राकेश रोशन और सदाबहार अदाकारा रेखा की दोस्ती का क़िस्सा, ख़ूबसूरत (1980) के वक़्त का.

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By Filmi Khan

राकेश रोशन का फ़िल्मी सफ़र

Rakesh Roshan
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मशहूर और मारूफ़ संगीतकार रोशन की असामयिक मौत के बाद, उनके साहबज़ादे राकेश रोशन ने राजेंद्र कुमार और बबीता अभिनीत फ़िल्म अंजाना में फ़िल्म निर्माता मोहन कुमार के सहायक निर्देशक के रूप में अपने करियर की शुरुवात की. अभिनेता राजेंद्र कुमार ने उनकी बेहतरीन पर्सनालिटी को देखते हुए उन्हें सलाह दी कि उन्हें एक्टिंग में कोशिश करनी चाहिए तो राकेश रोशन ने उनसे कहा कि वह तो किसी को अच्छी तरह से नहीं जानते तो कोई उन्हें काम क्यों देगा तो राजेंद्र कुमार ने उन्हें कुछ फिल्म निर्माताओं के पास भेजा और इस तरह से एक अभिनेता के रूप में फिल्मों में उनकी एंट्री 1970 की फिल्म ‘घर-घर की कहानी’ से हुई, जिसमें उन्हें सहायक भूमिका मिली. उन्हें अपने करियर में बहुत कम सोलो हीरो वाली फिल्में मिलीं. उन्हें ज़्यादातर एक्ट्रेस की मुख्य भूमिका वाली फिल्मों में हीरो की भूमिकाएं मिली जिसमें उनका स्क्रीन स्पेस बहुत काम होता था या फिर उनकी भूमिका ना के बराबर ही होती थी, जैसे हेमा मालिनी के साथ पराया धन, भारती के साथ आँख मिचोली, रेखा के साथ ख़ूबसूरत और जया प्रदा के साथ कामचोर. इन सारी फिल्में हीरो के तौर पर उनकी मुख्य भूमिका वाली हिट फिल्में थीं लेकिन इन फिल्मों का सारा क्रेडिट फ़िल्म की हेरोइन को ही मिला उन्हें नहीं. उनकी कुछ और सफल फिल्में जिनमें उन्हें फ़िल्म की हेरोइन के बराबर ही रोल मिला जैसे- राखी के साथ आंखें आंखों में, योगिता बाली के साथ नफ़रत, लीना चंदावरकर के साथ एक कुंवारी एक कुंवारा, बिंदिया गोस्वामी के साथ हमारी बहू अलका और रति अग्निहोत्री के साथ शुभ कामना.

जब राकेश रोशन ने फ़िल्मों में काम पाने के लिए किया कड़ा संघर्ष

अपने ज़माने के मशहूर प्रोडूसर जे. ओम प्रकाश ने राकेश को मुख्य भूमिका में लेकर ‘आंखों आंखों में’ का निर्माण किया जिसमें उनकी हेरोइन राखी थीं लेकिन यह फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर कुछ कमाल नहीं कर पाई. बाद में, जे. ओम प्रकाश ने संजीव कुमार की मुख्य भूमिका वाली ‘आक्रमण’ का निर्देशन किया, जिसमें राकेश सहायक भूमिका में थे, और फिर उन्होंने ‘आख़िर क्यों’ का निर्माण किया, जिसमें राजेश खन्ना मुख्य भूमिका में थे और राकेश सहायक भूमिका में थे. राकेश ने कुछ सफल फिल्मों में सहायक भूमिकाएँ निभाईं, जैसे संजीव कुमार के साथ मान मंदिर, ऋषि कपूर के साथ खेल खेल में, देव आनंद के साथ बुलेट, विनोद खन्ना के साथ हत्यारा, रणधीर कपूर के साथ ढोंगी, जीतेन्द्र के साथ खानदान और मुख्य नायक के तौर पर शशि कपूर के साथ नियत में. उन्होंने राजेश खन्ना की मुख्य भूमिका वाली फिल्मों में नियमित रूप से सहायक भूमिकाएँ निभाईं और उनमें से फ़िल्म, ‘चलता पुर्ज़ा’ फ्लॉप रही और बाक़ी की तीन और फ़िल्में ब्लॉकबस्टर रहीं – धनवान, आवाज़ और आख़िर क्यों? फ़िल्म निर्माता जे. ओम प्रकाश की बेटी की शादी राकेश रोशन से हुई थी.

राकेश रोशन फिल्मों में सेकंड लीड हीरो बन कर रह गए

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1977 और 1986 के बीच उन्होंने कुछ मल्टी-स्टार कास्ट फिल्मों में काम किया जिनमें से संजीव कुमार के साथ देवता, श्रीमान श्रीमती और हथकड़ी और मिथुन चक्रवर्ती के साथ जाग उठा इंसान और एक और सिकंदर जैसी फिल्मों में वह नज़र आये. उनके करियर की कुछ और शानदार फ़िल्में जैसे दिल और दीवार, खट्टा मीठा, उन्नीस- बीस और मक़्क़ार (1986).
राकेश ने 1980 में अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी, फिल्मक्राफ्ट की शुरू की और उनका पहला प्रोडक्शन आप के दीवाने (1980) था, जो बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से फ्लॉप रही. उनकी अगली फिल्म कामचोर थी, जिसका निर्माण भी उन्होंने ही किया था, जो हिट रही, लेकिन इस फिल्म की सफलता का श्रेय इसके संगीत और हेरोइन जया प्रदा को दिया गया. के. विश्वनाथ द्वारा निर्देशित उनकी अगली हीरो के तौर पर फ़िल्म शुभ कामना हिट रही. उन्होंने जे. ओम प्रकाश द्वारा निर्देशित भगवान दादा (1986) के साथ खुद को मुख्य नायक के रूप में फिर से लॉन्च करने की कोशिश की और इसमें रजनीकांत ने मुख्य भूमिका निभाई और ख़ुद सहायक भूमिका में थे. लेकिन भगवान दादा फ्लॉप असफल रही. 1984 से 1990 के बीच उन्हें फ़िल्म ‘बहुरानी’ को छोड़कर केवल सहायक भूमिकाएँ ही मिलीं. लीड हीरो के तौर पर उनकी आख़िरी फ़िल्म बहुरानी थी, जो रेखा की मुख्य भूमिका वाली फ़िल्म थी, जिसे माणिक चटर्जी द्वारा निर्देशित किया गया था.

राकेश रोशन और रेखा की दोस्ती का सफ़र

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सदाबहार अदाकारा रेखा के साथ उनकी बहुत अच्छी दोस्ती है. यह दोस्ती कैसे हुई इसके पीछे एक यादगार क़िस्सा है. बात है 1980 की, जब मशहूर फ़िल्म निर्देशक हृषिकेश मुख़र्जी एक्ट्रेस रेखा को लेकर ख़ूबसूरत फ़िल्म बना रहे थे. रेखा का सितारा उन दिनों बुलंदियों पर था उस वक़्त उनकी सभी फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा रहीं थीं. हृषिकेश मुख़र्जी अपनी फ़िल्म के लिए हीरो की तलाश में थे उन्होंने कई लीड एक्टर्स को मनाने की कोशिश की लेकिन फीमेल लीड होने की वजह से कोई भी एक्टर फ़िल्म करने को राज़ी नहीं हो रहा था. राकेश रोशन को जब यह बात पता चली तो उन्होंने हृषिकेश मुख़र्जी से मुलाक़ात की और अपने आने का मक़सद बताया. हृषिकेश मुख़र्जी ने उनसे कहा कि वह ही उनक फ़िल्म के हीरो होंगे तो राकेश ने कहा कि एक बार आप रेखा से पूछ लीजिये क्या पता वह उनके साथ काम ना करना चाहें तो हृषिकेश मुख़र्जी ने उन्हें तसल्ली दी कि ऐसा नहीं होगा. जब फ़िल्म की शूटिंग शुरू हुई तो रेखा उनके साथ ख़ूब घुल मिल गयीं. उन्होंने राकेश रोशन को यह एहसास बिलकुल भी नहीं होने दिया कि वह एक बड़ी स्टार हैं और तभी से राकेश और रेखा के बीच एक अच्छी दोस्ती क़ायम है.

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वक़्त हमेशा करवट लेता है कभी एक जैसा नहीं रहता, कुछ सैलून बाद रेखा की फ़िल्में लगातार असफल होने लगीं तब तक राकेश रोशन बड़े फ़िल्म निर्माता निर्देशक बन चुके थे उन्होंने रेखा को लेकर 1988 में ‘ख़ून भरी मांग’ फ़िल्म बनाई जो बॉक्स ऑफिस पर काफी सफल रही जिसने रेखा के सिने करियर को जीवन दे दिया. इस फ़िल्म में रेखा के काम को काफ़ी तारीफ़ और अवार्ड दिलाये. बाद में रेखा ने राकेश के निर्देशन में उनके बेटे ह्रितिक रोशन के साथ कोई मिल गया , कृष जैसी फिल्मों में काम किया.
राकेश की रेखा के साथ दोस्ती आज भी बरक़रार है. 

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