महिपाल: पौराणिक फिल्मों के सुपर स्टार, 4,100 का पहला पारिश्रमिक

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By Mohammad Shameem Khan

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ब्लैक एंड व्हाइट फ़िल्मों के बेहतरीन कलाकार महिपाल चंद्र भंडारी याद हैं, अब आप सोच रहे होंगे कि ये कौन से कलाकार हैं अरे साहब ! हम बात कर रहे हैं मैथोलॉजिकल फिल्मों के सुपर स्टार महिपाल की. जी हाँ वही एक्टर महिपाल 50 और 60 के दशक की कई बेहतरीन फ़िल्मों में उन्होंने शानदार काम किया.

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महिपाल की शुरुवाती ज़िन्दगी

महिपाल का जन्म 24 दिसंबर, 1919 को राजस्थान के जोधपुर में हुआ था. उन्होंने बचपन में ही अपनी माँ को खो दिया था. उनके वालिद साहब महादेव चाँद उस वक़्त अपने बिज़नेस की वजह से कलकत्ता में रहा करते थे, इसलिए छोटे महिपाल की परवरिश उनके दादा बजरंग चाँद ने किया. जब महिपाल छोटे थे तब अपने दादा के साथ रामलीला देखने जाया करते थे तब उन्हें ये बहुत अच्छा लगता था और यहीं से महिपाल का अभिनय और डांस की तरफ रूझान शुरू हुआ. महिपाल अपने स्कूल के दिनों से ही, एक्टिंग, कविता और डांस में बढ़-चढ़ के हिस्सा लिया करते थे. 40 के दशक में उन्होंने जोधपुर के जसवंत कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की.


पहला ऑडिशन

उस दौरान निर्माता आनंद बिहारी खंडेलवाल और निर्देशक जी पी कपूर, जो अपनी फ़िल्म नज़राना बनाना चाहते थे, और किसी नई प्रतिभा की तलाश कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने जोधपुर में भी ऑडिशन रखा जहाँ महिपाल ने भी ऑडिशन दिया था. बाद में फ़िल्म के निर्माता निर्देशक ने इस फ़िल्म को मारवाड़ी भाषा में बनाने की योजना बनाई, जिसका नाम निज्रानो रखा गया। यह पहली मारवाड़ी फ़िल्म थी.

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1942 में रिलीज हुई ये फ़िल्म बुरी तरह से फ्लॉप हो गई और एक अभिनेता के तौर पर उनका करियर वहीँ ठहर गया. उन्हें लगा अब उनका एक एक्टर बनने का सपना ख़त्म हो जायेगा चूँकि वो अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों से नृत्य, नाटक, कविता और अभिनय में अच्छा प्रदर्शन किया करते थे. तो उन्होंने गीतकार बनने की कोशिश की.


अपने एक इंटरव्यू महिपाल बताते हैं कि इस फ़िल्म में, कैलाश शिवपुरी, चरित्र कलाकार ओम शिवपुरी के बड़े भाई, और उन्हें फ़िल्म के लिए चुना गया. इस फ़िल्म में उन्होंने मुख्य भूमिका निभायी थी. उन्हें इस फ़िल्म में बतौर मेहनताना 125 रूपए का वेतन दिया गया था.

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उनके एक गीतकार मित्र पंडित इंद्र ने उन्हें निर्देशक चतुर्भुज दोशी से मिलवाया, जो एक पौराणिक फिल्म शंकर-पार्वती बना रहे थे. निर्देशक चतुर्भुज ने उन्हें अपनी फ़िल्म में बतौर लीड एक्टर 4,100 रुपये के पारिश्रमिक पर साइन कर लिया. रंजीत मूवीटोन की यह फ़िल्म जबरदस्त सफल साबित हुई. इस तरह एक साल के संघर्ष के बाद महिपाल का करियर वापस पटरी पर आ गया.

वी शांताराम ने पहचाना उनका टैलेंट

मशहूर निर्माता निर्देशक वी. शांताराम ने महिपाल की काव्य प्रतिभा को पहचाना और उन्हें 300 रुपये के वेतन पर अपनी कंपनी राजकमल कलामंदिर के लिए काम पर रखा. यह वह वक़्त था जब अधिकांश कलाकार मराठी भाषी थे और महिपाल ने संवाद लिखते वक़्त उन कलाकारों को सही हिंदी बोलने में मदद की. दिवंगत अभिनेत्री नंदा के पिता मास्टर विनायक को भी महिपाल ने प्रशिक्षित किया था.

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1944 में जब शांताराम ने एक फ़िल्म माली बनाई तो महिपाल ने न केवल फ़िल्म के लिए गीत लिखे, बल्कि विष्णु की भूमिका भी निभाई. यह फ़िल्म भी काफ़ी सफल रही.

बहुत कम ही लोग जानते हैं कि लता मंगेशकर का हिंदी में पार्श्व गायिका के रूप में पहला गाना ‘पा लगून कर जोरी रे था’, जिसके बोल महिपाल जी ने लिखे थे. 1947 के रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘आपकी सेवा’ का यह गाना राग ठुमरी पर आधारित था.
महिपाल ने चंद्रमा पिक्चर्स के बैनर तले बनी फ़िल्म के लिए आठ गाने लिखे और संगीत दत्ता दावजेकर ने दिया. इस गाने को एक्ट्रेस रोहिणी भाटे पर फ़िल्माया गया था.

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1937 में, महिपाल ने उदयपुर में एक कवि सम्मेलन में एक प्रेरक हिंदी कविता, जो जग को अन्न प्रदान करे (किसान, जो अपनी मेहनत से दुनिया को अनाज देता है) का पाठ किया. इसे एक क्रांतिकारी कविता के रूप में सराहा गया. इस कविता का पाठ 1990 में, जब भाजपा सांसद गुमान मल लोढ़ा ने संसद में किया, तो तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष ने आदेश दिया कि इस कविता को रिकॉर्ड में रखा जाए.

फ़िल्मों में वह छोटे मोटे रोल तो कर रहे थे और एक गीतकार के रूप में महिपाल की कोई ख़ास कमाई नहीं हो रही थी इसलिए उन्हें वापस अपनी फैमिली के पास जोधपुर लौटना पड़ा. लेकिन कहते हैं ना एक बार जब किसी को एक्टिंग का कीड़ा लग जाये तो उसे सिर्फ एक्टिंग ही अच्छी लगती है। जोधपुर में कुछ अरसा बिताने के बाद महिपाल खुद को एक्टिंग से दूर नहीं रख पाए और अपनी पत्नी अक्कल कुंवर, और उनकी बेटियों सुशीला और निर्मला को जोधपुर में अपने चाचा की देखरेख में छोड़ने के बाद, वह वापस मुंबई आ गए.

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पौराणिक फ़िल्मों के सुपर स्टार

मुंबई में काफ़ी संघर्षों के बाद, उन्हें दो फिल्में मिलीं – नरसिंह अवतार नामक पौराणिक और दौलत नामक एक कॉमेडी, जिसमें उन्होंने अभिनेत्री मधुबाला के साथ मुख्य भूमिका निभाई. इन दोनों फ़िल्मों ने औसत कारोबार किया. जहाँ मधुबाला महल फ़िल्म के साथ एक शीर्ष अभिनेत्री बन गईं, वहीं महिपाल का संघर्ष अभी ख़त्म नहीं हुआ था. महिपाल का संघर्ष अभी चल ही रहा था कि एक रोज़ उन्हें फ़िल्म निर्माता होमी वाडिया का फोन आया, जिन्होंने उन्हें पौराणिक फ़िल्म ‘श्री गणेश महिमा’ (1950) में लीड रोल दिया. फ़िल्म की सफलता के बाद फिर महिपाल ने पीछे मुड़ के नहीं देखा उन्होंने ख़ुद पौराणिक शैली में एक नायक के रूप में स्थापित किया. यह वह वक़्त था जब देश में कई पौराणिक फ़िल्में चलन में थीं और लोग बहुत चाव से पौराणिक फ़िल्में देखते थे.

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फैंटसी फ़िल्में

फिर, महिपाल ने एक काल्पनिक फ़िल्म, अलादीन और जादूई चिराग (1952) में काम किया, जहाँ उनके अपोजिट एक्ट्रेस मीना कुमारी थीं. ये फ़िल्म एक जुबली हिट थी और इस मुख्य जोड़ी ने एक और फिल्म, लक्ष्मी नारायण, एक पौराणिक कथा में साथ काम किया. निर्माता निर्देशक वी. शांताराम महिपाल को बहुत मानते थे और उनकी बहुमुखी प्रतिभा के क़ायल थे उन्होंने जब अभिनेत्री संध्या के अपोजिट फ़िल्म नवरंग (1959) में उन्हें कास्ट करने का फैसला किया, तो यह उस वक़्त बड़ी ख़बर बन गई. शांताराम जी ने महिपाल से उसकी फीस के बारे में पूछा, और चूंकि महिपाल फिल्म निर्माता का ऋणी था, तो उन्होंने 1 रुपये और चार आने और एक नारियल मांगा। सिल्वर जुबली रन के साथ नवरंग सुपरहिट रहा। इसका म्यूजिक भी ज़बरदस्त हिट हुआ था.

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यह महिपाल की सबसे सफल फिल्म थी और उन्हें स्टारडम तक पहुंचा दिया। इस फ़िल्म का गीत ‘आधा है चंद्रमा रात आधी’ और ‘तू छुपी है कहां’ गाने की बदौलत डेब्यू सिंगर महेंद्र कपूर को भी सुर्खियों में ला दिया. फ़िल्म ने सर्वश्रेष्ठ म्यूज़िक और सर्वश्रेष्ठ संपादन श्रेणियों में दो फिल्मफेयर पुरस्कार जीते. महिपाल पौराणिक फ़िल्मों के सबसे अधिक भुगतान पाने वाले अभिनेता बन गए. उन्होंने अपनी कमाई से दक्षिण मुंबई के मरीन लाइन्स में एक आलीशान फ्लैट खरीदा.

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उन्होंने अलीबाबा और 40 थीव्स (1954), अलादीन और जादूई चिराग़ (1952) और अलीबाबा का बेटा (1955) सहित अरेबियन नाइट्स पर आधारित फैंटसी फ़िल्मों की एक श्रृंखला भी की.


महिपाल की फ़िल्मोग्राफ़ी में श्री राम संपूर्ण रामायण (1961), नाग देवता (1962), श्री गणेश (1962), सती सावित्री (1964), महाशिवरात्रि (1972), श्री कृष्ण अर्जुन युद्ध (1971), श्री कृष्ण अर्जुन युद्ध (1971) शामिल हैं। संपूर्ण तीर्थ यात्रा (1970), वीर घटोत्कच (1970) और श्री राम भारत मिलाप (1965). उनकी फ़िल्में, उनमें से कई संगीतमय, अपने शास्त्रीय नृत्य और यादगार गीतों के लिए आज भी याद की जाती हैं. उन्होंने अपने करियर में निरूपा रॉय, माला सिन्हा और श्यामा जैसी अभिनेत्रियों के साथ भी फ़िल्मों में काम किया.

उन्होंने शंकर पार्वती (1943), बनवासी (1948) और लक्ष्मी नारायण (1951) जैसी फ़िल्मों में छोटे- छोटे क़िरदार भी निभाए. फिर एक ऐसी फ़िल्म आयी जिसने सब कुछ बदल दिया वो फ़िल्म थी बाबूभाई मिस्त्री की फ़िल्म ‘पारसमणि’ जिसमें उनके अपोजिट थीं दक्षिण भारत की फ़िल्मों की चर्चित अभिनेत्री गीतांजलि. ये फ़िल्म ज़बरदस्त हिट हुई यहाँ इस फ़िल्म का ज़िक्र और भी ज़रूरी हो जाता है कि 1963 की इस फिल्म में संगीत निर्देशक लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने अपनी पारी की शुरुआत हुई थी. लता मंगेशकर के गाये हुए गाने ‘मेरे दिल में हल्की सी,’ ‘ऊई मां ऊई मा क्या हो गया,’ ‘हंसा हुआ नूरानी चेहरा,’ ‘छोरी छोरी जो तुमसे मिले,’ ‘वो जब याद आए बहुत याद आए’ और मोहम्मद रफी के गाने सलामत रहो आज भी बहुत मशहूर हैं.

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महिपाल की फ़िल्म जय संतोषी माँ (1975) इतिहास में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली और सबसे लंबे समय तक चलने वाली पौराणिक फ़िल्म है. लेकिन 1980 के दशक तक आते आते पौराणिक और फैंटसी शैलियों की फ़िल्मों कीअपील लगभग कम हो गई. महिपाल को अपने स्क्रीन प्रजेंस में एक बड़ा बदलाव करना पड़ा और उन्होंने रानी और लालपरी (1975) और दो चेहरे (1977) जैसी फ़िल्मों में चरित्र भूमिकाएँ निभाईं। बतौर अभिनेता उनकी आख़िरी फ़िल्म ‘अमर ज्योति’ थी जोकि 1984 में रिलीज़ हुई थी. उसके बाद उन्होंने फ़िल्मों से सन्यास ले लिया और अपना सारा वक़्त अपनी फैमिली के साथ बिताने लगे. 15 may 2005 में 86 साल की उम्र में कार्डियक अरेस्ट की वजह से वह इस दुनिया-ए-फ़ानी से रुख़्सत हो गए. एक बेहतरीन कलाकार के रूप में वो हमेशा याद किये जायेंगे.

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