रुस्तम-ए-हिन्द दारा सिंह : 500 कुश्ती के मैच खेले लेकिन हारे.

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By Filmi Khan

दारा सिंह जैसा ना कोई हुआ है और ना ही कोई होगा.

जब कभी भी कुश्ती की बात होगी तो रुस्तम-ए-हिन्द दारा सिंह का नाम सबसे पहले आएगा. आज भले ही वो हमारे साथ ना हों लेकिन उनसे जुडी तमाम यादें आज भी हमारे ज़हन पर ताज़ा हैं. उन्होंने जो भी काम किया बहुत ही शिद्दत के साथ किया. अगर वो कुश्ती खेले तो ऐसे खेले कि 500 मैचों में उन्हें कोई हरा नहीं पाया और अभिनय ऐसा किया कि आज भी लोगों को टीवी सीरियल के भगवान हनुमान लोगों को भुलाये नहीं भूलते. पंजाब का ये शेर आज भी कई लोगों के दिल ओ दिमाग़ में एक मीठी याद बन कर ताज़ा है. आज आपको सुनाएंगे दारा सिंह की ज़िन्दगी की दास्तान…

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इस बेमिसाल कलाकार का पूरा नाम था दारा सिंह रंधावा. और इनकी पैदाइश हुई 19 नवंबर 1928 को पंजाब में..ये वो ज़माना था जब फ्री स्टाइल कुश्ती का बोलबाला था. दारा सिंह अपने बचपन में ही कुश्तियां देखते आये थे तो इनके मन में भी पहलवान बनने का शौक़ हुआ लेकिन इनका ये शौक़ एक दिन इन्हे वर्ल्ड चैंपियन बना देगा ये तो इन्हे भी अंदाज़ा नहीं था. इन्होने पचपन साल की उम्र तक पहलवानी की और अपराजित रहे. दारा सिंह साहब 6 फ़ीट और 2 इंच लम्बे, 130 किलो का वज़न और 53 इंच का सीना लिए ये अपने ज़माने के ज़बरदश्त पहलवान रहे. ये पहलवान कैसे बने इनसे एक बड़ा ही दिलचस्प क़िस्सा मशहूर है..

दारा सिंह के छोटे भाई का नाम सरदार सिंह था. दोनों भाइयों ने साथ में शौकिया पहलवानी करना शुरू किया था. कुछ वक़्त के बाद दोनों भाइयों ने मिलकर गांव के दंगल से कुश्तियाँ जीत कर शहर में आयोजित कुश्तियों में भाग लेकर जीत हासिल की. और इस तरह से दारा सिंह नाम का एक सितारा चमकने लगा. कुछ वक़्त बाद ही ये कुश्ती से ऊब गए. इनके एक चचाजान सिंगापुर जाया करते थे कुछ काम के सिलसिले में. इस बार जब वो आये तो दारा सिंह ने उनसे रिक्वेस्ट की कि वो उन्हें भी सिंगापुर ले चले साथ में.

चचाजान ने पहले तो नानुकुर की लेकिन फिर बाद में वो मान गए. सिंगापुर में कुछ प्रवासी भारतीयों ने इनकी हौसला अफ़ज़ाई कि इन्हे ख़ुदा ने अच्छा ख़ासा डील डौल दिया है तुम पहलवानी क्यों नहीं करते तब इन्होने जवाब दिया कि ये पहलवानी छोड़ चुके हैं लेकिन फिर भी लोग ज़िद करते रहे कि उन्हें पहलवानी करनी पड़ी.. लोगों ने ज़रा मदद की तो दारा सिंह दोबारा से कुश्ती करने को तैयार हो गए. वहाँ रहते हुए उन्होंने भारतीय स्टाइल की कुश्ती में मलेशियाई चैम्पियन तरलोक सिंह को हरा कर कुआला लंपुर में मलेशियाई कुश्ती चैम्पियनशिप जीती. उसके बाद उनका विजय अभियान कई और  देशों से होता हुआ एक पेशेवर पहलवान के रूप में 1952 में अपने मादरे वतन भारत लौट आये. भारत आकर 1954 में वे भारतीय कुश्ती चैम्पियन बने.

दारा सिंह को हमेशा कुश्ती चैंपियन किंग कॉन्ग के साथ हुए उनके मुकाबले के लिए जाना जाता है. कुश्ती के इतिहास के सबसे हैरतअंगेज मुक़ाबलों में से एक इस मुक़ाबले में दारा सिंह ने ऑस्ट्रेलिया के 200 किलो वजनी किंग कॉग को सर से ऊपर उठाया और घुमा के फेंक दिया था. ये दांव देखकर दर्शक दीर्घा में बैठे लोगों दांतो तले उंगलियां दबा ली थी. 50 के दशक में दारा सिंह, किंग कॉन्ग और फ़्लैश गॉर्डन कुश्ती की दुनिया के बेताज बादशाह थे. किंग कॉन्ग और दारा सिंह का मैच देखने के लिए  दर्शकों का भरी हुजूम उमड़ पड़ा था. दारा सिंह ने 1983 दिल्ली में उन्होंने अपना आखिरी मुकाबला खेला और जीत के बाद संन्यास ले लिया था.

जब दारा सिंह देश और दुनिया में खूब तरक़्क़ी कर रहे थे तो कई फिल्म प्रोडूसर्स ने उनके साथ फिल्म बनाने का ऑफर दिया लेकिन ये हमेशा इंकार करते रहे लेकिन एक बार की बात है एक प्रोडूसर   इनके किसी ख़ास जानने वाले की सिफ़ारिश लेकर आये तब इनसे इंकार ना करते बना लेकिन सबके सामने इन्होने कहा कि इन्हे तो कुश्ती आती है फिल्म में एक्टिंग कौन करेगा…ये बात सुनकर सब हंस दिए.

इन्होने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुवात 1952 में रिलीज़ हुई फिल्म संगदिल में ये ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार और मधुबाला के साथ नज़र आये. 1954 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘पहली झलक’ में ये दारा सिंह का ही किरदार निभाते नज़र आये, पर 1962 में रिलीज़ हुई बाबू भाई मिस्त्री की फिल्म किंग कॉन्ग में ये बतौर हीरो नज़र आये थे. उस वक़्त इनका इतना नाम था कि कोई भी अभिनेत्री इनके साथ काम नहीं करना चाहती थीं.लेकिन 1963 में इन्हे इनकी फिल्मों की हीरोइन मिल गयी वो कोई और नहीं बल्कि 60 से 70 के दशक की मशहूर और मारूफ़ अदाकारा मुमताज़ थीं. इस जोड़ी ने तक़रीबन 16 फिल्मों में साथ काम किया.

कपूर ख़ानदान की हर पीढ़ी के साथ ये क़दम से क़दम मिला कर काम करते नज़र आये.. पृथ्वी राज कपूर के साथ इन्होने सिकंदर-ए- आज़म, खाकान. लूटेरा, डाकू मंगल सिंह और इंसाफ जैसी फिल्में की. राज कपूर के साथ ये मेरा नाम जोकर में नज़र आये. करीना कपूर के साथ इन्होने जब वी मेट में काम किया.

उन्होंने कुछ फिल्में प्रोड्यूस भी कीं. हिंदी सिनेमा के मशहूर फिल्म निर्देशक मनमोहन देसाई ने एक बार उनके लिए कहा था कि मैं अमिताभ बच्चन को लेकर फिल्म मर्द बना रहा था और मैं सोच रहा था कि उनके वालिद यानि पिता का रोल कौन निभा सकता है? मुझे लगा कि अगर मैं अमिताभ को मर्द की भूमिका में ले रहा हूं तो जाहिर है मर्द का बाप तो दारा सिंह ही होना चाहिए.

दारा सिंह मे बॉलीवुड के टॉप सितारों के साथ काम किया था. दारा सिंह ने मेरा नाम जोकर, अजूबा, दिल्लगी, कल हो न हो और जब वी मेट जैसी फिल्मों में काम किया था. उन्होंने कई हिंदी और पंजाबी फिल्में बनाई जिसमें वो ख़ुद लीड रोले निभाते नज़र आये. 1980 और 90 के दशक में दारा सिंह ने टीवी का रूख़ किया, अपने वक़्त के ऐतिहासिक सीरियल रामायण में भगवान हनुमान की भूमिका निभाकर वे घर-घर में जबरदस्त पहचान बनाने में कामयाब हुए थे. जब ये सीरियल बन रहा था तब इनकी उम्र तक़रीबन 60 साल थीं. बाद में ‘महाभारत’ में भी उन्होंने हनुमान जी का रोल ही निभाया था.

2012 में रिलीज़ हुई ‘अता पता लापता’ उनकी ज़िन्दगी की आख़िरी फिल्म थी.

खेल और फिल्मों के अलावा दारा सिंह ने राजनीति में भी हाथ आजमाया. वे देश के पहले खिलाड़ी थे जिन्हें राज्यसभा के लिए किसी राजनीतिक पार्टी ने नामित किया था. भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें 2003-2009 तक राज्य सभा का सदस्य बनाया.

दारा सिंह
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दारा सिंह की अगर पारिवारिक ज़िन्दगी की तरफ रूख़ करें तो पता चलता था कि इनकी शादी 16  साल की कम उम्र में ही उनके परिवार वालों ने उनकी मर्ज़ी के खिलाफ़ उनकी उम्र से बड़ी लड़की से कर दी थीं और सत्रह साल की नाबालिग उम्र में ही दारा सिंह प्रध्युमन रन्धावा नाम के एक लड़के के वालिद बन गये थे. पहलवानी में अपार सफलता मिलने के बाद इन्होने एक पढ़ी लिखी लड़की सुरजीत कौर से शादी थीं. इस शादी से उन्हें 3 बेटी और 2 बेटे है. पहली पत्नी से हुआ एक बेटा प्रद्युमन अब मेरठ में रहता है. जबकि दूसरी पत्नी से जो बेटे है वो मुंबई में रहते है.

12 जुलाई 2012, को दिल का दौरा पड़ने की वजह से ये दुनिया-ए -फ़ानी से हमेशा के लिए रुख़्सत हो गए.  इन्होने अपनी आत्मकथा पंजाबी भाषा में लिखी जिसे बाद में हिंदी में भी प्रकाशित किया गया. अपने पचपन साल  के फ़िल्मी कैरियर में कुल मिलाकर एक सौ दस से अधिक फ़िल्मों में बतौर अभिनेता, लेखक एवं निर्देशक के रूप में काम किया.  भारतीय खेल जगत और भारतीय फिल्म जगत में दारा सिंह के योगदान को हमेशा याद रखेगा.

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