आज हम बात करेंगे- अदाकारा शबाना आज़मी की- सुनील गावस्कर की.
यह दुनिया टैलेंटेड लोगों से भरी पड़ी है लेकिन सफलता सबको नसीब नहीं होती और जो टैलेंटेड होते हैं वह एक ना एक दिन सफल हो ही जाते हैं बस उन्हें सब्र और अपने प्रयासों में निरंतरता रखनी होती है ऐसे बहुत से एक्ज़ाम्पल हमारे और आपके आस पास मिल जायेंगे कि किसी इंसान ने अपने टैलेंट को पहचाना और उसी दिशा में प्रयास किया और सक्सेस मिल ही गयी. कई बार होता है कि बहुत से लोगों को सफलता नहीं मिलती.
कई बार ऐसा होता है कि कोई इंसान एक जगह सफल हो गए तो वह दूसरे क्षेत्र में हाथ आज़माने की कोशिश करते हैं अगर सफल हुए तो ठीक वर्ना अपनी फील्ड में वापस लौट जाते हैं. वहाँ तो सफल हैं ही. जैसे प्रियंका चोपड़ा ने अदाकारी के साथ साथ सिंगिंग में भी अपनी क़िस्मत आज़मायी और वह वहाँ सफल भी हुईं. कुछ लोगों ने अपनी फील्ड की जगह दूसरी जगहों पर हाथ आज़माएं उनके प्रयास को लोगों ने सराहा भी लेकिन उन्हें यह बदलाव ज़्यादा रास नहीं आये इसलिए वह अपने क्षेत्र में वापस चले गए जहाँ वह ज़्यादा सफल थे.
इस मामले में सबसे पहले लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर की बात. सुनील सर ने क्रिकेट में ज़बरदस्त नाम कमाया कि चारों तरफ उनके नाम के रिकॉर्ड ही रिकॉर्ड हैं. उनके कई रिकॉर्ड तो मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने तोड़ दिए. उनके कुछ रिकॉर्ड अब भी बाक़ी हैं जिन्हे किसी ने भी तोड़ने की कोशिश नहीं की हैं और शायद ही कोई करे! अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कौन सा रिकॉर्ड हैं ? तो रुकिए ज़रा बताता हूँ.
बात हैं 1979 की जब इंडियन रिकॉर्ड मैन्युफैक्चरिंग कंपनी, ककतता ने एक रिकॉर्ड जारी किया था, जीवन म्हणजे क्रिकेट के नाम से. इस रिकॉर्ड में सुनील गावस्कर के गाये हुए दो मराठी गीत हैं जिसके बोल हैं- ‘या दुनिया मध्ये थाम्बायाला बेल कोणाला / हे जीवन म्हणजे क्रिकेट राजा हकला संपला. अगर इस गीत के बोल का हिंदी में ट्रांसलेशन करूँ तो वो कुछ ऐसा होगा- भाई इस दुनिया में बने रहने का वक़्त किसी के पास नहीं हैं, राजा यह ज़िन्दगी क्रिकेट की तरह हैं ज़रा सा चुके और विकेट गिरा, पारी ख़त्म.
उनका गाया दूसरा गीत- ‘मित्र तुला हे जग आहे फुलवायचे / जीवनाच्या क्रीड़ागणी स्वैर तू रे खेळायचे.’ इसका मतलब हैं – मित्र / सखा / दोस्त तुम्हे इस दुनिया की फुलवारी जैसा हरा भरा बनाना हैं और ज़िन्दगी के इस मैदान में अपनी पारी खुल कर खेलनी हैं. देखा जाये तो गावस्कर ने ठीक ठाक ही गाया था. लेकिन इस दो गीतों के अलावा उन्होंने फिर गीत नहीं गाये और अपनी क्रिकेटर की ज़िन्दगी में बिज़ी हो गाये.
अब बात गाने की चली हैं तो एक शख़्सियत हैं जिन्होंने अपने फील्ड में तो झंडे गाड़े ही, लेकिन जब गाया तो झूम के गाया. हम बात कर रहे हैं मशहूर और मारूफ़ अदाकारा शबाना आज़मी की. मैं रेडियो के लिए काम करता हूँ और कभी कभार आकाशवाणी FM GOLD 100.1 mhtz पर फ़िल्मी ग़ैर फिल्मीं ग़ज़लों के प्रोग्राम्स होस्ट करता हूँ. वैसे तो इतने सिंगर्स ने इतनी ग़ज़लें गायीं हैं कि उसका अंदाज़ा लगाना मेरे लिए तो बहुत मुश्कल हैं. एक दिन ऐसे ही प्रोग्राम की तैयारी कर रहा था और कुछ खूबसूरत ग़ज़लें तैयार कर रहा था कि मेरी नज़र शबाना आज़मी की गायी हुई ग़ज़लों पर पड़ी.
शबाना आज़मी ने मुज़फ्फर अली की फ़िल्म अंजुमन (1986) के लिए गाया हैं. यह ग़ज़लें शहरयार और फैज़ अहमद फैज़ की कलम से निकली हुई हैं. इस फ़िल्म की पांच ग़ज़लों में से चार ग़ज़लें उनकी आवाज़ में हैं तीन सोलो और एक भूपिंदर सिंह के साथ डुएट. इस फ़िल्म का सगीत ख़य्याम साहब का हैं.
पहले जब मैंने यह ग़ज़लें सुनी तो यक़ीन नहीं हुआ कि यह ग़ज़लें शबाना आज़मी साहिबा की ही आवाज़ में हैं लेकिन जब सुना तो उनकी आवाज़ की मिठास में ऐसा खोया कि अब अक्सर उन ग़ज़लों को सुनता हूँ. इन ग़ज़लों में शबाना आज़मी की आवाज़ तो ख़ास हैं ही लेकिन उससे ख़ास हैं ग़ज़लों की शायरी क्योंकि शहरयार साहब बहुत ख़ूबसूरत शायरी कहने वाले शायर रहे हैं.
उन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए बहुत कम ही लिखा हैं लेकिन जितना लिखा हैं बहुत ख़ूब लिखा हैं. वैसे उनकी लिखी ग़ज़लों का इस्तेमाल ज़्यादा फ़िल्म निर्देशक मुज़फ्फर अली ने ही किया है. 1978 की उनकी ही फ़िल्म ‘गमन’ का गीत “सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ हैं / इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूँ हैं. उमरावजान (1981) की ग़ज़लों को कोई भला कैसे भूल सकता हैं.
चलिए अब लौट आते हैं शबाना आज़मी की गायी हुई ग़ज़लों पर तो फ़िल्म अंजुमन की पांच ग़ज़लों में चार शबाना आज़मी के हिस्से में आयी हैं. उनकी गायी हुई ग़ज़लों में मुझे जो सबसे ज़्यादा पसंद हैं वो हैं – गुलाब जिस्म का यूं ही नहीं खिला होगा / हवा ने पहले तुझे फिर मुझे छुआ होगा. अहा क्या लिखा हैं शहरयार साहब ने. इस ग़ज़ल को सुनते वक़्त आप हुस्न की वादियों में कहीं खो जायेंगे जहाँ सिर्फ़ शहरयार साहब के लफ़्ज़ों के इत्र की महक होगी और शबाना आज़मी की दिलकश आवाज़, इस ग़ज़ल को शबाना ने भूपिंदर सिंह के साथ गाया हैं
इस फ़िल्म के लिए उन्होंने जो दूसरी ग़ज़लें गायी हैं उनके बोल कुछ यूँ हैं – ऐसा नहीं कि इसको नहीं जानते हो तुम / आँखों में मेरी ख़्वाब की सूरत बसे हो तुम….
तीसरी ग़ज़ल – शबाना आज़मी की आवाज़ में- तुझसे होती तो भी तो क्या शिकायत मुझको / तेरे मिलने से मिली दर्द की दौलत मुझे
और आख़िर में सबसे बेहतर ग़ज़ल – शबाना आज़मी की आवाज़ में- “मैं राह कब से नयी ज़िन्दगी की तकती हूँ / हर एक क़दम पे, हर एक मोड़ पे संभालती हूँ.”
एक बात और इस फ़िल्म में एक और ग़ज़ल हैं जिसे आवाज़ दी हैं ख़य्याम साहब और उनकी पत्नी जगजीत कौर ने, जिसके बोल कुछ यूँ हैं – कब याद में तेरा साथ नहीं कब हाथ में तेरा हाथ नहीं / सद-शुक्र कि अपनी रातों में अब हिज्र की कोई रात नहीं. इस ग़ज़ल को लिखा था फैज़ अहमद फैज़ ने. इस ग़ज़ल को ख़य्याम साहब ने लगभग 40 साल बाद अपनी आवाज़ में गाया था.
इससे पहले उन्होंने 1947 की फ़िल्म ‘रोमियो जूलियट’ में हिंदी सिनेमा की पहली संगीतकार भाइयों की जोड़ी हुस्नलाल-भगतराम के संगीत निर्देशन में ज़ोहरा बाई के साथ गाया था. जिसके बोल थे – दोनों जहाँ मोहब्बत में हर के.. और इत्तेफ़ाक़ देखिये इस गीत को भी फैज़ अहमद फैज़ ने ही लिखा था.