1961 में एक फ़िल्म रिलीज़ हुई थी जिसने उस वक़्त में देश में काफ़ी हलचल मचा दी थी. इस फ़िल्म में कवि प्रदीप की आवाज़ में कई गीत थे. फ़िल्म थी ‘अमर रहे यह प्यार,’ इस फ़िल्म में थे राजेंद्र कुमार, नलिनी जयवंत, राधा किशन, रामायण तिवारी और नंदा. इस फ़िल्म का निर्देशन प्रभु दयाल ने दिया था जोकि अभिनेत्री नलिनी जयवंत के हस्बैंड और इस फ़िल्म के को-प्रोड्यूसर भी थे. फ़िल्म के दूसरे को- प्रोड्यूसर हिंदी सिनेमा के मशहूर और मारूफ़ कॉमेडियन और विलेन राधाकिशन थे.
फ़िल्म का संगीत तैयार किया था, सी. रमचंद्रा ने. इस फ़िल्म की कहानी देश के बंटवारे की कहानियों के इर्द-गिर्द घूमती है. विभाजन की त्रासदी में सांप्रदायिक दंगों के बीच पाकिस्तान जाने की भागदौड़ में वकील इक़बाल हुसैन (राजेंद्र कुमार) और उनकी बीवी रज़िया बेगम (नंदा) का बेटा इंडिया में ही छूट जाता है. जो एक विधवा गीता जिसने अभी अभी अपना बच्चा खोया है उसको मिल जाता है और वह उस बच्चे हो पाल लेती है. इधर इक़बाल हुसैन और रज़िया बेगम अपने बच्चे को खोने के ग़म से उबर नहीं पाए हैं और 5 साल बाद इंडिया वापस आते हैं अपने बच्चे की तलाश में. और उसे ढूंढ भी लेते हैं लेकिन गीता उस बच्चे से ख़ुद को अलग नहीं कर सकती. रज़िया और इक़बाल हुसैन और रज़िया यह देखने में असमर्थ है कि बिछड़ने से उनके बेटे और गीता को कितनी तक़लीफ़ हो रही है. गीता की ममता की ख़ातिर वह बिना बच्चा लिए ही पाकिस्तान लौट जाते हैं.
अमर रहे यह प्यार : बॉक्स ऑफिस पर फ़िल्म बुरी तरह से फ्लॉप हो गयी थी.
यह फ़िल्म कई बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से फ्लॉप हो गयी थी. इसके असफल होने के पीछे कई वजहें रहीं, इतनी सेंसिटिव कहानी होने की वजह से फ़िल्म काफ़ी वक़्त तक सेंसर बोर्ड में लटकी रही दूसरे यह कि फ़िल्म में संगीत में कोई रूमानियत नहीं थी. फ़िल्म इतनी सीरियस क़िस्म की थी कि फ़िल्म में ना तो कोई रोमांटिक गीत था और ना ही कोई कॉमेडी सीन.
सबसे इम्पोर्टेन्ट बात इस फ़िल्म के गीत कवि प्रदीप ने लिखे थे और उन गीतों को आवाज़ भी उन्होंने ही दी थी. अपने गीतों के ज़रिये उन्होंने उस वक़्त की सरकार के ख़िलाफ़ देश के विभाजन को लेकर काफ़ी तीख़ी टिप्पणी कर दी थी. साथ ही दंगो के दौरान इंसान के हैवान बन जाने की दास्तान को उन्होंने दोनों ही तरफ के लोगों बहुत ही सख़्त अंदाज़ में अपने गीतों के ज़रिये खरी खोटी सुनाई थी. फ़िल्म के गीत कवि प्रदीप की आवाज़ में ‘आज के इंसान को यह क्या हो गया’ और ‘हाय सियासत कितनी गन्दी’ (यह गीत यू -ट्यूब पर उपलब्ध नहीं हैं) इन गीतों पर सेंसर बोर्ड को काफ़ी आपत्ति थी जिसकी वजह से सेंसर बोर्ड ने इस फ़िल्म को काफ़ी वक़्त तक लटकाये रखा. ख़ुदा ख़ुदा करके जब यह फ़िल्म पास हुई तो इतना गंभीर विषय होने की वजह से कोई भी फ़िल्म वितरक इसे खरीदने को तैयार नहीं हुआ.
जैसे तैसे करके फ़िल्म रिलीज़ हुई तो दर्शकों के लिए तरसती रही. इस फ़िल्म के फ्लॉप हो जाने से फ़िल्म के प्रोडूसर राधा किशन को काफ़ी नुकसान हुआ था और वह यह नुकसान बर्दाश्त नहीं कर पाए थे और उन्होंने अपने घर की चौथी मंज़िल से कूद कर आत्महत्या कर ली थी. ख़ैर फ़िल्म काफ़ी अच्छी थी इसका अंदाज़ा लोगों को बहुत बाद में हुआ.
कवि प्रदीप की आवाज़ में आप चाहें तो गीत सुन सकते हैं.
फ़िल्म के उन दोनों गीतों का लिंक नीचे है आप कवि प्रदीप की आवाज़ में उन गीतों को सुन सकते हैं. अगर गीत अच्छे लगें तो यू-टूयब पर ढूंढ कर इस फ़िल्म को देख सकते हैं. पूरी फ़िल्म यू-टूयब पर उपलब्ध है अगर आप चाहें तो नीचे दिए हुए लिंक में देख सकते हैं. उम्मीद करता हूँ आपको यह जानकारी पसंद आयी होगी.