबीं बानो.’ इनके वालिद अली बक्श साहब पारसी थिएटर के एक मंझे हुए कलाकार थे. उन्होंने कुछ फ़िल्मों में संगीतकार के तौर पर काम किया था लेकिन वह कौन सी फ़िल्में थीं उसके बारे में कुछ भी पता नहीं चलता है. मीना की माँ प्रभावती देवी जो बाद में इक़बाल बानो के नाम से जानी गयी एक अच्छी अदाकारा और डांसर थीं लेकिन उनका करियर कुछ खास चला नहीं. वह रविंद्र नाथ टैगोर के परिवार से ताल्लुक़ रखती थीं. मीना की जब पैदाइश हुई तो घर में इतनी गरीबी थी कि इनके पिता ने इन्हे यतीमख़ाने में छोड़ दिया था लेकिन पिता दिल जब पसीजा तो कुछ वक़्त बाद वह मीना को वापस ले आए थे.

मीना कुमारी ने पहली बार 1939 में ‘लेदर फेस’ नाम की फ़िल्म से बाल कलाकार के तौर पर कैमरा फेस किया था. उसके बाद वह अधूरी कहानी (1939), पूजा, एक ही भूल (1940), नई रौशनी, बहन, कसौटी (1941), गरीब, विजय (1942), प्रतिज्ञा (1943), लाल हवेली (1944) जैसी फ़िल्मों में ये नज़र आयीं. 1946 में किदार शर्मा के निर्देशन में बनी फ़िल्म ‘दुनिया एक सराय’ से इन्होने मुख्य अभिनेत्री के तौर पर शुरुवात की. इस फ़िल्म में इन्होने एक गीत ‘मा देख री मा बदली’ गाया था. इसके बाद ये पौराणिक फ़िल्में जैसे वीर घटोत्कच्छ (1949), श्री गणेश महिमा (1950), लक्ष्मी नारायण, हनुमान पाताल विजय (1951) जैसी फ़िल्मों से इन्होने ख़ुद को एक अभिनेत्री के तौर पर स्थापित कर लिया था. फिर आयी एक ऐसी फ़िल्म जिसने सब कुछ बदल कर रख दिया वह थी विजय भट्ट के निर्देशन में बनी फ़िल्म बैजू बावरा (1952). इस फ़िल्म ने उन्हें हिंदी सिनेमा में स्थापित करने में मुख्य भूमिका निभाई. उसके बाद 1953 में आयी परिणीता ने इनकी नीव मज़बूत कर दी. इन फ़िल्मों में इनकी अदाकारी के जौहर ख़ूब निखर कर सामने आया.

मीना कुमारी के उदय के साथ ही भारतीय सिनेमा में नयी अदाकाराओं का एक ख़ास दौर शुरू ही हुआ था, जिसमें नरगिस, मधुबाला, कामिनी कौशल, नलिनी जयवंत और नूतन हैं. 1953 तक मीना की तीन सुपर हिट फ़िल्में हो गयीं थी- दायरा, दो बीघा ज़मीन, और परिणीता.

फ़िल्म परिणीता में उनका निभाया गाया क़िरदार ने भारतीय महिलाओं को बहुत प्रभावित किया था, क्योंकि इस फ़िल्म में उनके क़िरदार के ज़रिये उस वक़्त की भारतीय महिलाओं की ज़िन्दगी दिखने की कोशिश की गयी थी जोकि काफी सफल हुई थी. इस फ़िल्म से उनकी जो दुखियारी महिला की छवि बनी वो ताज़िन्दगी उनके साथ रही. उन्होंने ज़्यादातर फ़िल्मों में इसी तरफ के क़िरदार निभाए इसी वजह से उन्हें भारतीय सिनेमा की ‘ट्रेजेडी क्वीन’ कहा जाता है. उनके अदाकारी का एक ख़ास तरीक़ा और मोहक आवाज़ का जादू दर्शकों पर हमेशा तारी रहा.

मीना कुमारी ने मशहूर फ़िल्म निर्देशक, पटकथा और डायलॉग राइटर कमाल अमरोही से लव मैरिज की थी. उन्होंने मीना कुमारी को लेकर कुछ फ़िल्में बनाई थीं. मीना और कमाल की ज़्यादा दिन नहीं बन पायी और मीना 1964 में कमाल से बिना तलाक़ लिए अलग रहने लगीं. मीना ने एक से बढ़कर फ़िल्मों में काम किया अगर उनकी कुछ यादगार फ़िल्मों को याद किया जाये तो आज़ाद, सहारा, यहूदी, चिराग कहाँ रौशनी कहाँ, कोहिनूर, दिल अपना और प्रीत पराई, साहब बीवी और ग़ुलाम, मैं चुप रहूंगी, आरती, काजल, फूल और पत्थर, नूर जहाँ, मेरे अपने और पाकीज़ा जैसी बेहतरीन फ़िल्में थीं.

31 मार्च 1972 को मीना कुमारी इस फ़ानी दुनिया से रुखसत हो गयीं. पाकीज़ा मीना कुमारी की आख़िरी फ़िल्मों में से एक है हाँलाँकि उनकी आख़िरी फ़िल्म गोमती के किनारे थीं जो उनके मरने के बाद रिलीज़ हुई थीं.

पाकीज़ा की सफलता के पीछे मीना कुमारी की बेवक़्त मौत का हाथ था. शुरुवात में जब यह फ़िल्म रिलीज़ हुई तो लोगों में कोई उत्साह नहीं था और फ़िल्म समीक्षकों को भी फ़िल्म कुछ ख़ास नहीं लगी थीं लेकिन जैसे ही लोगों को मीना कुमारी की मौत की ख़बर लगी लोगों ने जिस तरह से फ़िल्म सराहा उसकी एक अलग मिसाल थीं. इसमें कोई दो राय नहीं कि फ़िल्म बहुत ही अच्छी बनाई गयी थीं. फ़िल्म का हर पक्ष बेहद ख़ूबसूरत था चाहे अदाकारी हो, कहानी हो या फिर फ़िल्म का संगीत. कमाल अमरोही ने जैसे अपनी मरती हुई बीवी के लिए जैसे फ़िल्म के रूप में एक ताजमहल बनाया हो. वाक़ई मीना कुमारी ने एक से बढ़कर एक फ़िल्में की लेकिन आज भी जब भी उनका नाम आता है तो पाकीज़ा का नाम आना लाज़मी है. पाकीज़ा के गाने उस वक़्त हर गली मोहल्ले में सुने जाते थे – चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो ….यूँ ही कोई मिल गाया था सरे राह चलते चलते…

मीना एक बेहतरीन शायरा भी थीं और मीना कुमारी नाज़ के नाम से लिखा करती थीं. उन्होंने अपनी लिखी हुई कुछ ग़ज़लें अपनी ही आवाज़ में ख़य्याम के संगीत निर्देशन में गायी हैं… टुकड़े टुकड़े दिन बीता धज्जी धज्जी रात मिली… जिस का जितना आँचल था, उतनी ही सौग़ात मिली….

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