हसरत जयपुरी : एक अज़ीम शायर जिसने 1966 में और फिर 1972 में सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीता.

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By Mohammad Shameem Khan

Source: Social Media

मशहूर और मारूफ़ गीतकार हसरत जयपुरी जिनका पैदाइशी नाम इकबाल हुसैन था लेकिन दुनिया उन्हें हसरत जयपुरी के नाम से जानती है इनकी पैदाइश (15 अप्रैल 1922 को जयपुर में हुई थी. वह एक बेहतरीन शायर होने के साथ साथ हिंदी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध फ़िल्म गीतकार भी थे , जहाँ उन्होंने दो बार सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीता – 1966 में और फिर 1972 में.

हसरत जयपुरी ने अपने नाना, शायर फ़िदा हुसैन ‘फ़िदा’ से उर्दू और फ़ारसी में तालीम (शिक्षा) हासिल की. जब वह लगभग बीस वर्ष के थे, तब उन्होंने शायरी लिखना शुरू किया. लगभग उसी वक़्त, उन्हें पड़ोस की राधा नाम की लड़की से प्यार हो गया. हसरत जयपुरी ने एक इंटरव्यू में इस लड़की को लिखे एक प्रेम पत्र के बारे में बात करते हुए बताया था कि प्यार का कोई मज़हब नहीं होता.

हसरत जयपुरी ने इसी इंटरव्यू में कहा था, “यह बिल्कुल भी जरूरी नहीं है कि एक मुस्लिम लड़के को केवल एक मुस्लिम लड़की से ही प्यार हो. मेरा प्यार खामोश था, लेकिन मैंने उसके लिए एक कविता लिखी, ‘ये मेरा प्रेम पत्र पढ़ कर, के’ तुम नाराज़ न होना” उन्होंने यह प्रेम पत्र कभी राधा को दिया ही नहीं बाद में फ़िल्म निर्माता निर्देशक राज कपूर को उनकी लिखी हुई यह कविता काफ़ी पसंद आयी और उन्होंने इसे अपनी फ़िल्म संगम (1964) में शामिल किया और यह गाना काफ़ी मक़बूल हुआ.

1940 में, जयपुरी बंबई (अब मुंबई ) आये और यहाँ बस कंडक्टर के रूप में काम करना शुरू किया. उन्हें उस वक़्त ग्यारह रुपये का मासिक वेतन मिलता था. वह मुशायरों में भी हिस्सा लिया करते थे. एक मुशायरे में पृथ्वीराज कपूर की नज़र हसरत जयपुरी पर पड़ी और उन्होंने अपने बेटे राज कपूर से उनकी सिफारिश की. राज कपूर शंकर-जयकिशन के साथ एक संगीतमय प्रेम कहानी, बरसात (1949) की योजना बना रहे थे. जयपुरी ने फ़िल्म के लिए अपना पहला रिकॉर्डेड गाना जिया बेकरार है लिखा. उनका दूसरा गाना (और पहला युगल) ‘छोड़ गए बालम’ था.

शैलेन्द्र के साथ, जयपुरी ने 1971 तक राज कपूर की सभी फ़िल्मों के लिए गीत लिखे. जयकिशन की मृत्यु और मेरा नाम जोकर (1970) और कल आज और कल (1971) की विफलता के बाद, राज कपूर ने अन्य गीतकारों और संगीत निर्देशकों की ओर रूख़ किया. राज कपूर शुरू में उन्हें प्रेम रोग (1982) के लिए वापस बुलाना चाहते थे, लेकिन बाद में उन्होंने एक अन्य गीतकार, अमीर क़ज़लबाश को चुन लिया. कपूर ने अंततः उनसे फ़िल्म राम तेरी गंगा मैली (1985) के लिए गीत लिखने के लिए कहा. हसरत ने इस फ़िल्म का सबसे मशहूर गीत – सुन साहिबा सुन प्यार की धुन लिखा.

बाद में, उन्होंने हसरत को फिल्म हिना (1991) के लिए तीन गाने लिखने के लिए भी आमंत्रित किया. जयपुरी ने बाद में यह आरोप लगाया था कि राज कपूर की मौत के बाद, संगीतकार रवींद्र जैन ने उनके गीतों को हटाने और उन्हें अपने गीतों से बदलने की साजिश रची. इस बात में कितनी सच्चाई है ये तो वह जानते होंगे या फिर रविंद्र जैन.

जब साथी गीतकार शैलेन्द्र ‘ तीसरी कसम’ के निर्माता बने, तो उन्होंने जयपुरी को फ़िल्म के लिए गीत लिखने के लिए चुना. उन्होंने फ़िल्म हलचल (1951) के लिए पटकथा भी लिखी थी. गीतकार के रूप में उनकी आख़िरी फ़िल्म हत्या: द मर्डर (2004) थी.

जयपुरी ने अपनी पत्नी की सलाह पर अपनी कमाई को रियल एस्टेट या किराये की संपत्ति में निवेश किया. इन संपत्तियों से हुई कमाई की बदौलत उनकी आर्थिक स्थिति मज़बूत थी और इसलिए वे गीतकार के रूप में अपना समय समर्पित कर सके. उनके दो बेटे और एक बेटी हैं जो मुंबई में रहते हैं. उनकी बहन बिलकिस मलिक की शादी संगीत निर्देशक सरदार मलिक से हुई थी और वह संगीतकार अनु मलिक की मां हैं. इस तरह से वह अन्नू मालिक के मामू थे.

उनके दो बेटे और एक बेटी, अख्तर हसरत जयपुरी और आसिफ हसरत जयपुरी और किश्वर जयपुरी हैं. आदिल, अमान, आमिर और फैज़ जयपुरी उनके पोते हैं.

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