राज कपूर के दोस्त शैलेन्द्र उनके ही 43वें जन्मदिन पर इस दुनिया से अलविदा कह गए.

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By Mohammad Shameem Khan

शैलेन्द्र
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कहते हैं फिल्मों में ना तो कोई किसी का दोस्त होता है और ना ही दुश्मन. यहाँ सारे रिश्ते सिर्फ काम और मतलब के होते हैं. जिससे जिसका मतलब वो उसके साथ. लेकिन यह पूरा सच नहीं है सिनेमा के गलियारे में कुछ ऐसे किस्से भी मिलेंगे जहाँ सिर्फ प्यार था, मोहब्बत थी और दोस्ती. ऐसी कि आखिरी सांस तक साथ रहा. मशहूर और मारूफ़ अदाकार, प्रोडूसर, डायरेक्टर राज कपूर और गीतकार शैलेन्द्र की अटूट दोस्ती का अफसाना आज हम आपको बताएँगे

कैसे शुरू हुआ दोस्ती का सफर 

बात 40 के दशक की है. दोनों की मुलाकात एक मुशायरे के दौरान हुई थी जहां शैलेंद्र विभाजन पर अपनी लिखी हुई कविता ‘जलता है पंजाब’ सुना रहे थे. राजकपूर को शैलेंद्र की यह कविता  बेहद पसंद आई.

मुशायरे के बाद उन्होंने शैलेन्द्र से मुलाकात की और उनसे इस कविता को खरीदने की बात कही क्योंकि वह इसे अपनी पहली डायरेक्टोरियल डेब्यू फिल्म ‘आग’ (1948) में इस्तेमाल करना चाहते थे. साथ ही उन्होंने शैलेंद्र को फिल्म के दूसरे और गीत लिखने का ऑफर दिया. शैलेंद्र ने अपनी कविता बेचने से मना कर दिया और फिल्म का ऑफर भी बड़ी शालीनता से ठुकरा दिया. शैलेन्द्र उन दिनों भारतीय रेलवे में काम करते थे.  

शैलेन्द्र और राज कपूर
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इसके बाद परिस्थितियां कुछ ऐसी बदली कि शैलेन्द्र की आर्थिक स्थिति ख़राब हो गयी, दरअसल उनके घर में नन्हा मेहमान आने वाला था इसलिए आर्थिक स्थिरता बेहद ज़रूरी थी. उन दिनों राज कपूर साहब फिल्म ‘बरसात’ (1949) बना रहे थे. शैलेन्द्र ने उनसे मुलाक़ात की और उनके साथ काम करने की इच्छा जताई तो राज कपूर साहब काफी ख़ुश हुए. उस वक़्त तक फिल्म के दो गीत नहीं लिखे गए थे. शैलेन्द्र ने फिल्म के दो गीत ‘बरसात में’  और  ‘पतली कमर’ लिखे जो सुपर हिट हुए. इस फिल्म का संगीत शंकर जयकिशन ने तैयार किया था. 

दोस्तों का सफ़र 

‘बरसात’ फिल्म से शुरू हुआ शैलेन्द्र और राज कपूर की दोस्ती का सफ़र. शैलेन्द्र को बरसात फिल्म के गीत लिखने के लिए 500 रुपये का मेहनताना दिया गया था. उन दिनों राज कपूर की फिल्मों में एक टीम के तौर पर शंकर जयकिशन संगीत दिया करते थे, आवाज़ मुकेश की होती थी और गीत हसरत जयपुरी लिखा करते थे. शैलेन्द्र ने अपने आगमन से इस टीम को और मज़बूती प्रदान की. शैलेन्द्र की शंकर जयकिशन से भी काफी अच्छी दोस्ती हो गयी थी. एक बार की बात है कि दोनों में किसी बात को लेकर मनमुटाव हो गया और शंकर जयकिशन ने किसी और गीतकार से अपनी फिल्मों में गीत लिखने के लिए अनुबंधित कर लिया यह बात जब शैलेन्द्र को पता चली तो उन्होंने शंकर जयकिशन को एक नोट भेजा – ‘छोटी सी ये दुनिया, पहचाने रास्ते, तुम कभी तो मिलोगे, कहीं तो मिलोगे तो पूछेंगे हाल’, नोट पढ़ते ही अनबन ख़त्म हो गयी. इन दोस्तों का साथ कभी नहीं टूटने वाला था और उन्होंने मिलकर कई अमर गीत दिए जो आज भी बहुत ही चाव से सुने जाते हैं.

‘वाह पुष्किन! दिल ख़ुश कर दिया क्या गीत लिखा है!’   

वक़्त के साथ राज कपूर का शैलेंद्र की दोस्ती और गहरी होती चली गयी. राज कपूर शैलेंद्र को प्यार से  ‘पुष्किन’ या ‘कविराज’ बुलाया करते थे. राज कपूर-शैलेंद्र ने लगभग 21 फिल्मों में साथ काम किया जिनमें ‘मेरा नाम जोकर’, ‘तीसरी कसम’, ‘सपनों का ‘सौदागर’, ‘संगम’, ‘अनाड़ी’ और ‘जिस देश में गंगा बहती है’ जैसी शामिल हैं. 

शैलेंद्र
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बात उस वक़्त की है जब फिल्म अनाड़ी (1959) का एक गीत  ‘सब कुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारी…’ रिकॉर्ड किया जा रहा था और यह गीत राज कपूर के पसंदीदा शैलेंद्र ने ही लिखा था. उस दिन कहीं और बिजी होने की वजह रिकॉर्डिंग में नहीं आ सके थे जब वह स्टूडियो पहुंचे तो ये गीत मुकेश की आवाज़ में रिकॉर्ड किया जा चुका था. राज कपूर को ये गीत काफी पसंद आया और वह गीत की कॉपी अपने घर ले गए ताकि उसे सुकून से सुन सकें. घर जाकर उन्होंने कई-कई बार उस गीत को सुना लेकिन अहिरी में उनसे ना रहा गया तो वह शैलेन्द्र के घर पहुंच गए. वहां राज कपूर ने शैलेन्द्र को गले लगा कर कहा – वाह पुश्किन! दिल ख़ुश कर दिया, क्या गीत लिखा है. दोनों दोस्त रोने लगे. 

14 दिसंबर जब ख़ुशी मातम में बदल गयी: दोनों दोस्तों का खास कनेक्शन 

14  दिसंबर 1966 को राज कपूर अपना जन्मदिन मना रहे थे तो शैलेन्द्र साहब ख़राब स्वस्थ्य की वजह से अस्पताल में भर्ती हो गए थे. तब सिंगर मुकेश ने फ़ोन करके यह खबर दी कि शैलेन्द्र की हालात नाज़ुक है. अभी मुकेश राज कपूर को फ़ोन पे ये जानकारी दे ही रहे थे कि शैलेन्द्र कोमा में चले गए. फिर तो शैलेन्द्र की हालत बिगड़ती ही चली गयी. उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट दिया गया, ब्लड ट्रांसफ्यूजन किया गया लेकिन वह मनहूस खबर आयी जिसने राज कपूर का दिल तोड़ के ही रख दिया. उनके जन्मदिन के दिन ही 43  साल की उम्र में अपनी शायरी को सीधे सीधे अंदाज़ में कहने वाला ये शायर इस दुनिया- ए- फानी से रुख़्सत हो गया.

शैलेन्द्र के यूं अचानक चले जाने से राज कपूर को गहरा सदमा लगा था और फिल्मफेयर मैगज़ीन में उन्होंने एक ओपन लेटर लिखा था, 

मेरी रूह का एक हिस्सा दुनिया से चल बसा. मेरे लिए ये बिलकुल भी सही नहीं हुआ है. मैं चीख रहा हूँ रो रहा हूँ. मेरे बागीचे के सबसे सुंदर गुलाब को कोई तोड़ ले गया. शैलेन्द्र एक नेक़ दिल इंसान था. अब वो चला गया और रह गई हैं तो सिर्फ़ उसकी यादें जो कभी भुलाई नहीं जा सकती. वह अपने गीतों के साथ हमेशा हमारे साथ रहेंगे’.  

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